'जल्दी फैसलें लेकर बचाई जा सकती थी जान': बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र से डोर-टू-डोर वैक्सीनेशन पर कहा

LiveLaw News Network

9 Jun 2021 1:30 PM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बुजुर्ग और चलने-फिरने में असमर्थ लोगों के लिए डोर-टू-डोर वैक्सीनेशन की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि केंद्र जनहित के लिए निर्णय ले रहा है। हालाँकि, वर्तमान परिदृश्य में उन निर्णयों में देरी हुई है, जबकि वायरस पर ''सर्जिकल स्ट्राइक''की आवश्यकता है।

    पीठ कई अदालती आदेशों के बाद हाल ही में तैयार की गई केंद्र की नियर-टू-होम COVID टीकाकरण केंद्र नीति का हवाला दे रही थी। केंद्र के हलफनामे के अनुसार, COVID19 वैक्सीन प्रशासन पर उनके राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह (एनईजीवीएसी) ने डोर-टू-डोर वैक्सीनेशन की तुलना में नियर-टू-डोर वैक्सीनेशन को अधिक उपयुक्त पाया है।

    मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता ने कहा कि,

    ''कोरोना अब समाज का सबसे बड़ा दुश्मन है। यह कुछ ऐसे व्यक्तियों के अंदर भी आ सकता है जो बाहर नहीं आ सकते हैं। आपका दृष्टिकोण सर्जिकल स्ट्राइक जैसा होना चाहिए। लेकिन आप केवल सीमाओं के पास अपनी सेना को इकट्ठा कर रहे हैं। आप वायरस पर स्ट्राइक करने के लिए किसी भी क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर रहे हैं। लोगों को आपके पास आना पड़ रहा है।

    अन्य राज्यों को देखें, उन्होंने क्या किया है। आप जनहित के लिए फैसले ले रहे हैं, लेकिन लगता है आपके फैसलों में देरी हो रही है। यदि यह निर्णय आप पहले ले लेते , तो इससे कई लोगों की जान बच जाती।''

    मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ ने यह मौखिक टिप्पणी उस समय की,जब जनहित याचिका दायर करने वाली याचिकाकर्ता एडवोकेट ध्रुति कपाड़िया ने कोर्ट के समक्ष बताया कि केरल ने बिस्तर से उठने में असमर्थ लोगों के लिए घर-घर जाकर टीकाकरण करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं, और यहां तक कि कश्मीर के खानाबदोशों को भी टीका लगाया गया है। कपाड़िया ने ग्रामीणों को टीका लगाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बाइक से जाने वाले लोगों के ट्वीट का हवाला दिया।

    कोर्ट ने इस जानकारी के बाद बृहन् मुंबई नगर निगम (बीएमसी) और केंद्र दोनों को टास्क पर लिया, यह देखते हुए कि रांची सहित केरल और कश्मीर के कई इलाकों में घर-घर जाकर टीकाकरण किया जा रहा है, लेकिन महाराष्ट्र में नहीं।

    पीठ ने बीएमसी को यह बताने के लिए कहा है कि कैसे महाराष्ट्र में एक 'वरिष्ठ राजनेता' घर पर वैक्सीन प्राप्त करने में कामयाब रहा, जबकि बीएमसी का लगातार स्टैंड यह रहा है कि वह केंद्र की मंजूरी के बाद ही घर-घर जाकर टीकाकरण शुरू कर सकता है। कोर्ट ने पूछा कि ''शुरुआत में ही, एक राजनेता ने अपने घर में टीका लगवाया, यह किसने किया राज्य या बीएमसी?''

    बीएमसी के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल सखारे ने कहा कि वह कल निर्देश लेकर इस मामले में जवाब देंगे। इस पर पीठ ने कहा कि,''कल नहीं, हम अभी जवाब चाहते हैं! आज हम जानना चाहते हैं कि क्या है? हम कह रहे हैं कि आप (राज्य) पूरे देश के लिए मॉडल हैं। क्या केरल ने केंद्र सरकार की अनुमति के लिए इंतजार किया?''

    हालाँकि, जब बेंच को पता चला कि केंद्र ने राज्य या बीएमसी को घर-घर टीकाकरण की अनुमति देने से इनकार कर दिया है, तो कोर्ट यह समझने के लिए केंद्र की ओर मुड़ी कि अन्य राज्यों में ऐसी नीति क्यों नहीं अपनाई जा रही है?

    केंद्र के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने प्रस्तुत किया कि प्रत्येक व्यक्ति को टीका लगाया जाना चाहिए, चाहे वह बिस्तर पर हो या नहीं। ''हम एक नया एसओपी जारी करेंगे। यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी का टीकाकरण हो। हम भी चिंतित हैं और इस पर काम कर रहे हैं। हम बार-बार स्थिति की समीक्षा करेंगे।''

    इस जवाब पर अदालत ने उनसे पूछा कि केरल के डोर-टू-डोर दिशानिर्देशों पर केंद्र का विचार क्या है? ''अगर कोई राष्ट्रीय नीति है कि प्रत्येक राज्य सरकार को केंद्र की मंजूरी लेनी होगी, तो इसे सभी राज्यों पर लागू करना चाहिए। अगर केरल, जम्मू-कश्मीर, बिहार ने ऐसा किया है, तो बॉम्बे अनुमति क्यों मांगे?''

    पीठ ने मामले को शुक्रवार के लिए स्थगित करने से पहले कहा, ''यह दक्षिण, पूर्व और उत्तर में हो रहा है। पश्चिम में क्यों नहीं?''

    मंगलवार को पीठ ने कहा था कि वह नियर-टू-डोर टीका नीति पर केंद्र द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना करती है। ''याचिकाकर्ता ने डोर-टू-डोर कहा, और आप कह रहे हैं कि यह नियर-टू-डोर होनी चाहिए। आप उन तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।''

    हालांकि, पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से कहा था कि वह इस संबंध में निर्देश लें और अदालत को सूचित करें कि केंद्र उन लोगों की कठिनाइयों को दूर करने की क्या योजना बना रहा है जो टीकाकरण तक नहीं पहुंच सकते हैं।

    पीठ दो अधिवक्ताओं ध्रुति कपाड़िया और कुणाल तिवारी की तरफ से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को 75 वर्ष से अधिक उम्र के नागरिकों, शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों और बिस्तर से उठने में असमर्थ लोगों के लिए डोर-टू-डोर वैक्सीनेशन अभियान शुरू करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

    केस का शीर्षकः ध्रुति कपाड़िया बनाम यूओआई

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