'आरोपी को झुकाने के लिए मामला दायर': दिल्ली हाईकोर्ट ने झूठे यौन उत्पीड़न के मामलों में खतरनाक वृद्धि पर जताई चिंता
LiveLaw News Network
15 Feb 2022 9:16 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में झूठे यौन उत्पीड़न मामले में खतरनाक वृद्धि पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि इसे केवल अभियुक्तों को दबाव में लाने और शिकायतकर्ता की मांगों के आगे घुटने टेकने को मजबूर करने के लिए दायर किया जाता है।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, "यह कोर्ट इस बात से दुखी है कि धारा 354, 354ए, 354बी, 354सी और 354डी के तहत मामलों में खतरनाक वृद्धि हो रही है, ताकि आरोपी को केवल शिकायतकर्ता की मांगों के आगे झुकने के लिए मजबूर किया जा सके।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस द्वारा ऐसे झूठे मामलों की जांच और अदालती कार्यवाही में बिताया गया समय उन्हें गंभीर अपराधों की जांच में समय बिताने से रोकता है।
कोर्ट ने कहा, "परिणामस्वरूप जिन मामलों में उचित जांच की आवश्यकता होती है, उनमें समझौता हो जाता है और उन मामलों में आरोपी घटिया जांच के कारण मुक्त हो जाते हैं। अदालतों का मूल्यवान न्यायिक समय भी फर्जी आरोपों वाले मामलों की सुनवाई में व्यतीत होता है, और परिणामस्वरूप कानून की प्रक्रिया दुरुपयोग होता है।''
कोर्ट दो याचिकाओं पर विचार कर रही थी जिसमें दीवानी प्रकृति के विवाद से उत्पन्न प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी। यद्यपि एक प्राथमिकी आईपीसी की धारा 354, 323 और 509 के तहत दर्ज की गई थी, तो दूसरी प्राथमिकी आईपीसी की धारा 354, 323, 506 और 509 पर आधारित थी।
ऐसा कहा गया था कि दोनों पक्ष आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे और किसी गलतफहमी के कारण वाहन की पार्किंग को लेकर झगड़ा हो गया, जिसमें दोनों पक्षों के परिवार के सदस्य शामिल हो गए।
हालांकि, यह दलील दी गयी थी कि आम पारिवारिक मित्रों और इलाके के सम्मानित व्यक्तियों के हस्तक्षेप से, दोनों पक्षों ने एक सौहार्दपूर्ण समझौता किया था।
सुनवाई के दौरान, पार्टियों ने वचन दिया था कि वे उनके बीच हुए समझौते की शर्तों से बंधे रहेंगे।
कोर्ट ने प्राथमिकियों को इस तथ्य के मद्देनजर खारिज कर दिया कि पक्षकारों द्वारा दोनों तरफ से शिकायतें दर्ज की गई थीं। शिकायतकर्ता परिवार के ही सदस्य हैं और एक-दूसरे से बहुत ही निकटता से जुड़े हैं, जिन्होंने बाद में आपसी समझौते के आधार पर प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों से 'ज्ञान सिंह बनाम पंजाब सरकार' मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय कानून के तहत निपटा गया था।
कोर्ट ने कहा, "चूंकि, पुलिस को अपराधों की जांच में बहुमूल्य समय देना पड़ा और याचिकाकर्ताओं द्वारा शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही में कोर्ट द्वारा काफी समय बिताया गया है, इसलिए यह कोर्ट याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना लगाने के पक्ष में है।"
इसलिए कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को तीन सप्ताह की अवधि के भीतर "सशस्त्र सेना युद्ध हताहत कल्याण कोष" में 50,000 रुपये की राशि जमा करने का निर्देश दिया।
तदनुसार याचिकाओं का निस्तारण किया गया।
केस शीर्षक : सौरभ अग्रवाल और अन्य बनाम सरकार एवं अन्य
साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 113