750 रुपये से ऊपर कोई इनरोलमेंट फीस नहीं : केरल हाईकोर्ट ने बार काउंसिल को अंतरिम आदेश दिया

Sharafat

15 Feb 2023 3:21 PM GMT

  • 750 रुपये से ऊपर कोई इनरोलमेंट फीस नहीं : केरल हाईकोर्ट ने बार काउंसिल को अंतरिम आदेश दिया

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को एक अंतरिम आदेश पारित किया जिसमें कहा गया कि बार काउंसिल संभावित वकीलों का नामांकन करते समय कानून के तहत निर्धारित 750/- रुपये से अधिक इनरोलमेंट फीस लेने का हकदार नहीं है।

    जस्टिस शाजी पी चाली ने उक्त आदेश कोशी टीवी बनाम बार काउंसिल ऑफ केरला, एर्नाकुलम और अन्य (2017 केएचसी 553) में हाईकोर्ट के फैसले के मद्देनजर पारित किया, जिसमें कहा गया था कि कानून के तहत किसी विशिष्ट शक्ति के बिना, बार काउंसिल कानून के तहत निर्धारित 750/- रुपये के शुल्क के अलावा अन्य फीस लेने का हकदार नहीं है।

    याचिकाकर्ताओं ने आगामी इनरोलमेंट में 750/- रुपये की फीस के साथ याचिकाकर्ताओं के आवेदन को स्वीकार करने के लिए बार काउंसिल ऑफ केरल को निर्देश देने के लिए अंतरिम राहत की मांग की थी। अदालत ने मांगी गई अंतरिम राहत देते हुए कहा कि:

    "जब इस विशिष्ट प्रश्न पर कोशी टी (सुप्रा) में इस न्यायालय द्वारा विचार किया गया था, जो निर्णायक और अंतिम है, तो मेरी ओर से याचिकाकर्ताओं को बार काउंसिल द्वारा दावा की गई पूरी राशि का भुगतान करने और इनरोलमेंट के लिए आवेदन प्राप्त करने का निर्देश देना उचित नहीं होगा।"

    याचिकाकर्ता जो लॉ ग्रेजुएट हैं और आगामी इनरोलमेंट में बार काउंसिल ऑफ केरल में एडवोकेट के रूप में नामांकन करने के इच्छुक हैं। उन्होंने केरल बार काउंसिल द्वारा लगाए जा रहे 15,900/- रुपये के "अत्यधिक और अवैध शुल्क" के मद्देनजर रिट याचिका दायर की।

    याचिका में कहा गया है कि कुछ याचिकाकर्ताओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार भी शामिल हैं, जो निम्न आय पृष्ठभूमि से हैं, जिनके लिए इस तरह की उच्च फीस "एक भारी वित्तीय बोझ" है।

    बार काउंसिल ऑफ केरल के वकील ने तर्क दिया कि 750/- रुपये की मामूली राशि संभावित उम्मीदवारों के नामांकन के लिए बार काउंसिल द्वारा किए गए खर्च को पूरा नहीं करेगी।

    दायर की गई याचिका में याचिकाकर्ताओं का विशिष्ट तर्क यह है कि अधिवक्ता अधिनियम की धारा 24(1)(एफ) के तहत 750/- रु की इनरोलमेंट फीस लगाई गई है। याचिका में कहा गया है कि बार काउंसिल ऑफ केरल द्वारा पारित कोई भी नियम, जो खुद को अधिक फीस लगाने का अधिकार देता है, उसकी शक्तियों के दायरे से बाहर है।

    याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अधिक फीस लगाने से "कई इच्छुक वकीलों के लिए पेशे में प्रवेश के लिए पर्याप्त वित्तीय बाधा खड़ी करके पेशे तक पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य को भारी झटका लगता है।"

    याचिकाकर्ताओं ने इनरोलमेंट फीस के साथ चेयरमैं रिलीफ फंड में ली जा रही 1000/- रुपये की राशि के खिलाफ भी चुनौती दी है, जो कि याचिकाकर्ता के अनुसार किसी अन्य रूप में अतिरिक्त इनरोलमेंट फीस नहीं है। प्रत्येक उम्मीदवार से बार काउंसिल ऑफ इंडिया वेलफेयर फंड के लिए 3000/- रुपए एकत्र किए जाने पर भी याचिकाकर्ताओं द्वारा सवाल उठाया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इतनी राशि का भुगतान करने का दायित्व केवल वकीलों का है न कि संभावित वकीलों का।

    याचिकाकर्ताओं ने इस संबंध में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के नियम 40, भाग VI, अध्याय II, खंड IV A का विशेष संदर्भ दिया।

    अपनी बात पर जोर देने के लिए, याचिकाकर्ताओं ने मुंबई में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा द्वारा आयोजित सम्मान कार्यक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ द्वारा हाल ही में दिए गए एक बयान का हवाला दिया, जिसमें सीजेआई ने कहा था,

    “इनरोलमेंट करना बहुत महंगा है। बार काउंसिल को इस बात पर फिर से विचार करना चाहिए कि वे इनरोलमेंट के लिए कितनी फीस लेते हैं।”

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अखिल भारतीय बार परीक्षा की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा था कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य बार काउंसिल द्वारा एक समान फीस ली जाए और इनरोलमेंट फीस दमनकारी न हो।

    याचिकाकर्ताओं के वकील : एडवोकेट संतोष मैथ्यू, अरुण थॉमस, कार्तिका मारिया, वीना रवींद्रन, अनिल सेबेस्टियन पुलिकेल, अबी बेनी आरीकल, मैथ्यू नेविन थॉमस, कुरियन एंटनी मैथ्यू, कार्तिक राजगोपाल, मनसा बेनी जॉर्ज, सनिता साबू वर्गीस,

    प्रथम प्रतिवादी के लिए वकील (केरल की बार काउंसिल): एडवोकेट ग्रेशियस कुरियाकोस

    केस टाइटल : अक्षय एम. सिवन और अन्य वी बार काउंसिल ऑफ केरला और अन्य

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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