[चेक का अस्वीकरण] एक बार आदेशक का भुगतान नहीं करने इरादा स्पष्ट होने पर, शिकायत करने के लिए 15 दिनों तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

10 Nov 2020 4:48 AM GMT

  • [चेक का अस्वीकरण] एक बार आदेशक का भुगतान नहीं करने इरादा स्पष्ट होने पर, शिकायत करने के लिए 15 दिनों तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    निगोश‌िएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 138 की व्याख्या करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि एक बार पार्टी का इरादा स्पष्ट हो कि वह भुगतान करने की इच्छा नहीं रखती है तो शिकायतकर्ता को न्यूनतम 15 दिनों तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है।

    जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर की खंडपीठ ने कहा, "मामले में, याचिकाकर्ता ने यहां नोटिस का जवाब दिया, जो यह दर्शाता है कि आदेशक का इरादा स्पष्ट है कि वह भुगतान करने की इच्छा नहीं रखता है। एक बार यह स्पष्ट हो जाने के बाद, क्या शिकायतकर्ता को 15 दिन की न्यूनतम अवधि का इंतजार करना चाहिए? जवाब 'नहीं' होगा।"

    खंडपीठ ने कहा कि उक्त प्रावधान का प्रोविसो (सी), जिसके तहत पंद्रह दिनों की अवधि निर्धारित की गई है, चेक के आदेशक की वास्तविकता को देखने के लिए है और उसे भुगतान करने का मौका देने के लिए है।

    उन्होंने कहा, "अधिनियम, 1881 की धारा 138 के प्रोविसो (सी) का एकमात्र उद्देश्य अनावश्यक कठिनाई से बचने के लिए है यदि आदेशक भुगतान करना चाहता है।"

    हालांकि, इसकी यह व्याख्या नहीं की जा सकती है कि यदि आरोपी भुगतान करने से इनकार करता है, तो भी शिकायतकर्ता शिकायत दर्ज नहीं कर सकता है।

    "अधिनियम, 1881 की धारा 138 के प्रावधान, धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध के अवयवों का गठन नहीं करते। धारा 138 में प्रावधान बस अपराधी के वास्तविक अभियोजन को स्थगित कर देता है, जब तक कि वह राशि का भुगतान करने में विफल नहीं हो जाता है, उसके श‌िकायत दर्ज करने की निर्धारित कानूनी अवधि शुरू हो जाती है। संसद ने आदेशक को इससे पहले कि मुकदमा चलाया जा सके, राशि का भुगतान करने का अवसर देने के लिए ठीक और उचित समय दिया है। अपराध उस समय पूरा हो जाता है, जब चेक को अस्व‌िकृत कर दिया जाता है।

    दशरथ रूपसिंह राठौड़ बनाम महाराष्ट्र राज्य, (2014) 9 एससीसी 129 पर भरोसा रखा गया।

    पृष्ठभूमि

    मामले में, याचिकाकर्ता ने मजिस्ट्रेट की ओर से पारित समन आदेश को चुनौती दी थी। उन्होंने कहा था कि वह पहले ही जवाब दाखिल कर चुके था और उनके जवाब के 15 दिनों के बाद ही शिकायत दर्ज की जा सकती थी।

    तथ्यों के अनुसार, 28.5.2019 को चेक अस्वीकृत कर दिए गया था। शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता को 11.6.2019 को एक नोटिस भेजा। चूंकि शिकायतकर्ता को कोई पैसा नहीं मिला, इसलिए उन्होंने 29.6.2019 को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज की।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने भुगतान रोक दिया था, इसलिए चेक चेक को अस्‍विकृत किया गया था।

    यदि नोटिस 11.6.2019 को भेजा गया था और सेवा की कोई तारीख नहीं बताई गई है, तो जनरल क्लॉज एक्ट के अनुसार, नोटिस देने के लिए 30 दिन का समय निर्धारित किया गया है और उसके बाद भुगतान के लिए 15 दिनों का इंतजार करने के बाद, शिकायत दर्ज की जानी चाहिए।

    परिणाम

    कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने नोटिस का जवाब दिया था, जिसमें यह बताया गया है कि भुगतान करने का उनका कोई इरादा नहीं था। कोर्ट ने कहा कि एक बार यह स्पष्ट हो जाने के बाद, शिकायतकर्ता को 15 दिनों की न्यूनतम अवधि तक प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है।

    इस मामले में, एन परमेस्वरम उन्नी बनाम जी कन्नन, (2017) 5 SCC 737 के फैसले पर पर भरोसा किया जा सकता है, क्योंकि इस मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि नोटिस को याचिकाकर्ता को दिया गया माना गया था और वह एक दायित्व के तहत था कि वह अपने दायित्व का निर्वहन करें जो उन्होंने नहीं किया है। अधिनियम, 1881 की धारा 138 में प्रोविसो (सी) का एकमात्र उद्देश्य अनावश्यक कठिनाई से बचने के लिए है, यदि आदेशक भुगतान करना चाहता है। न्यायालय ने कहा कि इसलिए, इस न्यायालय को विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किए गए सुविचारित समन आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है।

    अदालत ने याचिकाकर्ता को 15.10.2020 को या उससे पहले समन आदेश के मामले में मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश होने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर अदालत कानून के तहत निर्धारित कदम उठाने के लिए स्वतंत्र होगी।

    कोर्ट ने याचिका को खारिज़ कर दिया और मुकदमे पर 15,000 की लागत लगाई।

    केस टाइटिल: रवि दीक्षित बनाम उत्तर प्रदेश और अन्‍य।

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