"कोर्ट के आदेशों की अवज्ञा स्पष्ट रूप से अवमानना है": पटना हाईकोर्ट ने पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की पुनर्नियुक्ति से संबंधित अवमानना मामले में दो शीर्ष अधिकारियों को फटकार लगाई

LiveLaw News Network

25 March 2022 11:41 AM GMT

  • कोर्ट के आदेशों की अवज्ञा स्पष्ट रूप से अवमानना है: पटना हाईकोर्ट ने पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की पुनर्नियुक्ति से संबंधित अवमानना मामले में दो शीर्ष अधिकारियों को फटकार लगाई

    पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) सोमवार को बिहार के विधि सचिव प्रभारी ज्योति स्वरूप श्रीवास्तव और संयुक्त सचिव उमेश कुमार शर्मा के खिलाफ लोक अभियोजक (पब्लिक प्रॉसिक्यूटर) की पुनर्नियुक्ति से संबंधित मामले में अपने आदेश की अवज्ञा के लिए अवमानना कार्यवाही शुरू की है।

    न्यायमूर्ति पीबी बजंथरी (Justice P.B.Bajanthri) की एकल पीठ ने कहा कि बिहार के विधि सचिव प्रभारी ज्योति स्वरूप श्रीवास्तव और संयुक्त सचिव उमेश कुमार शर्मा व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित रहेंगे।

    यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस कोर्ट के दिनांक 21.12.2021 के आदेशों की अवज्ञा स्पष्ट रूप से अवमानना है।

    क्या है पूरा मामला?

    मामला 2019 में सरकार द्वारा मोतिहारी के तत्कालीन पीपी, जय प्रकाश मिश्रा की सेवा समाप्त करने से संबंधित है, जिसे अदालत ने दिसंबर 2021 में एक रिट के माध्यम से सरकार की कार्रवाई को चुनौती देने के बाद अवैध और अनुचित ठहराया था।

    तदनुसार, कोर्ट ने सरकार को मिश्रा को पीपी के रूप में बहाल करने का निर्देश दिया था।

    जब विधि विभाग ने एक सप्ताह के भीतर अदालत के आदेश के बावजूद उनकी सेवा बहाल करने से इनकार कर दिया तो मिश्रा ने इस साल जनवरी में अवमानना का मामला दायर किया था।

    अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति बजंथरी ने कहा,

    "सचिव और संयुक्त सचिव, कानून विभाग, अवमानना याचिका का सामना करने के लिए अदालत में उपस्थित होंगे। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि 21 दिसंबर, 2021 के इस अदालत के आदेशों की अवज्ञा, स्पष्ट रूप से अवमानना के समान है। कोर्ट को दिया गया अंडरटेकिंग की अवज्ञा अवमानना है।"

    इससे पहले, इसी मामले में, अदालत ने मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) को एक कारण बताओ नोटिस भेजा था, जब कानून विभाग के संयुक्त सचिव ने कहा था कि मिश्रा की नियुक्ति के संबंध में फाइल मुख्यमंत्री की मंजूरी के लिए लंबित थी।

    प्रस्तुतियां

    याचिकाकर्ता के वकील सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि अवमानना के मामले में सचिव के रूप में वरिष्ठ नौकरशाह के खिलाफ आरोप तय करना दुर्लभ है। 2003 में, न्यायमूर्ति आरएस गर्ग की अदालत ने तत्कालीन मुख्य सचिव केएएच सुब्रमण्यम को तलब किया था और अदालत की अवमानना से संबंधित मामले में उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया था।

    महाधिवक्ता ललित किशोर ने प्रस्तुत किया कि संयुक्त सचिव, कानून विभाग, बिहार सरकार को राज्य सरकार की आक्षेपित कार्रवाई को वापस लेने के संबंध में मुख्य याचिका के निपटान के लिए एक अंडरटेकिंग देने के लिए अधिकृत नहीं किया गया था। याचिका में आक्षेपित आदेश के लेखक संयुक्त सचिव के नाम पर हैं जिन्हें बिहार राज्य के कार्य नियमों के साथ पठित संविधान के अनुच्छेद 166 के संदर्भ में अधिसूचना जारी करने के लिए अधिकृत किया गया है।

    आगे प्रस्तुत किया कि वर्तमान एमजेसी के लंबित रहने के दौरान राज्य ने दिनांक 21.12.2021 के आदेश में निर्धारित समय सीमा समाप्त होने के बाद पुनर्विचार याचिका दायर की है और ऐसी पुनर्विचार याचिका अभी तक सूचीबद्ध नहीं है। राज्य/कार्यालय की ओर से पुनर्विचार याचिका को सूचीबद्ध करने का कोई प्रयास नहीं किया गया।

    महाधिवक्ता ने प्रस्तुत किया कि दिनांक 21.12.2021 को संयुक्त सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। दिनांक 21.12.2021 से आज तक की मध्यावधि में किसी भी प्रकार की प्रगति के बावजूद राज्य सरकार दिनांक 21.12.2021 के आदेश का पालन न करने पर अवमानना कर रही है। यह मानकर भी कि पुनर्विचार याचिका में दिनांक 21.12.2021 के आदेश को वापस ले लिया गया है, फिर भी 21.12.2021 के बीच की अवधि को निर्धारित समय के संदर्भ में अवमानना की जा रही है। इस संबंध में सचिव एवं संयुक्त सचिव, विधि विभाग, बिहार सरकार के विरुद्ध आरोप क्यों नहीं लगाए जाएं। आज की स्थिति में भी विधि विभाग के कार्यालय में फाइल लंबित है।

    कोर्ट ने हल्सबरी को कोट करते हुए कहा,

    "अदालत को दिए गए अंडरटेकिंग का उल्लंघन, जिसके आधार पर न्यायालय किसी विशेष कार्रवाई या निष्क्रियता को मंजूरी देता है, अवमानना है। इसी तरह न्यायालय के निषेधाज्ञा आदेश की अवज्ञा भी है।"

    बनर्जी बनाम कुचवार लाइम एंड स्टोन कंपनी लिमिटेड, एआईआर 1938 पैट 95 के मामले में उपरोक्त सामग्री को ध्यान में रखा गया।

    कोर्ट का अवलोकन

    याचिकाकर्ता और प्रतिवादियों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि अवमानना की कार्रवाई को टालना है तो न्यायालय के आदेश, वैध या अनियमित, का पालन किया जाना चाहिए। जब तक न्यायालय का एक आदेश है जिसमें न केवल पक्षों द्वारा अनुपालन की आवश्यकता होती है, बल्कि तीसरे पक्ष भी कार्यवाही के पक्षकार नहीं हैं, लेकिन उन्हें इसका ज्ञान है, वे ऐसे आदेश की अवज्ञा के लिए अवमानना के लिए या उसी के निष्पादन में बाधा डालने के लिए उत्तरदायी मामले जाएंगे। आदेश वैध है या अनियमित जब तक कि किसी सक्षम न्यायालय द्वारा आदेश पर रोक नहीं लगाई जाती है, इसका पालन किया जाना चाहिए।

    मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट राजीव रंजन और एडवोकेट सतीश चंद्र मिश्रा पेश हुए। प्रतिवादी की ओर से एजी ललित किशोर और एडडवोकेट कुमारी अमृता पेश हुईं।

    अब मामले की सुनवाई 31 मार्च को की जाएगी।

    केस का शीर्षक: जय प्रकाश मिश्रा बनाम बिहार राज्य

    कोरम: जस्टिस पी.बी.बजथंरी

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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