'वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा अदालत के आदेशों की उपेक्षा, देश में कानून के शासन पर गंभीर परिणाम होगा': इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

11 Jun 2021 3:10 AM GMT

  • वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा अदालत के आदेशों की उपेक्षा, देश में कानून के शासन पर गंभीर परिणाम होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा न्यायालय के आदेशों की उपेक्षा का देश में कानून के शासन पर गंभीर परिणाम होगा।

    न्यायमूर्ति अजय भनोट की खंडपीठ ने आगे टिप्पणी की कि कोर्ट ने समय-समय पर जमानत आवेदनों के सरकारी अधिवक्ता को निर्देश प्रदान करने में पुलिस अधिकारियों की विफलता को देखा है।

    पीठ ने कहा कि,

    "एक बार पुलिस अधिकारियों को इस तथ्य के प्रति सचेत कर दिया गया है कि समय पर निर्देश देने में विफलता कानून की जड़ पर हमला है। यह अक्सर एक आरोपी की अनुचित कैद की ओर ले जाता है।"

    कोर्ट के समक्ष मामला

    आवेदक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 394 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई और विशेष न्यायाधीश (डकैती प्रभावित क्षेत्र)/अपर सत्र न्यायाधीश, औरैया ने 2 मार्च 2021 को आवेदक की जमानत अर्जी खारिज कर दी।

    इसके बाद आवेदक ने जमानत आवेदन के साथ उच्च न्यायालय का रुख किया।

    आवेदक के वकील ने कहा कि आवेदक को वर्तमान मामले में झूठा फंसाया गया है और एफ.आई.आर. घटना के सात दिन बाद दर्ज किया गया है।

    आवेदक के वकील ने आगे कहा कि विलंब अभियोजन के मामले के लिए घातक है और आवेदक का नाम एफआईआर में नहीं है और इसके लिए कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है और आवेदक को कुछ वस्तुओं की झूठी वसूली दिखाई गई है।

    ए.जी.ए. उपरोक्त प्रस्तुतियों को रिकॉर्ड से संतोषजनक ढंग से विवाद नहीं कर सका और उन्होंने कहा कि उनके पास पुलिस अधिकारियों से कोई निर्देश नहीं है जो इसके लिए पर्याप्त समय दिए जाने के बावजूद ए.जी.ए को निर्देश प्रदान करने में विफल रहे हैं।

    कोर्ट का अवलोकन और आदेश

    कोर्ट ने कहा कि कि कोर्ट ने समय-समय पर जमानत आवेदनों के सरकारी अधिवक्ता को निर्देश प्रदान करने में पुलिस अधिकारियों की विफलता को देखा है।

    कोर्ट ने यह भी नोट किया कि ए.जी.ए. ने आपराधिक जमानत आवेदन संख्या 2021 का 19839 में कहा कि राज्य सरकार राज्य में कानून के शासन को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "यह केवल सिस्टम में गड़बड़ी और व्यक्तिगत अधिकारियों के दोष को दर्शाता है, जिन्हें इस संबंध में उचित परामर्श देने की आवश्यकता है। यह आशा की जाती है कि डीजीपी द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुपालन के लिए पुलिस अधिकारियों द्वारा त्वरित कदम उठाए जा रहे हैं, इस मामले में यूपी पुलिस।"

    कोर्ट ने निर्देश दिया कि एक सरकारी वकील के माध्यम से पुलिस आदेश की एक प्रति पुलिस महानिदेशक, यू.पी. को दिया जाए।

    कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से कहा कि,

    "अदालतों ने मौजूदा महामारी की स्थिति के दौरान जेलों में भीड़ पर ध्यान दिया है। आरोपियों की ओर से जमानत आवेदनों पर विचार करते समय इन परिस्थितियों को भी ध्यान में रखा जाएगा।"

    कोर्ट ने आवेदक के वकील की प्रस्तुतियों में मैरिट को देखते हुए यह माना कि आवेदक जमानत का हकदार है। कोर्ट ने आवेदक को एक निजी बांड भरने और इतनी ही राशि का दो जमानदार पेश करने और निचली अदालत की संतुष्टि की शर्त पर जमानत देने का फैसला सुनाया।

    केस का शीर्षक - संजय@मौसम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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