धारा 498ए का झूठा मामला : कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला, पत्नी करे पूर्व पति को 25,000 रुपये का भुगतान, केस भी खारिज
LiveLaw News Network
25 Oct 2019 3:01 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महिला को निर्देश दिया है कि वह अपने पूर्व पति को 25,000 रुपये बतौर हर्जाने के तौर पर दे, क्योंकि महिला ने उसे प्रताड़ित करने के लिए आईपीसी की धारा 498ए के तहत आपराधिक केस दर्ज करवाकर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है। इसी के साथ कोर्ट ने आपराधिक केस को भी खत्म कर दिया।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने पूर्व पत्नी द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को खारिज करते हुए कहा, '' यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हुए पूर्व पति को अत्यधिक प्रताड़ित करने का दुर्भाग्यपूर्ण मामला है।'' इसी के साथ कोर्ट ने महिला को निर्देश दिया है कि वह अपने पूर्व-पति को हर्जाने के तौर पर 25,000 रुपये का भुगतान करे।
न्यायमूर्ति पी.एस दिनेश कुमार ने उस केस को रद्द कर दिया है जो 50 वर्षीय फैसल अहमद खान के खिलाफ उनकी पूर्व पत्नी नाजिया असमा ने दर्ज करवाया था।
केस को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा ,
''याचिकाकर्ता द्वारा सुनाए गए तथ्यों का विवरण और अविवादित तथ्य जो रिकॉर्ड से एकत्रित किए जा सकते हैं,उनसे एक अनिवार्य संदर्भ यह निकलता है कि यद्यपि शिकायत में आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध के आरोप लगाए गए हैं, परंतु वास्तव में वह याचिकाकर्ता ही है जिसे शिकायतकर्ता के हाथों एक अनकहा दुख झेलना पड़ा है। ''
मामले की पृष्ठभूमि
कुवैत में कार्यरत मैकेनिकल इंजीनियर खान ने 21 जुलाई, 2008 को मैसूर में शिकायतकर्ता से शादी की थी। उनकी एक बेटी भी हुई, लेकिन बाद में महिला उसके साथ विदेश जाकर रहने के लिए राजी नहीं हुई। अपनी शादी को बचाने के लिए खान ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
सितंबर 2011 में, शिकायतकर्ता अपनी बहन के सगाई समारोह में भाग लेने के बहाने वैवाहिक घर छोड़ कर चली गई थी। वह अपने साथ अपना सामान जैसे कपड़ें व गहने आदि भी ले गई। इसके बाद, वह कभी भी अपने पति के घर वापस नहीं लौटी। इसके बाद, याचिकाकर्ता को बहरीन में एक और नौकरी मिल गई। शिकायतकर्ता ने फिर से उसके साथ विदेश जाने से मना कर दिया।
खान, 5 फरवरी 2012 को अकेले ही बहरीन के लिए रवाना हुए। 7 अप्रैल, 2012 को महिला ने मैसूर शहर के महिला थाने में पुलिस शिकायत दर्ज की, जिसमें छह आरोपियों के खिलाफ उत्पीड़न और दहेज की मांग करने के आरोप लगाए।
इस मामले में खान को पहला आरोपी और उसके परिवार के सदस्यों को अन्य आरोपियों के रूप में दिखाया गया था, परंतु जांच के बाद पुलिस ने सिर्फ खान के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए, 506 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप पत्र दायर किया था।
सेशन कोर्ट ने अर्ज़ी खारिज की
खान ने एक अर्जी दायर कर उसे रद्द करने की मांग की परंतु सेशन कोर्ट ने उसकी इस अर्जी को खारिज कर दिया। सेशन कोर्ट ने कहा कि,''घटना की तारीख पर अभियुक्त की उपस्थिति और क्या उनका विवाह निरस्त है, इन बातों पर डिस्चार्ज की स्टेज पर विचार नहीं किया जा सकता है।'' 10 अगस्त, 2018 के इस आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता ने बताया कि शिकायतकर्ता ने 29 अगस्त 2003 को आसिफ अली फारूकी के साथ शादी की थी। यह शादी उनकी शादी होने से पहले की गई थी। उसके पहले पति ने अर्जी दायर कर वैवाहिक संबंधों की पुनस्र्थापना की मांग की थी। अदालत ने अपने अंतरिम आदेश के तहत नाजिया को पुनर्विवाह करने से रोक दिया था। हालांकि, इस तथ्य को दबाते हुए और अदालत के आदेश का उल्लंघन करते हुए, शिकायतकर्ता ने जुलाई 2008 में खान के साथ शादी कर ली।
