(आपसी सहमति से तलाक) अन्य व्यक्ति से महिला की गर्भावस्था के मद्देनजर, बॉम्बे हाईकोर्ट ने कूलिंग ऑफ पीरियड से छूट दी

LiveLaw News Network

1 Nov 2020 9:30 AM GMT

  • (आपसी सहमति से तलाक) अन्य व्यक्ति से महिला की गर्भावस्था के मद्देनजर, बॉम्बे हाईकोर्ट ने  कूलिंग ऑफ पीरियड से छूट दी

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार (26 अक्टूबर) को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत निर्दिष्ट कूलिंग-ऑफ पीरियड से छूट देने के लिए दायर एक संयुक्त याचिका को स्वीकार कर लिया और फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया है कि इस कपल की तरफ से दायर तलाक की अर्जी पर तत्काल आधार पर निर्णय करे।

    न्यायमूर्ति नितिन डब्ल्यू सैमब्रे की खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत वैधानिक अवधि को इस आधार पर समाप्त कर दिया है क्योंकि महिला (पत्नी) किसी अन्य व्यक्ति से गर्भवती है, जिससे वह जल्द ही शादी करना चाहती है।

    धारा 13बी (2)

    इस बात पर ध्यान दिया जा सकता है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी (2) में आपसी सहमति से तलाक की याचिका दायर करने के बाद छह महीने से पहले तलाक देने पर रोक लगाई गई है।

    तलाक मांगने वाले पक्षकारों को पुनर्विचार के लिए सक्षम करने के लिए उक्त अवधि निर्धारित की गई है, ताकि अदालत आपसी सहमति से तलाक का तभी अनुदान दे सके जब सुलह का कोई मौका न हो।

    विशेष रूप से, अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर एआईआर 2017 एससी 4417 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धारा 13बी (2) में उल्लिखित अवधि अनिवार्य नहीं है, लेकिन निर्देशिका है, यह न्यायालय के लिए ओपन रहेगा कि वह प्रत्येक मामले के तथ्यों व परिस्थितियों (जहां दोनों पक्षों के बीच सहवास शुरू करने की कोई संभावना नहीं है और वैकल्पिक पुनर्वास की संभावनाएं है) के आधार पर अपने विवेक का इस्तेमाल करे।

    न्यायालय के समक्ष मामला

    इस मामले में याचिकाकर्ताओं (पत्नी-पति) की शादी 15 अगस्त 2014 को हुई थी। उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 बी के प्रावधानों के अनुसार आपसी सहमति से तलाक देने के लिए फैमिली कोर्ट के समक्ष एक संयुक्त याचिका प्रस्तुत की थी।

    उन दोनों (पत्नी-पति) द्वारा प्रस्तुत किया गया था कि वे दिसंबर 2018 से अलग रह रहे हैं और स्वतंत्र रूप से अपने जीवन का नेतृत्व कर रहे हैं।

    उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि वे एक साथ रहने में असमर्थ हैं और इसलिए वे पारस्परिक रूप से विवाह को समाप्त करने के लिए सहमत हुए हैं और इस तरह, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत 4 अगस्त, 2020 को कार्यवाही शुरू की गई।

    फैमिली कोर्ट, बांद्रा के समक्ष याचिका संख्या एफ-1023/2020 के तहत यह कार्यवाही शुरू की गई और इसी के साथ एक अर्जी दायर कर हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 बी (2) (जो छह माह का कूलिंग-आॅफ पीरियड प्रदान करती है)के तहत प्रदान की गई वैधानिक अवधि से छूट दिए जाने की भी मांग की गई थी।

    हालांकि, फैमिली कोर्ट ने वैधानिक अवधि से छूट देने की मांग करते हुए दायर किए गए संयुक्त आवेदन को खारिज कर दिया, और इसलिए उन्होंने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की।

    कोर्ट के समक्ष दलीलें

    याचिकाकर्ता (पत्नी) के वकील ने अदालत का ध्यान विशिष्ट दलीलों की तरफ आकर्षित किया और बताया कि याचिकाकर्ता गर्भवती है और यह बच्चा उस व्यक्ति का है,जिससे वह तलाक के बाद विवाह करना चाहती है। इसलिए इस मामले में तात्कालिकता है।

    दोनों पक्षों के बीच इस बात पर सहमति हुई कि प्रतिवादी (पति) याचिकाकर्ता को अपना आवासीय घर दे देगा। यह घर उन दोनों के बीच तय हुई शर्तों के आधार पर दिया जाएगा।

    प्रतिवादी (पति) के वकील ने याचिकाकर्ता के वकील द्वारा गई दलीलों पर अपनी सहमति देते हुए कहा कि वह वैधानिक अवधि को माफ करने के लिए याचिकाकर्ता के मामले का समान रूप से समर्थन करते हैं।

    न्यायालय का अवलोकन

    हाईकोर्ट ने अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर एआईआर 2017 एससीसी 4417 के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि,

    ''जहां मामले पर विचार करने वाली अदालत इस बात से संतुष्ट है कि धारा 13 बी (2) के तहत वैधानिक अवधि को माफ करने के लिए मामला बनता है, तो वह निम्नलिखित पर विचार करने के बाद ऐसा कर सकती हैः

    1-अगर 13बी(2) में दिया गया 6 महीने का वक्त और 13बी(1) में दिया गया 1 साल का वक्त पहले ही बीत चुका हो। यानी तलाक की अर्जी लगाने से डेढ़ साल से ज्यादा समय से पति-पत्नी अलग रह रहे हों।

    2- दोनों में सुलह के सारे विकल्प असफल हो चुके हों,जिसमें Order XXXIIA Rule 3 CPC/Section 23(2) of the Act/Section 9 of the Family Courts Act के तहत किए जाने वाले प्रयास भी शामिल हो। वहीं आगे भी सुलह की कोई गुंजाईश न हो।

    3-अगर दोनों पक्ष पत्नी के गुजारे के लिए स्थाई बंदोबस्त, बच्चों की कस्टडी या उनके बीच लंबित अन्य मुद्दों को पुख्ता तौर पर हल कर चुके हों।

    4- अगर 6 महीने का इंतजार दोनों की परेशानी को और बढ़ाने वाला नजर आए।''

    इस संदर्भ में, न्यायमूर्ति नितिन डब्ल्यू सैमब्रे की खंडपीठ ने कहा कि,

    ''मामले के तथ्यों को देखते हुए यह उपयुक्त होगा, विशेष रूप से याचिकाकर्ता की चिकित्सा/स्वास्थ्य की स्थिति को ध्यान में रखते हुए कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत निर्दिष्ट अवधि से छूट देने की मांग करते हुए दायर की गई संयुक्त याचिका को स्वीकार कर लिया जाए। इसलिए हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 बी के तहत वैधानिक अवधि से छूट मांगने वाली संयुक्त याचिका को स्वीकार किया जाता है और उपरोक्त आदेश को रद्द किया जा रहा है।''

    न्यायालय ने आगे कहा कि '' फैमिली कोर्ट तलाक के लिए आवेदन को जितनी जल्दी हो सके तय करने दें और यदि आवश्यक हो तो दोनों पक्षों को फैमिली कोर्ट की कार्यवाही में शारीरिक रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होने का निर्देश दिया जा सकता है,जैसा भी मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार फिट बैठता हो।''

    केस शीर्षक - कोवेलामुड़ी कनिका ढिल्लन / कनिका ढिल्लन बनाम कोवेलामुड़ी सूर्य प्रकाश राव / प्रकाश कोवेलामुड़ी (WP (ST) NO.93737 OF 2020)

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