अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत शिक्षा "सामान्य व्यवसाय" नहीं; मुनाफाखोरी की अनुमति नहीं: याचिकाकर्ताओं ने निजी स्कूलों की फीस के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में कहा
LiveLaw News Network
7 Aug 2021 11:20 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार और छात्रों द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली सरकार द्वारा 18 अप्रैल और 28 अगस्त 2020 को जारी दो आदेशों को रद्द करने वाले एकल न्यायाधीश की पीठ के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें COVID-19 लॉकडाउन के बीच छात्रों से निजी स्कूलों द्वारा वार्षिक फीस और डेवलपमेंट फीस की वसूली करने से रोक दिया गया था।
अधिवक्ता खगेश झा ने जस्टिस फॉर ऑल एनजीओ और अन्य निजी अपीलकर्ताओं की ओर से अपनी दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा कि टीएमए पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य के फैसले ने स्कूल फीस को विनियमित करने के दायरे को प्रतिबंधित कर दिया, जिसका उद्देश्य छात्रों / उनके माता-पिता के शोषण की अनुमित देना नहीं है।
एडवोकेट झा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि निर्णय स्वयं एक उचित फीस संरचना पर विचार करता है और निजी मान्यता प्राप्त गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा शिक्षा के "व्यावसायीकरण की रोकथाम" के उद्देश्य से फीस को विनियमित करने के लिए डीओई को अधिकार देता है।
इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ कर रही थी।
एडवोकेट झा ने अपनी दलीलें जारी रखते हुए मॉडर्न डेंटल कॉलेज बनाम मध्य प्रदेश राज्य एंड अन्य के मामले पर भरोसा जताया।
एडवोकेट झा ने कोर्ट को सूचित किया कि सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने इस मामले में स्पष्ट रूप से कहा है कि जब सरकार के संज्ञान में आता है कि कोई विशेष संस्थान फीस या अन्य फीस ले रहा है जो अत्यधिक है, तो उसे एक संस्था को फीस कम करने के लिए निर्देश जारी करने का अधिकार है तो शक्ति सिर्फ विनियमित करने के लिए नहीं है। शक्ति अत्यधिक फीस को कम करने की भी है।
डवोकेट झा ने कहा कि हालांकि फीस शैक्षणिक संस्थानों द्वारा तय किया जा सकता है और यह प्रत्येक संस्थान द्वारा प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता के आधार पर एक संस्थान से दूसरी संस्थान में भिन्न हो सकता है, लेकिन व्यावसायीकरण की अनुमति नहीं है। यह देखने के लिए कि शैक्षणिक संस्थान व्यावसायीकरण और शोषण में शामिल नहीं हैं, सरकार नियामक उपाय करने के लिए आवश्यक शक्तियों से लैस है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि ये शैक्षणिक संस्थान शिक्षा के प्रसार के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहें, न कि पैसा बनाने के लिए।
आगे कहा कि पीए इनामदार बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में यह आयोजित किया गया था कि,
"यह न्यायालय शिक्षा के व्यावसायीकरण की कठोर वास्तविकताओं और कई संस्थानों द्वारा अपने निजी या स्वार्थी उद्देश्यों के लिए बड़ी मात्रा में अर्जित करने के लिए अपनाई जा रही कुरीतियों पर अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता है। यदि कैपिटेशन फीस और मुनाफाखोरी की जांच की जानी है, तो प्रवेश की विधि को विनियमित किया जाए ताकि प्रवेश योग्यता और पारदर्शिता के आधार पर हो और छात्रों का शोषण न हो। अभी बताए गए उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए प्रवेश और फीस संरचना को विनियमित करने की अनुमति है।"
एडवोकेट झा ने जोर देकर कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत शिक्षा एक "व्यवसाय" हो सकती है। हालांकि, इसे "सामान्य व्यवसाय" नहीं कहा जा सकता है और यह एक "विशेष व्यवसाय" है जो मुख्य रूप से प्रकृति में चैरिटेबल है।
शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह पेश हुए।
दिल्ली सरकार ने पिछले सुनवाई के दौरान प्रस्तुत किया कि निजी स्कूलों को लॉकडाउन में छात्रों से वार्षिक फीस और डेवलपमेंट फीस लेने की अनुमति देते हुए एकल न्यायाधीश पूरी तरह से निषिद्ध क्षेत्र में चले गए थे। यह कहा गया कि एकल न्यायाधीश के पास मामले से निपटने के दौरान उच्च न्यायालय की खंडपीठ के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की अनदेखी करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
इससे पहले न्यायमूर्ति रेखा पल्ली और न्यायमूर्ति अमित बंसल की अवकाश पीठ ने उक्त फैसले पर रोक लगाने की प्रार्थना करने वाली अंतरिम याचिका को खारिज करते हुए अपीलों में नोटिस जारी किया था।
न्यायमूर्ति जयंत नाथ की एकल न्यायाधीश पीठ द्वारा पारित आदेश की आलोचना करते हुए याचिकाएं दायर की गई थीं।
पीठ ने कहा था कि,
"यह कृत्य उक्त स्कूलों के लिए प्रतिकूल हैं और उनके कामकाज में एक अनुचित प्रतिबंध का कारण बनेंगे। उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों में, स्पष्ट रूप से प्रतिवादी द्वारा जारी किए गए 18.04.2020 और 28.08.2020 के आदेश इस हद तक हैं कि याचिकाकर्ता/वार्षिक फीस और डेवलपमेंट का संग्रह स्थगित करने या प्रतिबंधित कर रहे हैं जो कि गैर कानूनी है और डीएसई अधिनियम और नियमों के तहत निर्धारित प्रतिवादी की शक्तियों का उल्लंघन करता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार के आदेश रद्द कर दिए जाते हैं।"
अदालत ने कहा कि शिक्षा विभाग के पास ऐसे गैर-सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों द्वारा केवल शिक्षा के व्यावसायीकरण को रोकने के उद्देश्य से फीस तय करने और एकत्र करने की शक्ति है। यह देखते हुए कि आदेशों द्वारा कोई निष्कर्ष दर्ज नहीं किया गया कि वार्षिक फीस और डेवलपमेंट फीस का संग्रह निजी गैर-मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों द्वारा मुनाफाखोरी या कैपिटेशन फीस के संग्रह के समान है।
केस का शीर्षक: शिक्षा निदेशालय बनाम एक्शन कमेटी गैर-मान्यता प्राप्त निजी स्कूल