महिला ने खान के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12, 18, 19, 20, 21 और 22 के तहत भी आपराधिक कार्यवाही शुरू कर दी थी।
5 दिसम्बर 2016 के आदेश में, ट्रायल जज ने कहा था कि शिकायतकर्ता की यह तीसरी शादी थी और उसकी याचिका को खारिज करते हुए उस पर हर्जाना लगा दिया। इसके अलावा, महिला ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्यवाही शुरू की और भरण पोषण की मांग की। उक्त कार्यवाही में उसने जब साक्ष्य प्रस्तुत किए तो उसने प्रति-परीक्षण में स्वीकार किया कि वह पहले से विवाहित थी और उसकी शादी पंजीकृत हो गई थी।
6 अक्टूबर 2018 को पारिवारिक न्यायालय ने अपना निर्णय देते हुए और डिक्री जारी करते हुए शिकायतकर्ता के साथ याचिकाकर्ता के विवाह को अमान्य घोषित कर दिया था। यद्यपि शिकायतकर्ता का संबंध अगस्त 2011 में ही समाप्त हो गया था, जब शिकायतकर्ता ने गलत इरादे के साथ छह आरोपियों के खिलाफ झूठी शिकायत दायर कर आईपीसी की धारा 498ए और 506 के तहत अपराध का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करवाई थी।
जांच के बाद पुलिस ने सिर्फ याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। खान ने दलील दी कि ऊपर वर्णित घटनाओं के अनुक्रम को देखने के बाद, पूरी शिकायत झूठी नजर आती है, इसलिए वह कोर्ट से आग्रह करता है कि उसकी याचिका को स्वीकार किया जाए।
महिला ने याचिका का विरोध किया
महिला ने दलील दी कि शिकायत में याचिकाकर्ता और अन्य के खिलाफ विशिष्ट कृत्य या आरोप शामिल हैं। हालांकि, पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया है, जो कि प्रथम दृष्टया स्थापित करता है कि याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को परेशान किया है। दलील दी कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच हुए विवाह पर कोई विवाद नहीं है। याचिकाकर्ता द्वारा दी गई सभी दलील सबूत के अधीन हैं। इसलिए, मामले की ट्रायल आवश्यक है। तदनुसार, इस याचिका को खारिज किया जाए।
कोर्ट ने कहा,
"यह अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि पिछले विवाह के खुलासे के कारण पति को अत्यधिक मानसिक पीड़ा और वेदना हुई। हालांकि, शिकायतकर्ता ने असफल रूप से याचिकाकर्ता को विभिन्न कोर्ट जाने के लिए मजबूर किया।
इसकी शुरुआत शिकायकर्ता ने घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्यवाही शुरू करते हुए की थी और उसके बाद उसने सीआरपीसी की धारा के 125 के तहत कार्यवाही शुरू की। शिकायतकर्ता के आचरण या व्यवहार के संबंध में इन दोनों कार्यवाही में ट्रायल मजिस्ट्रेटों ने न्यायिक निष्कर्ष दर्ज किए हैं।
पीठ ने कहा कि -''यह एक आदर्श मामला है, जिसमें शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता के खिलाफ सीआरपीसी धारा 125 और आईपीसी की धारा 498ए के तहत आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए उक्त प्रावधानों का दुरुपयोग किया है।''
शिकायकर्ता महिला द्वारा अपने पति खान पर लगाए गए उत्पीड़न के सभी आरोपों को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि,
''शिकायत पूरी तरह अविश्वसनीय है और स्वयं आरोपों का खंडन कर रही है। न तो अभियोजन पक्ष ने और न ही शिकायतकर्ता ने कोई अन्य ऐसी सामग्री या तथ्य पेश किए है, जो याचिकाकर्ता द्वारा किए गए किसी भी कथित आपराधिक कृत्य को साबित करते हों। इसलिए, सुरक्षित रूप से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि याचिकाकर्ता को परेशान करने के लिए उसके खिलाफ आरोप लगाए गए थे ।''