अत्यधिक नामांकन शुल्क वसूले जाने के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने बीसीआई और बीसीडी को नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

29 Jan 2020 10:08 AM GMT

  • अत्यधिक नामांकन शुल्क वसूले जाने के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने बीसीआई और बीसीडी को नोटिस जारी किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्‍ली बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा बहुत ज्यादा एनरॉलमेंट फी और अन्य शुल्क वसूले जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है।

    एनएलआईयू भोपाल के छात्र अंकित गुप्ता द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 24 (1) (एफ) में कहा गया है कि एडवोकेट के रूप में भर्ती होने के लिए, सामान्य वर्ग के व्यक्ति को स्टेट बार काउंसिल को 600 रुपए और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को 150 रुपए का भुगतान करना होगा।

    हालांकि, उक्त विधायी आदेश के विपरीत, दिल्ली बार काउंसिल ने 8,350 रुपए (नामांकन फॉर्म के 1,000 रुपए छोड़कर) का अतिरिक्त शुल्क लेती है, साथ यदि कोई आवेदक अपने नामांकन प्रक्रिया में तेजी लाना चाहता है कि तो उससे सर्कुलेशन फी के 3,000 रुपए भी लिए जाते हैं।

    जस्टिस नवीन चावला ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए मामले को 13 मई 2020 की तारीख तय की है।

    एनरॉलमेंट और सर्कुलेशन फी की वसूली अवैध

    याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि एडवोकेट्स एक्‍ट, 1961 के प्रावधानों के अनुसार, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम भी स्टेट बार काउंसिल को एनरॉलमेंट और सर्कुलेशन के लिए इस प्रकार के अतिरिक्त शुल्क लगाने की अनुमति नहीं देते हैं। इसलिए, इस प्रकार से बहुत ही ज्यादा अतिरिक्त एनरॉलमेंट और सर्कुलेशन फी वसूलना गैरकानूनी और स्वेच्छाचारी है और एडवोकट्स एक्ट, 1961 के प्रावधानों का उल्लंघन है।

    मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अहमदाबाद अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम शरदकुमार जयंतिकुमार पासवाला व अन्य (1992) 3 एससीसी 285 मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा जताया गया।

    याचिकाकर्ता ने मामले में कोशी टीवी बार काउंसिल ऑफ केरल व अन्य, आईएलआर 2017, (3) केरल 201 के मामले में केरल हाईकोर्ट के एक फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें यह कहा गया था-

    "संसद ने धारा 24 (1) (एफ) के तहत एक विशिष्ट प्रावधान शामिल कर अपना उद्देश्य और नीति को लगातार स्पष्ट किया है कि एनरॉलमेंट फी का चार्ज 750 रुपए तक ही सीमित होगा, यह भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1989 के प्रावधानों के तहत, वैध स्टाम्‍प ड्यूटी, जो शुल्क हो सकता है, के अधीन होगा.


    न तो बार काउंसिल ऑफ इंडिया, धारा 49(1) के तहत प्राप्त अपनी शक्तियों के जरिए और न ही स्टेट बार काउंसिल ने धारा 28 (2) के तहत प्राप्त अपनी शक्तियों के आधार पर, एनरॉलमेंट फी की अनुशंसा के लिए नियम बनाने का अधिकार क्षेत्र और योग्यता रख सकती हैं, जो संसद में पहले से लागू किए गए धारा 24 (1) (एफ) से भिन्न हो।"

    एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरण के लिए शुल्क वसूलना अवैध है

    याच‌िकाकर्ता ने एक वकील के नाम को एक स्टेट रोल से दूसरे स्टेट रोल पर ट्रांसफर किए जाने पर फीस लगाने के अधिकार को भी चुनौती दी है।

    उन्होंने कहा कि एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 18 में स्पष्ट है कि एक स्टेट रोल से दूसरे में नाम का हस्तांतरण बिना किसी शुल्क के भुगतान के किया जाना है। हालांकि, बार काउंसिल ऑफ इंडिया 2000 रुपए प्रोसेस फी के रूप में और दिल्ली बार काउंसिल ऑफ दिल्ली 1000 रुपए ऐसे हस्तांतरण के लिए एनओसी देने के लिए ले रही है।

    इसलिए ऐसे स्थानांतरण के लिए एक वकील को 3000 रुपए देने पड़ रहे हैं, जो अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 18 के खिलाफ है।

    फंड्स के ‌लिए अतिरिक्त शुल्क वसूलना गैरकानूनी है

    याचिकाकर्ता ने दिल्‍ली बार काउंसिल द्वारा विभिन्न फंडों के लिए अतिरिक्त नामांकन शुल्क लगाने के फैसले को भी चुनौती दी है।

    उन्होंने कहा कि एक आवेदक को फंड के लिए पैसा देने को मजबूर नहीं किया जा सकता है क्योंकि एडवोकट्स एक्ट का कोई प्रावधान राज्य बार काउंसिल को एक आवेदक से इन निधियों के लिए पैसा वसूलने का अधिकार नहीं देता है और उससे भी अधिक नामांकन के लिए शर्त बनाकर ऐसा करने का अधिकार नहीं देता है।

    केरल बार काउंसिल द्वारा अनुशंसित नामांकन शुल्क के विरोध में ऐसी ही एक याचिका केरल हाईकोर्ट में लंबित है।



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