'अतिवादी या कठोर दृष्टिकोण हेट स्पीच नहीं': बॉम्बे हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 153A के प्रावधानों को दोहराया

LiveLaw News Network

6 May 2021 3:07 AM GMT

  • अतिवादी या कठोर दृष्टिकोण हेट स्पीच नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 153A के प्रावधानों को दोहराया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि अतिवादी या कठोर दृष्टिकोण हेट स्पीच नहीं है और इसके साथ ही कोर्ट ने नवी मुंबई निवासी सुनैना होले के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द की।

    जस्टिस एसएस शिंदे और एमएस कार्णिक की खंडपीठ ने कहा कि,

    "हमारे विचारों को व्यक्त करने का अधिकार हमारे लोकतंत्र में संरक्षित और पोषित अधिकार है। केवल याचिकाकर्ता का दृष्टिकोण अतिवादी या कठोर है, इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि यह हेट स्पीच है क्योंकि वह एक अलग दृष्टिकोण रखता है।"

    मुंबई में बांद्रा मस्जिद के बाहर एकत्र हुए प्रवासी कामगारों पर एक टिप्पणी के साथ 14 अप्रैल 2020 को राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान एक वीडियो पोस्ट करने पर आईपीसी की धारा 153A (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वाला) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।

    वीडियो में एक व्यक्ति चिल्ला रहा है कि COVID- 19 महामारी दैवय घटना नहीं है बल्कि इसे एक प्रधान मंत्री द्वारा लाया गया है। पीठ ने देखा कि एक टिप्पणी के साथ वीडियो को फिर से पोस्ट करने के पीछे का इरादा केवल उस आदमी के परिप्रेक्ष्य की आलोचना करना था।

    यह मानते हुए कि उक्त ट्वीट एक अतिवादी विचार है जो भीड़ के एक सदस्य द्वारा व्यक्त किए गए विचार के प्रतिशोध में व्यक्त किया गया है जो महामारी के प्रकोप के लिए भारत के प्रधान मंत्री को दोषी ठहरा रहा था। इसके साथ ही यह देखना है कि उक्त ट्वीट पर एक समझदारी, उचित या विवेकपूर्ण व्यक्ति की प्रतिक्रिया क्या होगी।

    यदि उक्त ट्वीट के कंटेन्ट को देखते हुए एक समझदार या विवेकपूर्ण व्यक्ति की अगर विचार व्यक्त करे तो कल्पना के किसी भी खंड द्वारा यह नहीं कहा जा सकता है कि इस ट्वीट ने समुदायों के दो समूहों के बीच नफरत या दुश्मनी पैदा की। इस ट्वीट को पढ़ने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल है कि याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 153 ए के तहत कथित अपराध किया है।

    पीठ ने आगे कहा कि वीडियो को पोस्ट करने या प्रधानमंत्री को दोष देने वाले व्यक्ति के खिलाफ अपराध दर्ज नहीं किया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके बाद कोई अशांति नहीं फैली।

    पीठ ने कहा कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए राज्य की चिंता सही था, लेकिन इस आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी को इस आशंका पर दर्ज करना कि वही धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच घृणा या दुश्मनी को बढ़ावा दे सकता है या उसने ऐसा कृत्य किया है जो विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच सामंजस्य बनाए रखने के लिए पूर्वाग्रही है तो यह उचित नहीं है।

    पीठ ने कहा कि,

    "ट्वीट के बारे में अगर उचित और समझदारी के आधार पर व्यक्ति के द्वारा सोचा जाए तो हमारे मन में एक छोटा सा संदेह पैदा हो सकता है कि वह शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण व्यक्त कर रहा है। प्रतिवादी का दृष्टिकोण इस ट्वीट को लेकर अशांति फैलाने वाला लगा , जिससे याचिकाकर्ता द्वारा व्यक्त किए गए विपरीत दृष्टिकोण में खतरे को भांपने की कोशिश की जा रही है।"

    पीठ ने इससे संबंधित कई मह्तवपूर्ण निर्णयों की एक सूची का उल्लेख किया।

    1. एक नागरिक या यहां तक कि एक प्रभावशाली व्यक्ति किसी विवादास्पद या संवेदनशील विषय पर बोलने से बचने के लिए बाध्य नहीं है। यहां तक कि अगर किसी ने किसी मामले में अतिवादी राय व्यक्त की है तो वह हेट स्पीच नहीं है। (अमीश देवगन का मामला)

    2. यह एक पूर्ण प्रस्ताव नहीं है कि किसी को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एफआईआर को रद्द करने से पहले जांच पूरी होने तक इंतजार करना होगा क्योंकि यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। (मंजर सैय्यद खान और भजनलाल का मामला)

    3. आरोपियों की मंशा को आरोपियों द्वारा आसपास की परिस्थितियों के साथ इस्तेमाल किए गए शब्दों के आधार पर आंका जाना चाहिए। (मंजर सैय्यद खान का मामला)

    4. विचाराधीन बयान, जिसके आधार पर अभियुक्तों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, इस आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए कि उचित और समझदार व्यक्ति इस बयान के बारे में क्या सोचेंगे, न कि उस व्यक्ति के विचारों के आधार पर जिसे विपरीत दृष्टिकोण से खतरा महसूस होता है।। (मंजर सैय्यद खान का मामला)

    5. IPC की धारा 153A के तहत अपराध का गठन करने के लिए दो समुदायों को शामिल होना चाहिए। जब तक किसी एक समुदाय या समूह की भावना को किसी अन्य समुदाय या समूह द्वारा भड़काया नहीं जाता तब तक आईपीसी की धारा 153 A का मामला नहीं बनता है। (बिलाल अहमद कालू का मामला )

    6. लोगों को हिंसा के लिए उकसाने या अशांति फैलाने का इरादा रखना आईपीसी की धारा 153A के तहत मामला नहीं बनता है और मामले के लिए प्रथम दृष्टया अभियोजन पक्ष को व्यक्ति की के खिलाफ आरोप साबित करना होगा। (बलवंत सिंह का मामला)

    ठाकरे के खिलाफ किया गया ट्वीट

    वर्तमान एफआईआर के अलावा याचिकाकर्ता को उसके द्वारा पोस्ट किए गए विभिन्न ट्वीट्स के संबंध में आईपीसी की धारा 505 (2) और 500 (मानहानि) के तहत दो और एफआईआर दर्ज किया गया है।

    याचिकाकर्ता को पिछले साल अगस्त में गिरफ्तार किया गया था और फिर उसके खिलाफ बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स साइबर अपराध विभाग पुलिस द्वारा दर्ज मामले में जमानत पर रिहा कर दिया गया था। उसने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और राज्य के कैबिनेट मंत्री आदित्य ठाकरे के खिलाफ ट्वीट किया था।

    Appearances: होले की ओर से अधिवक्ता डॉ. अभिनव चंद्रचूड़, अधिवक्ता चंदनसिंह शेखावत, अधिवक्ता यशोवर्धन देशमुख, अधिवक्ता सेलि धायलकर, अधिवक्ता फरिश्ता मेनन पेश हुए।

    राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एम.एस. मोहित और वकील विवेक बाबर और एपीपी जयेश याग्निक पेश हुए। [सुनैना होले बनाम महाराष्ट्र राज्य]

    जजमेंट की कॉपी यहां पढ़ें:



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