दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर टिप्पणी के लिए दर्ज एफआईआर रद्द करवाने के लिए डॉ कुमार विश्वास ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का रुख किया

LiveLaw News Network

27 April 2022 6:25 AM GMT

  • दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर टिप्पणी के लिए दर्ज एफआईआर रद्द करवाने के लिए डॉ कुमार विश्वास ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का रुख किया

    आम आदमी पार्टी (आप) के पूर्व नेता और कवि कुमार विश्वास ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अपने बयानों के सिलसिले में पंजाब पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की प्रार्थना करते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    विश्वास ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि एफआईआर दुर्भावनापूर्ण इरादे और कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग का परिणाम है। उक्त एफआईआर कुछ भी नहीं बल्कि राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित होकर दायर की गई है, क्योंकि कथित बयान/साक्षात्कार मुंबई में दिए गए थे, जबकि एफआईआर पंजाब में दर्ज की गई।

    याचिका में कहा गया,

    "यदि याचिकाकर्ता के करियर/पूर्ववृत्त को ध्यान में रखा जाता है तो एक कवि/लेखक/सामाजिक मुद्दों पर टिप्पणीकार/धार्मिक प्रवचन निर्माता/व्यंग्यकार के रूप में वह हमेशा विभिन्न धर्मों को मानने वाले समुदायों के बीच लोगों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए काम करते रहे हैं। याचिकाकर्ता ने हमेशा देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में शांति, अहिंसा और सद्भाव का प्रचार किया है।"

    विश्वास के खिलाफ एफआईआर के बारे में

    उल्लेखनीय है कि विश्वास के खिलाफ एफआईआर 12 अप्रैल को इस आरोप में दर्ज की गई कि उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ 16 फरवरी से 19 फरवरी के बीच कुछ समाचार चैनलों को दिए गए साक्षात्कार में भड़काऊ बयान दिए, जिसमें उन्होंने कहा कि केजरीवाल कुछ नापाक और असामाजिक तत्वों से जुड़े हैं।

    एफआईआर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153/153-ए/505/505(2)/116 सपठित धारा 143/147/323/341/120-बी और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत दर्ज की गई है।

    मामले में शिकायतकर्ता नरिंदर सिंह ने आरोप लगाया कि विश्वास ने विधानसभा चुनाव, 2022 के दौरान पूरे पंजाब में अशांति और सांप्रदायिक अस्थिरता पैदा करने के लिए कथित भड़काऊ बयान दिए।

    यह भी आरोप लगाया गया कि कथित भड़काऊ बयानों के कारण आप के नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिंसा, दुश्मनी और शत्रुता की भावना का शिकार होना पड़ा, क्योंकि उन्हें विघटनकारी और असामाजिक तत्वों के सहयोगी के रूप में लेबल किया जा रहा था।

    अंत में यह भी प्रस्तुत किया गया कि विश्वास द्वारा दिए गए बयानों के परिणामस्वरूप 10-12 अज्ञात व्यक्तियों ने शिकायतकर्ता और अन्य लोगों का रास्ता रोककर उन्हें एक कोने में धकेल कर उनके साथ मारपीट करने का प्रयास किया गया।

    विश्वास द्वारा दायर याचिका में कही गई बातें

    विश्वास ने प्रस्तुत किया कि कथित भड़काऊ बयान 16 से 19 फरवरी 2022 के बीच दिए गए थे। हालांकि, शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत की गई कथित घटना 12 अप्रैल, 2022 को हुई थी और पुलिस एजेंसी ने शिकायत प्राप्त होने के दो घंटे के भीतर एफआईआर दर्ज की थी। शिकायत के बाद उसी बयान की जांच के लिए एसआईटी का भी गठन किया गया।

    इसके अलावा, उन्होंने याचिका में यह भी कहा कि पुलिस एजेंसी ने एफआईआर अपलोड किए बिना याचिकाकर्ता की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का गैरकानूनी उल्लंघन करने के लिए परोक्ष मकसद से पंजाब पुलिस अधिकारियों की टीम को याचिकाकर्ता के आवास पर भेज दिया।

    इस संबंध में, याचिका में कहा गया कि पुलिस एजेंसी 12 अप्रैल, 2022 को कथित रूप से हुई घटना के संबंध में किसी भी प्रकार की प्रारंभिक जांच करने में विफल रही, जैसा कि एफआईआर में कहा गया है।

    विश्वास ने यह भी स्पष्ट किया कि कथित बयान देते समय वह तथाकथित मानसिकता के बीच एक स्वस्थ चर्चा के लिए कुछ तथ्यों को सार्वजनिक डोमेन में रखना चाहते थे और उनका इस तरह के बयान के आधार पर कोई अशांति या घटना पैदा करने का कोई इरादा नहीं था।

    गौरतलब है कि हाल ही में पंजाब विधानसभा चुनावों में आप की जबरदस्त जीत का जिक्र करते हुए याचिका में कहा गया:

    "हाल ही में पंजाब विधानसभा चुनाव, 2022 के बाद AAP प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई और इसके तुरंत बाद स्पष्ट इरादे के साथ राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ शिकायतों की श्रृंखला और एफआईआर दर्ज की गई, जो कि दुर्भावनापूर्ण इरादे से उत्पीड़न का कारण बनती हैं। कुछ पुराने ट्वीट और बयान जो विभिन्न रद्द करने वाली याचिकाओं का विषय हैं।"

    इन परिस्थितियों में विश्वास ने अन्य बातों के साथ एफआईआर को रद्द करने के लिए प्रार्थना के साथ हाईकोर्ट की संलिप्तता की मांग इस आधार पर की है कि एफआईआर का पंजीकरण राज्य की मशीनरी का उपयोग करके राजनीतिक रूप से प्रेरित आपराधिक जांच के माध्यम से प्रतिशोध को खत्म करना है।

    याचिका में कहा गया कि भले ही उन्हें निशाने पर लिया गया हो और पूरी तरह से स्वीकार किया गया हो (हालांकि स्वीकार नहीं किया गया), एफआईआर और उसमें बताए गए तथ्य प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 153/153-ए/505/505 (2)/116 सपठित धारा 143/147/323/341/120-बी आईपीसी और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत कोई अपराध नहीं बनाते हैं।

    केस का शीर्षक - कुमार विश्वास बनाम पंजाब राज्य और अन्य।

    Next Story