मरने से पहले दिया गया बयान दोषसिद्धि का एकमात्र आधार तभी हो सकता है जब यह सुसंगत होः कलकत्ता हाईकोर्ट ने हत्या के दोषी को राहत दी

Manisha Khatri

27 April 2023 12:45 PM GMT

  • मरने से पहले दिया गया बयान दोषसिद्धि का एकमात्र आधार तभी हो सकता है जब यह सुसंगत होः कलकत्ता हाईकोर्ट ने हत्या के दोषी को राहत दी

    Calcutta High Court

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में एक हत्या के दोषी की दोषसिद्धि को इस आधार पर खारिज कर दिया कि मरने से पहले दिया गया बयान संदिग्ध था।

    जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस अजय कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने कहाः

    ‘‘मृत्युपूर्व बयान दोषसिद्धि का एकमात्र आधार हो सकता है, बशर्ते कि यह सुसंगत हो। जब अभियोजन पक्ष के गवाहों के अनुसार मरने से पहले दिए गए बयान की सामग्री अपीलकर्ता की भूमिका की तुलना में एक दूसरे से भिन्न हो, तो उसके खिलाफ अपराध का पता लगाने के लिए ऐसे सबूतों पर भरोसा करना खतरनाक होगा।’’

    निचली अदालत ने अपीलार्थी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और धारा 34 के तहत 2 अप्रैल, 2019 को दोषी ठहराया था और 3 अप्रैल, 2019 को उसे आजीवन कारावास और 5000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। अपीलकर्ता ने निचली अदालत के आक्षेपित निर्णय और आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    अपीलकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है। आगे यह तर्क दिया गया कि मरने से पहले दिए गए बयान में अपीलकर्ता की भूमिका के बारे में जैसा कि विभिन्न गवाहों द्वारा बताया गया है, एक दूसरे से भिन्न थी और इसलिए, उन्होंने बरी करने की प्रार्थना की।

    अदालत ने कहा कि अभियोजन का मामला पूरी तरह से पीड़ित के मरने से पहले दिए गए मौखिक बयान पर निर्भर करता है। हाईकोर्ट ने कहा,

    ‘‘पीडब्ल्यू-6, 7, 8, 11, 13, 14 व 20 ने बयान दिया कि पीड़ित ने अपना बयान उनके समक्ष दिया था। पीडब्ल्यू- 6, 7 और 8 (पुलिस अधिकारी) जो लक्ष्मीपुर कैंप (घटना स्थल) पर मौजूद थे। पीडब्ल्यू-6 ने बताया पीड़ित घायल अवस्था में पुलिस कैंप में आया था। वह चिल्ला रहा था। उसने उन्हें बताया कि परिमल (अपीलकर्ता-आरोपी) और भोंडुल (सह-आरोपी) ने उसके साथ मारपीट की। पीडब्ल्यू-8 ने बताया कि पीड़ित ने उन्हें बताया कि परिमल ने उसे रोका था जबकि भोंडुल ने मारपीट की थी। लेकिन पीडब्ल्यू-7 ने कहा कि पीड़ित ने केवल भोंडुल का नाम लिया था।’’

    अदालत ने नोट किया कि मरने से पहले दिए गए बयान की सामग्री के संबंध में पुलिस अधिकारियों (पीडब्ल्यू-6, 7 और 8) का बयान एक जैसा नहीं था।

    अदालत ने आगे कहा कि पीडब्ल्यू- 9 उस समय मौके पर आया था जब अन्य गवाहों यानी पीडब्ल्यू-11, 13, 14 और 20 मौके पर पहुंचे थे। पीडब्ल्यू-9 के अनुसार पीड़ित ने मौके पर पहुंचने पर मृत्यु पूर्व बयान नहीं दिया था।

    अदालत ने कहा कि पीडब्ल्यू- 9 ने उन गवाहों का खंडन किया जिन्होंने दावा किया था कि मृत्युकालिक बयान उनकी उपस्थिति में दिया गया था जब वे घटना को सुनने के बाद गांव से आए थे। जिसने उनके बयानों की विश्वसनीयता के संबंध में संदेह पैदा किया है कि मृत्युकालिक बयान उनकी उपस्थिति में दिया गया था।

    अदालत ने आगे यह नोट किया कि पीड़ित का इलाज करने वाले डॉक्टर (पीडब्ल्यू-17) द्वारा प्रस्तुत चोट रिपोर्ट में अपीलकर्ता का नाम अनुपस्थित था।

    अदालत ने कहा,‘‘उपरोक्त परिस्थिति अभियोजन पक्ष के मामले की जड़ पर प्रहार करती है कि पीड़ित ने बाद में अपने रिश्तेदारों और सह-ग्रामीणों को मरने से पहले बयान दिया था, जो घटना के बारे में सुनने के बाद मौके पर पहुंचे थे। इसलिए, मैं उनके बयानों पर विश्वास नहीं करता। भले ही कोई यह मानता हो कि मरने से पहले दिए गए बयान के संबंध में पीडब्ल्यू- 6, 7 और 8 का बयान विश्वसनीय हैं, परंतु मुख्य हमलावर भोंडुल की तुलना में, उक्त गवाहों का बयान अपीलकर्ता की भूमिका के संबंध में भिन्न है।’’

    इस प्रकार, अदालत ने अपीलकर्ता को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।

    केस टाइटल- परिमल सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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