"पति दूसरी महिला से शादी करने जा रहा है, यह जानने के बाद पत्नी ने दर्ज कराई FIR": मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने पति को आईपीसी की धारा 498ए से डिस्चार्ज किया

LiveLaw News Network

10 Sep 2021 12:44 PM GMT

  • Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

    MP High Court

    मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में यह देखते हुए कि पत्नी ने यह जानने के बाद कि उसका पति दूसरी महिला से शादी करने जा रहा है, उसके पति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है, IPC की धारा 498-ए और दहेज निषेध की धारा 3/4 के तहत आरोपों से पति को डिस्चार्ज (उन्मोचित) कर दिया।

    जस्टिस संजय द्विवेदी की खंडपीठ ने कहा कि पत्नी ने उन घटनाओं का आरोप लगाया है, जो प्राथमिकी दर्ज करने की तारीख से दो साल पहले हुई थीं और पति द्वारा तलाक की डिक्री मांगने के लिए मुकदमा दायर करने के बाद यह मामला दर्ज किया गया था।

    अदालत ने कहा, "

    एफआईआर कुछ और नहीं बल्कि तलाक की डिक्री मांगने के लिए पति द्वारा दायर मुकदमे पर जवाबी हमला है। लगाए गए आरोप रद्द किए जाने योग्य हैं। "

    संक्षेप में तथ्य

    साल 2015 में दोनों की शादी हुई ‌थी। लेकिन 2016 से पत्नी अलग रहने लगी क्योंकि उनके बीच विवादों के कारण संबंध मधुर नहीं थे। इसके बाद जब विवादों को सुलझाना लगभग असंभव हो गया, तो आवेदक संख्या एक (पति) ने 2019 में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-ए के तहत तलाक की डिक्री की मांग करते हुए एक मुकदमा दायर किया।

    जब पत्नी को नोटिस जारी किया गया तो उसने थाना कोतवाली, मंडला जिला मंडला में शिकायत दर्ज कराई और शिकायत की जांच के बाद पुलिस ने आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ IPC की धारा 498-ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत अपराध दर्ज किया।

    जब मामला अदालत में पहुंचा तो आवेदकों के वकील ने उन्हें बरी करने के लिए सीआरपीसी की धारा 227 के तहत निचली अदालत के समक्ष एक आवेदन दिया, जिसे अंततः खारिज कर दिया गया।

    इस प्रकार, आवेदकों (पति और उनके रिश्तेदारों) ने IPC की धारा 498-ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 और एससी/एसटी (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत पति और रिश्तेदारों के खिलाफ आरोप तय करने के आदेश के खिलाफ आपराधिक संशोधन को प्राथमिकता दी।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    मामले के रिकॉर्ड को देखते हुए, अदालत ने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं आया है जो यह दर्शाता हो कि अलग रहने की तारीख से प्राथमिकी दर्ज करने की तारीख तक पत्नी द्वारा आवेदकों के खिलाफ कोई शिकायत की गई हो कि उन्होंने कभी भी दहेज की मांग की या कोई कृत्य किया जो एससी/एसटी अधिनियम के प्रावधानों के तहत आता हो या दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत कोई अपराध किया गया था।

    अदालत ने आगे कहा कि प्राथमिकी से यह स्पष्ट है कि यह 9 जनवरी, 2020 को दायर की गई थी, जबकि पति/आवेदक संख्या एक ने परिवार न्यायालय के समक्ष सत मई, 2019 को तलाक की डिक्री मांगने के लिए एक मुकदमा दायर किया था।

    कोर्ट ने कहा, "बयान से यह भी स्पष्ट है कि अनावेदक संख्या दो (पत्नी) को यह पता चलने के बाद कि आवेदक संख्या एक (पति) का विवाह भुवनेश्वरी नाम की एक महिला से होने वाला है, तभी उसने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई और दहेज और अत्याचार अधिनियम से संबंधित अपराधों के कई आरोप लगाए।"

    इसके अलावा, अदालत ने यह भी नोट किया कि आरोप पत्र के साथ दायर किए गए उसके बयान से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि उसने पुलिस से संपर्क केवल इसलिए किया क्योंकि आवेदक नंबर एक किसी अन्य महिला से शादी करने जा रहा था ।

    इसलिए कोर्ट इस नतीजे पर पहुंची कि पत्नी ने केवल अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों को परेशान करने के लिए प्राथमिकी दर्ज कराई थी।

    केस का शीर्षक - अभिषेक पाण्डेय @ रामजी पाण्डेय व अन्य

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