मध्यस्थता और सुलह अधिनियम तथ्यों के आधार पर कोर्ट के मध्यस्थता आदेश में हस्तक्षेप को सीमित करता है : कलकत्ता हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

3 July 2020 2:15 AM GMT

  • मध्यस्थता और सुलह अधिनियम तथ्यों के आधार पर कोर्ट के मध्यस्थता आदेश में हस्तक्षेप को सीमित करता है : कलकत्ता हाईकोर्ट

    Calcutta High Court

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थ को तथ्यों के मूल्यांकन के संबंध में अंतिम अथॉरिटी माना जाता है बशर्ते ऐसे मूल्यांकन दोषपूर्ण और स्पष्ट रूप से असंगत न हों, और उस स्थिति में इस आदेश में कोई बदलाव नहीं हो सकता। अदालत ने कहा कि तथ्यात्मक आधार पर मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 अदालत के हस्तक्षेप को सीमित करती है।

    न्यायमूर्ति मौशुमी भट्टाचार्य ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 के तहत दायर एक आवेदन को ख़ारिज करते हुए यह कहा।

    इस मामले में आवेदनकर्ता ने पंचाट के फ़ैसले को इस आधार पर चुनौती दी थी कि यह दोषपूर्ण है और साक्ष्यों को नज़रअंदाज करने वाला है। साथ ही यह भारत की लोक नीति के ख़िलाफ़ है।

    पंचाट ने एकल मध्यस्थ के उस आदेश को सही ठहराया था जिसमें याचिककर्ता को ₹17,13,426 का राहत देने से मना कर दिया गया था जो कि मध्यस्थता की दोनों ही प्रक्रिया में दावेदार था। यह बकाया राशि याचिकाकर्ता को स्टॉक मार्केट में हुए कारोबार के तहत ट्रेडिंग कंपनी के एजेंट से मिलनी थी।

    अदालत ने आदेश पर ग़ौर करने के बाद कहा कि दस्तावेज़ी साक्ष्य से जो निष्कर्ष निकाले गए हैं, वे ऐसे नहीं हैं कि कोई अन्य इस परिस्थिति में इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता है या निष्कर्ष में महत्त्वपूर्ण साक्ष्यों की अनदेखी कर इसे भ्रष्ट कर दिया गया है। पंचाट के विचार विश्वसनीय और तर्कसंगत हैं और विभिन्न पक्षों ने जो तथ्य पेश किए हैं उस पर आधारित हैं।

    अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के हाल के फ़ैसले में इस बात पर जोर दिया गया है कि पंचाट के फ़ैसले में हस्तक्षेप पर कोर्ट के अधिकारों को सीमित किया गया है। इस बारे में मध्यस्थ को तथ्यों के मूल्यांकन को लेकर अंतिम अथॉरिटी माना गया है, बशर्ते कि इस तरह के मूल्यांकन दोषपूर्ण और स्पष्ट रूप से अतार्किक हों और अगर ऐसा नहीं है तो आदेश में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

    अदालत ने याचिका ख़ारिज कर दी और कहा कि आदेश में न तो कोई न्यायिक सोच के स्तर पर कमी है और न ही यह भारतीय लोक नीति के ख़िलाफ़ है।

    मामला: सिखा बसु बनाम बीएमए वेल्थ क्रीएटर्स लिमिटेड

    मामला नंबर: A.P. 641, 2016

    कोरम: न्यायमूर्ति मौशुमी भट्टाचार्य

    वक़ील: रूपक घोष एवं सौरव

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story