डीम्ड विश्वविद्यालय छात्रों से प्रोस्पेक्टस में लिखी फीस ही मांग सकते हैं : केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

3 Jun 2020 9:12 AM GMT

  • डीम्ड विश्वविद्यालय छात्रों से प्रोस्पेक्टस में लिखी फीस ही मांग सकते हैं : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    एक उल्लेखनीय निर्णय में, केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से संबद्ध या अफिलीऐटिड डीम्ड विश्वविद्यालय छात्रों से प्रोस्पेक्टस में बताई गई फीस से अधिक फीस नहीं वसूल सकते।

    यह कहते हुए न्यायमूर्ति अनु शिवराम की एकल पीठ ने तिरुवनंतपुरम स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस टेक्नोलॉजी (आईआईएसटी) को निर्देश दिया है कि वह रिसर्च स्काॅलर या अनुसंधान विद्वानों से एकत्रित उस अतिरिक्त शुल्क वापिस कर दें,जिसके बारे में वर्ष 2013 में जारी प्रवेश प्रोस्पेक्टस में कोई उल्लेख नहीं किया गया था।

    कोर्ट ने आईआईएसटी से पीच.डी कर रहे 51 छात्रों की तरफ से दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया है। इन सभी छात्रों ने संस्थान के मध्यावधि में लिए गए निर्णय को चुनौती दी थी जिसके तहत संस्थान ने ट्यूशन शुल्क (राहुल ओ.आर व अन्य बनाम आईआईएसटी व अन्य) की मांग की थी।

    2013 के प्रवेश प्रोस्पेक्टस में ट्यूशन शुल्क के बारे में कोई प्रावधान नहीं था। उसमें यह कहा गया था कि स्काॅलर को संस्थान की तरफ से दी जाने वाली सेवाओं जैसे बोर्डिंग, लॉजिंग, चिकित्सा सुविधाओं आदि के लिए भुगतान करना होगा।

    2017 में, संस्थान ने निर्णय लिया कि सभी छात्रों से12,500 रुपये प्रत्येक सेमेस्टर की ट्यूशन फीस के रूप में लिए जाएंगे। इसे राहुल ओ.आर व अन्य पचास छात्रों ने यह कहते हुए चुनौती दी थी कि यह यूजीसी विनियमों के खिलाफ है।

    यूजीसी (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटीज) रेगुलेशन 2016 के खंड 6.1 का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश अधिवक्ता सूर्या बिनॉय ने दलील दी थी कि कोई भी डीम्ड विश्वविद्यालय ऐसा शुल्क नहीं लगा सकता है जिसके बारे में उसने प्रवेश प्रोस्पेक्टस व अपनी वेबसाइट पर उल्लेख न किया गया हो। यह भी दलील दी गई कि विनियमों के खंड 6.5 के अनुसार, संस्थान को पाठ्यक्रम के प्रारंभ होने के 60 दिनों के भीतर शुल्क के विभिन्न घटकों के बारे में बताते हुए एक प्रोस्पेक्टस प्रकाशित करना होता है। वकील ने बताया कि संस्थान ने इस नियम का पालन भी नहीं किया।

    संस्थान के निर्णय को सही ठहराने की मांग करते हुए आईआईएसटी ने कहा कि छात्रों को दी जाने वाली फेलोशिप की तुलना में शुल्क बहुत कम था। यह भी दावा किया गया कि छात्रों से फीस मांगना संस्थान का 'विशेषाधिकार' है। आईआईएसटी ने यह भी कहा कि वह छात्रों को इसके भुगतान में छूट देने को वहन करने की क्षमता में नही है।

    यूजीसी ने अदालत के समक्ष यह कहते हुए एक अस्पष्ट रुख अपनाया कि उसके नियम इस मामले में मौन है कि ''क्या एक डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी मध्य अवधि में शुल्क बढ़ा सकती है या नहीं ?'' यूजीसी ने यह भी कहा कि एक डीम्ड विश्वविद्यालय द्वारा लिए गए शुल्क पर उसका ''कोई नियंत्रण नहीं'' है।

    यूजीसी ने कोर्ट के समक्ष दायर काउंटर-हलफनामें में कहा कि

    ''... पाठ्यक्रम और अन्य कारकों के आधार पर एक डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी अपनी फीस चार्ज कर सकती है। ऐसे में यूजीसी यह नहीं कह सकती है कि एक्जिबिट पी-1 के तहत लगाया गया शुल्क अत्यधिक या अन्यथा है।''

    इसके बावजूद हाईकोर्ट ने स्वयं यूजीसी द्वारा निर्धारित नियमों को लागू करने के लिए कार्यवाही की। कोर्ट ने कहा कि प्रवेश प्रोस्पेक्टस में ट्यूशन शुल्क का कोई प्रावधान नहीं था और इस तरह के शुल्क को मध्यावधि में लागू किया गया था। जो यूजीसी विनियमों के विशिष्ट प्रावधानों के विपरीत पाया गया है।

    कोर्ट ने माना कि-

    ''यूजीसी विनियमों में निहित विशिष्ट प्रावधानों के मद्देनजर आवेदकों से प्रोस्पेक्टस के माध्यम से सूचित करने के बाद ही फीस वसूली जा सकती है। विशिष्ट दलीलों के माध्यम से यह बताया गया है कि जिन प्रवेश अधिसूचनाओं के माध्यम से याचिकाकताओं को दाखिला दिया गया था,उनमें इस तरह की कोई सूचना नहीं दी गई थी। ऐसे में कोर्ट का मानना है कि एक्जिबिट पी-1 सर्कुलर मामले के याचिकाकर्ताओं पर लागू नहीं होता है। चूंकि इन सभी का दाखिला यह सर्कुलर जारी होने से पहले हो चुका था।''

    रिट याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने आईआईएसटी को निर्देश दिया है कि वह केवल ऐसी फीस एकत्रित करें ''जिसके बारे में सूचना प्रवेश प्रोस्पेक्टस/अधिसूचना में दी गई है और जिसके आधार पर याचिकाकर्ताओं को दाखिला दिया गया था।

    कोर्ट ने निर्देश दिया है कि अतिरिक्त फीस को याचिकाकर्ताओं को वापस कर दिया जाए।

    एनयूएएलएस कोच्चि के लाॅ के छात्र श्रीनाथ जे ने इस फैसले को छात्रों को सशक्त बनाने वाला बताया।

    श्रीनाथ ने कहा कि- ''हम उम्मीद कर रहे हैं कि यह निर्णय उच्च शिक्षा के संस्थानों के लिए एक अनुस्मारक के रूप में काम करेगा कि वे भी कानून के शासन में काम कर रहे हैं। वहीं यह छात्रों को प्रशासन पर सवाल उठाने का अधिकार देेगा खासतौर पर तब जब नीतियां उन जबरन लागू की जाती हैं।''

    श्रीनाथ 'योर लॉयर्स फ्रेंड' के सदस्य हैं। यह छात्रों के अधिकारों के लिए काम करने वाले वकीलों और छात्रों का एक समूह है, जिसने याचिकाकर्ताओं को तत्काल मामले में सहायता प्रदान की।

    योर लॉयर फ्रेंड 'ने पहले भी उन मामलों में हस्तक्षेप किया है,जिनमें अदालत ने अपना फैसला देते हुए लड़कियों के हॉस्टल में विशेष प्रतिबंध लगाने और कॉलेज के हॉस्टल में मोबाइल फोन पर प्रतिबंध लगाने को असंवैधानिक और गैरकानूनी करार दिया था।

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