'उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों और गांवों की संपूर्ण चिकित्सा प्रणाली राम भरोसे है': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने COVID-19 स्वत: संज्ञान मामले में कहा

LiveLaw News Network

18 May 2021 6:15 AM GMT

  • उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों और गांवों की संपूर्ण चिकित्सा प्रणाली राम भरोसे है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने COVID-19 स्वत: संज्ञान मामले में कहा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की स्थिति राम भरोसे (भगवान की दया पर) है।

    जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजीत कुमार की डिवीजन बेंच ने कहा कि,

    "छोटे शहरों और गांवों से संबंधित राज्य की पूरी चिकित्सा प्रणाली प्रसिद्ध हिंदी कहावत 'राम भरोसे' है।"

    कोर्ट ने यह टिप्पणी मेरठ जिले के एक जिला अस्पताल से COVID रोगी के लापता होने के मामले में की। इससे पहले कोर्ट ने इस मामले में रिपोर्ट मांगी थी।

    बेंच ने मामले के पूरे तथ्य पर ध्यान देते हुए कहा कि यह उस समय ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों की ओर से की गई लापरवाही का मामला है।

    बेंच ने कहा कि,

    "एक मरीज को डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की पूरी देखभाल में अस्पताल में भर्ती कराया जाता है और अगर डॉक्टर और पैरा मेडिकल स्टाफ इस तरह के आकस्मिक दृष्टिकोण को अपनाते हैं तो यह कृत्य लापरवाही दिखाता है और यह गंभीर कदाचार का मामला है क्योंकि इस तरह निर्दोष लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा है।"

    बेंच ने राज्य सरकार को जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा है। कोर्ट सरकार को उन आश्रितों को मुआवजा देने का भी निर्देश दिया है, जिन्हें इस तरह की लापरवाही के कारण अपूरणीय क्षति हुई है।

    कोर्ट ने आदेश दिया कि,

    "अतिरिक्त मुख्य सचिव (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य), उत्तर प्रदेश सरकार को इस मामले में जिम्मेदारी तय करते हुए एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया जाता है। मुख्य सचिव की ओर से एक हलफनामा भी दायर किया जाएगा कि सरकार का क्या रुख है और वे मृतक के आश्रितों को किस तरह से मुआवजा देंगे। आवश्यक अनुपालन हलफनामा एक सप्ताह के भीतर दायर किया जाए।"

    पृष्ठभूमि

    64 वर्षीय संतोष कुमार 22 अप्रैल को जिला अस्पताल मेरठ से लापता हो गया। तीन सदस्यीय कमेटी द्वारा की गई जांच में यह बात सामने आई है कि उस दिन जब मरीज वाशरूम गया तो वहीं बेहोश हो गया।

    जूनियर रेजिडेंट डॉ. तूलिका जो नाइट ड्यूटी पर थीं, उन्होंने बताया कि डॉ अंशु जिनकी नाइट ड्यूटी पर थी वो ड्यूटी पर मौजूद नहीं थे.

    जूनियर रेजिडेंट डॉ. तूलिका यह भी कहा कि संतोष कुमार को बेहोशी की हालत में स्ट्रेचर पर लाया गया और उसे होश में लाने का प्रयास किया गया, लेकिन उसने दम तोड़ दिया और जब उसे होश में लाने का प्रयास किया जा रहा था तब तक सुबह 8 बजे की टीम आ चुकी थी।

    जब संतोष कुमार को अस्पताल में भर्ती कराया गया उस समय ड्यूटी पर मौजूद डॉ. तनिष्क उत्कर्ष ने शव को वहां से हटा दिया गया और व्यक्ति की पहचान करते समय उसका शव वहां मौजूद ही नहीं था। वह आइसोलेशन वार्ड में मरीज की फाइल ट्रेस नहीं कर पाया और मरीजों की संख्या व फाइल गिनने के बाद भी मृतकों की शिनाख्त नहीं हो सकी। ऐसे में इसे अज्ञात शव का मामला माना गया।

    बेंच ने शुरुआत में कहा कि,

    "यह काफी आश्चर्यजनक है कि डॉ तनिष्क उत्कर्ष और उनकी टीम जो 21.04.2021 को मरीज के भर्ती होने के समय ड्यूटी पर थी, वह खुद उस व्यक्ति की पहचान नहीं कर सका।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "यदि मेरठ जैसे शहर के मेडिकल कॉलेज में इलाज की यह स्थिति है तो छोटे शहरों और गांवों से संबंधित राज्य की पूरी चिकित्सा प्रणाली तो एक प्रसिद्ध हिंदी कहावत 'राम भरोसे' होगी।"

    केस का शीर्षक: क्वारंटाइन सेंटरों में अमानवीय स्थिति

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:





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