भावनाओं को प्रभावित करने वाला हर कृत्य आपराधिक नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट ने विभागीय जांच के दौरान प्रताड़ित करने के आरोपी डीएसपी के खिलाफ कार्यवाही रद्द की
Shahadat
14 March 2023 10:51 AM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में डीएसपी, राजकीय रेलवे पुलिस के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 406 और धारा 420 के तहत आपराधिक कार्यवाही इस आधार पर रद्द कर दी कि उनके खिलाफ आरोप लगाए गए थे। याचिकाकर्ता ने उक्त प्रावधानों के तहत किसी संज्ञेय अपराध नहीं किया।
जस्टिस राय चट्टोपाध्याय की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,
"इस मामले में अजीबोगरीब रूप से पर्याप्त है कि शिकायत पक्षपात के कथित कृत्यों का खुलासा करती है, वर्तमान याचिकाकर्ता द्वारा शिकायतकर्ता को सुनवाई का अवसर नहीं देना और सबसे खराब मारपीट और उसे डराना और उसे कारावास में डालना... इनमें से कोई भी कार्य कभी भी अभियुक्त व्यक्ति/याचिकाकर्ता के विरुद्ध आरोपित अपराध की सामग्री के दायरे में नहीं किया गया। शिकायतकर्ता को धोखा देने के उद्देश्य से उत्प्रेरणा या प्रलोभन का कोई आरोप नहीं है, या वर्तमान याचिकाकर्ता के इरादे की कोई अभियोज्यता शिकायतकर्ता की सौंपी गई संपत्तियों में से किसी को भी गलत तरीके से पेश करने का नहीं है।"
मामले के तथ्य
शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता सहित तीन लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उनके खिलाफ घिनौने आरोपों पर विभागीय जांच कराई गई। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने उक्त विभागीय कार्यवाही में जांच अधिकारी होने के नाते अन्य आरोपी व्यक्ति द्वारा सहायता प्राप्त होने पर बार-बार अपमानित किया और अन्य आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ जांच में झूठ बोलने के लिए राजी किया।
शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को मामले में झूठे फंसाने की धमकी देकर डराया और अपने वकील को अपना बचाव करने की अनुमति नहीं दी। शिकायत में यह भी आरोप लगाया कि शिकायतकर्ता को गलत तरीके से रोका गया और सभी आरोपी व्यक्तियों द्वारा उसके साथ मारपीट की गई।
ट्रायल कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 200 के तहत शिकायतकर्ता की जांच की और 30 मई, 2022 को आदेश जारी कर आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 406 और 420 के तहत अपराध का संज्ञान लेने के बाद समन जारी किया और पाया कि वर्तमान याचिकाकर्ता सहित आरोपी व्यक्ति के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
ट्रायल कोर्ट के आक्षेपित आदेश से व्यथित होकर उक्त आदेश रद्द कराने के लिए याचिकाकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
कोर्ट का अवलोकन
अदालत ने कहा,
"शिकायतकर्ता व्यथित भी हो सकता है। हालांकि वह इस मामले में वर्तमान याचिकाकर्ता के किसी भी अपराध या अपराध की नींव नहीं रख पाया। किसी अन्य व्यक्ति के व्यवहार या आचरण से व्यक्ति अपने भावनात्मक स्तर पर व्यथित हो सकता है, लेकिन इस तरह की हर कार्रवाई को दोषी या आपराधिक नहीं माना जाएगा, जब तक कि उस व्यक्ति के खिलाफ कथित अपराध कानून के आवश्यक अवयवों को न्यायोचित ठहराने वाले कानून के निर्धारित प्रावधानों के आधार पर ऐसा करने के लिए संतुष्ट न हो।
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कथित अपराध की सामग्री के साथ शिकायत में उल्लिखित कथित कृत्यों का कोई संबंध या असर नहीं है।
अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट का यह निष्कर्ष कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है, कानून द्वारा ट्रायल कोर्ट में निहित शक्ति के बेशर्म और लापरवाह प्रवचन से ग्रस्त है।
अदालत ने कहा,
"यह न केवल व्यापक शक्ति है, बल्कि ट्रायल कोर्ट के लिए बड़ी जिम्मेदारी भी है कि वह शिकायत के माध्यम से प्रथम दृष्टया अपराध के चार्टर का वजन करे, जिसके लिए उक्त न्यायालय अपराध को साबित करने के लिए प्रथम दृष्टया अपराध का चित्रण करने वाली शिकायत के आख्यान के आधार पर पूरे राज्य सिस्टम को शामिल करने की कुंजी है। ऐसा करने में उसकी विफलता न केवल याचिकाकर्ता के प्रति पूर्वाग्रह पैदा करेगी, बल्कि कानून के शासन को भी खतरे में डाल देगी।”
अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत और उसके बाद की कार्यवाही इस आधार पर रद्द कर दी कि इसे जारी रखना केवल कानून और अदालत की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग होगा।
केस टाइटल: अभिजीत साहा बनाम राज्य और अन्य।
कोरम: जस्टिस राय चट्टोपाध्याय
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