"जिला न्यायाधीश ने वादी का अनुचित रूप से पक्ष लिया" : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने न्यायाधीश से मांगा स्पष्टीकरण, केस ट्रांसफर किया
LiveLaw News Network
13 Oct 2020 4:01 PM IST
एक विशेष आदेश देते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक जिला न्यायाधीश से स्पष्टीकरण मांगा है। कोर्ट ने पाया है कि न्यायाधीश ने एक सूट के वादी के पक्ष में उसे अनुचित लाभ पहुंचाया है और अनुचित रूप से उसका पक्ष लिया है।
हाईकोर्ट ने यह आदेश भारतीय स्टेट बैंक की तरफ से दायर एक याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है। बैंक ने जिला न्यायाधीश नवांशहर (शहीद भगत सिंह नगर) द्वारा पारित अंतरिम निषेधाज्ञा के एक आदेश को चुनौती दी थी। जिला न्यायाधीश ने बैंक को एक कंपनी के खिलाफ लगभग 100 करोड़ रुपये के डिफाॅल्ट के मामले में कड़ी कार्रवाई करने से रोक दिया था।
यह मामला एसईएल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड और नीरज सलूजा की तरफ से दायर किए गए एक मुकदमे के बाद शुरू हुआ था,जिसमें उन्होंने एसबीआई से लिए गए अपने ऋण के पुनर्गठन या नवीनीकरण की मांग की थी। उन्होंने एक इंटरलाक्यूटरी आवेदन भी दायर किया था,जिसमें बैंक को जबरदस्ती करने या कड़ी कार्रवाई करने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा की मांग की गई थी। ट्रायल कोर्ट ने अंतरिम निषेधाज्ञा के लिए की गई प्रार्थना को खारिज कर दिया था। जिसे वादी ने जिला न्यायाधीश नवांशहर के समक्ष चुनौती दी थी।
अपील पर नोटिस जारी करते हुए, जिला न्यायाधीश ने एक अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें बैंक को बकाया की वसूली करने के लिए सख्त कदम उठाने से रोक दिया था।
बैंक ने उस अंतरिम आदेश को संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट के समक्ष याचिका कर चुनौती दी थी।
बैंक ने हाईकोर्ट को बताया कि वादी-कंपनी द्वारा किए गए डिफॉल्ट के संबंध में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के समक्ष दिवाला कार्यवाही लंबित है, और एक इंटरिम रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल भी नियुक्त किया गया है। एनसीएलटी की कार्यवाही को वादी ने एनसीएलएटी, हाईकोर्ट और सुप्रीम के समक्ष चुनौती दी थी। परंतु उन आदेशों को छिपाते हुए मुकदमा या सूट दायर किया गया था।
जिला अदालत द्वारा निषेधाज्ञा आदेश पारित करने के बाद, वादी मुकदमे की सुनवाई के लिए ट्रायल कोर्ट में पेश नहीं हुए। जिसके परिणामस्वरूप मुकदमा गैर-अभियोजन के कारण खारिज हो गया। हालांकि, सूट को बहाल करने के लिए एक आवेदन दायर किया गया है, परंतु उसके बावजूद भी ठीक से कार्यवाहीं नहीं की जा रही है। इन परिस्थितियों के बावजूद, जिला न्यायालय ने कई अवसरों पर अस्थायी निषेधाज्ञा को बढ़ा दिया था।
हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान की पीठ ने कहा कि बैंक की अपील 13 कारणों से अनुमति के योग्य है। हाईकोर्ट ने कहा कि अपीलेट कोर्ट द्वारा अस्थायी निषेधाज्ञा के आदेश को जारी रखा,''पूरी तरह से ज्यूडिशियल माइंड का उपयोग न करने'' को दर्शा रहा है,जबकि मूल मुकदमा गैर-उपस्थिति के कारण पहले ही खारिज हो गया था।
हाईकोर्ट ने कहा कि अपीलीय अदालत ने यह अंतरिम आदेश तयशुदा सिद्धांत के उल्लंघन में पारित किया था। जबकि निचली अदालत द्वारा निषेधाज्ञा देने से इनकार करने के खिलाफ दायर अपील में निषेधाज्ञा जारी करने के लिए विस्तृत कारण बताए जाने चाहिए।
