किसका बच्चा है, ये पता लगाने के लिए सीधे DNA टेस्ट का आदेश नहीं दे सकते: हाईकोर्ट

Brij Nandan

3 April 2023 7:35 AM GMT

  • किसका बच्चा है, ये पता लगाने के लिए सीधे DNA टेस्ट का आदेश नहीं दे सकते: हाईकोर्ट

    शख्स का असली बेटा है या नहीं, ये पता लगाने के लिए शख्स ने अपने नाबालिग बेटे का डीएनए टेस्ट कराने का आदेश देने की मांग की। शख्स ने कहा कि वो अपने नाबालिग बेटे को गुजारा भत्ता नहीं देगा। वो उसकी संतान नहीं है। हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागुपर बेंच ने पिता की याचिका खारिज कर दी और कहा कि किसी बच्चे का पिता कौन है, ये पता लगाने के लिए सीधे DNA टेस्ट कराने का आदेश नहीं दिया जा सकता है। बच्चे की मानसिकता पर आघात पहुंच सकता है।

    जस्टिस जीए सनप ने सुनवाई के दौरान कहा- पिता अपने बेटे को गुजारा भत्ता देने से बचने की कोशिश कर रहा है। मेंटेनेंस पाने के अधिकार से अपने बेटे के वंचित करने के लिए वो उसका डीएनए टेस्ट कराने की बात कर रहा है। ऐसे किसी भी मामले में DNA टेस्ट कराने का आदेश नहीं दिया जा सकता है। इसके लिए उचित कारण होना चाहिए।“

    आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला

    केस के मुताबिक साल 2006 में कपल की शादी हुई। दोनों एक ही कंपनी में कार्यरत थे। 2007 में बेटा पैदा हुआ। पति-पत्नी के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे थे। वजह थी पति का दूसरी महिला के साथ संबंध। जिसके चलते पत्नी यानी मां अपने बेटे को लेकर घर छोड़कर चली गई। शख्स अपनी प्रेमिका के साथ रहने लगा। बाद में लड़के ने अपने शैक्षिक खर्च के लिए पिता से गुजारा भत्ता की मांगा की।

    पति ने दावा किया कि वो उसकी संतान नहीं है। वो गुजाराभत्ता नहीं देगा। बच्चे का DNA टेस्ट करा लीजिए। जूडिशल मैजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने पिता की याचिका स्वीकार कर ली और बच्चे का DNA टेस्ट कराने का आदेश दिया। हालांकि सेशन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।

    इसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और कहा- याचिकाकर्ता नौकरीपेशा है फिर भी अपने दायित्व से बचने की कोशिश कर रहा है। इससे सामाजिक रूप से बच्चे के सामने भविष्य में कई चुनौतियां भी खड़ी कर सकता है। व्यक्ति की ओर से ऐसा कुछ भी पेश नहीं किया गया, जिसमें बच्चे के डीएनए टेस्ट का आदेश देने की जरूरत हो।

    कोर्ट ने आगे कहा कि किसी बच्चे का पिता कौन है, ये पता लगाने के लिए सीधे DNA टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता है। बच्चे की मानसिकता पर आघात पहुंच सकता है।

    इसी के साथ कोर्ट ने पिता की याचिका खारिज कर दी।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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