यह भी देखा गया कि जिला न्यायाधीश ने एनसीएलटी में चल रही दिवाला कार्यवाही की अनदेखी करते हुए यह आदेश पारित किया था, जिसकी पुष्टि एनसीएलएटी, हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने भी कर दी थी।
जिला न्यायाधीश ने यह सुनिश्चित करने के लिए भी कोई कदम नहीं उठाया कि ट्रायल कोर्ट को जारी किए गए उनके निर्देश का अनुपालन किया जाए। जबकि उन्होंने निर्देश जारी किया था कि ट्रायल कोर्ट मुकद्मे की बहाली के लिए दायर आवेदन को समयबद्ध तरीके से निपटाएं।
हाईकोर्ट ने कहा कि,''... जिला जज ट्रायल कोर्ट पर चेक न रखकर अपने प्रशासनिक कर्तव्य को भी निभाने में विफल रहे हैं, क्योंकि आज तक ट्रायल कोर्ट ने मुकदमा बहाल करने के लिए दायर आवेदन का निपटारा नहीं किया है, यानी 8 महीने के अंतराल के बाद भी, जबकि जिला जज ने यह आदेश 29 फरवरी 2020 को दिया था।
एक जिला न्यायाधीश, जिले का प्रशासनिक प्रमुख होता है,इसलिए उसे अधीनस्थ न्यायपालिका पर जांच रखने की आवश्यकता होती है। जिस तरीके से सिविल सूट में आदेश पारित किया गया है, वो यही दर्शाता है कि वादकारियों को समय का लाभ देने के लिए कार्यवाही में देरी करने का प्रयास किया जाता है।''
हाईकोर्ट ने पाया कि अंतरिम आदेश जारी रखना,अभी तक दिए गए सभी निर्णयों के खिलाफ था।
पीठ ने कहा, ''इस केस में 1100 करोड़ रुपये के सार्वजनिक धन का भुगतान न करने का मामला शामिल है। इसलिए, अपीलीय न्यायालय द्वारा अंतरिम आदेश जारी रखना किसी भी तरह से सार्वजनिक हित में नहीं है।''
हाईकोर्ट ने कहा कि अपील की सुनवाई में देरी करवाकर, जिला न्यायाधीश ''अभियोगी के पक्ष में अनुचित उपकार'' कर रहे थे।
न्यायालय ने आगे कहा किः
''एक बार जब याचिकाकर्ता -बैंक ने 07 दिसम्बर 2019 को अपीलीय न्यायालय के संज्ञान में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित सभी आदेशों के साथ-साथ डिफॉल्ट रूप से मुकदमे को खारिज कर दिए जाने की जानकारी ला दी थी तो अपीलीय न्यायालय के पास स्थगत आदेश को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं था, जबकि यह स्थगन का आदेश उपरोक्त लिटिगेशन और आदेशों को छुपाकर प्राप्त किया गया था। इसलिए, हाईकोर्ट और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करते हुए स्थगन आदेश को जारी रखकर जिला न्यायाधीश ने इन आदेशों का अनादर किया है। वहीं रिकॉर्ड के आधार पर मामले की कार्यवाही में देरी करके वादकारियों पर अनुचित उपकार किया है।''
इसलिए पीठ ने जिला न्यायाधीश से हाईकोर्ट द्वारा तय किए गए (ए) से (एम) तक के कारणों पर स्पष्टीकरण मांगा है।
न्यायालय ने कोड आॅफ सिविल प्रोसीजर की धारा 24 के तहत दी गई शक्तियों का भी आह्वान किया और मामले को जिला न्यायाधीश, एसबीएस नगर से अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, एसबीएस नगर के पास स्थानांतरित कर दिया।
हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि,''जिला न्यायाधीश, एसबीएस नगर से मांगा गया स्पष्टीकरण इस कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाए। यह स्पष्टीकरण इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर भेज दिया जाए। वहीं यह स्पष्टीकरण एसबीएस नगर के प्रशासनिक न्यायाधीश के समक्ष भी इस आदेश की एक प्रति के साथ रखा जाए।''
आदेश की काॅपी यहां से डाउनलोड करें।