"सिंगल मैन और शादीशुदा महिला के लिए अधिनियम भेदभावपूर्ण": दिल्ली हाईकोर्ट में असिस्टेंट प्रोड्यूसर टेक्नोलॉजी एक्ट और सरोगेसी एक्ट के खिलाफ याचिका दायर

Shahadat

27 May 2022 7:16 AM GMT

  • सिंगल मैन और शादीशुदा महिला के लिए अधिनियम भेदभावपूर्ण: दिल्ली हाईकोर्ट में असिस्टेंट प्रोड्यूसर टेक्नोलॉजी एक्ट और सरोगेसी एक्ट के खिलाफ याचिका दायर

    दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 और सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया कि उक्त प्रावधान सरोगेसी के माध्यम से अपने परिवार का विस्तार करने के इच्छुक सिंगल मैन और विवाहित महिला, जिसके पास पहले से ही बच्चा है, के साथ भेदभाव करते हैं।

    एक्टिंग चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस सचिन दत्ता की डिवीजन बेंच इस मामले शुक्रवार को सुनवाई करेगी।

    एडवोकेट आदित्य समदर के माध्यम से दायर की गई याचिका में तर्क दिया गया कि इंप्यूज्ड कृत्यों में भारत के संविधान के अल्ट्रा वायरस अनुच्छेद 14 और 21 हैं।

    याचिका अनमैरिड सिंगल मैन और मैरिड सिंगल वुमन ने दायर की है। पहले याचिकाकर्ता और पेशे से वकील करण बजाज मेहता कहते हैं कि वह सरोगेसी के माध्यम से पिता बनने के इच्छुक हैं।

    मनोविज्ञान शिक्षक दूसरी याचिकाकर्ता ने कहा कि उसकी शादी वर्ष 2014 से पहले हो गई थी। वह पिछले साल मां बन गई थी। हालांकि, वह एक और बच्चा चाहती हैं, लेकिन केवल सरोगेसी के माध्यम से।

    इसके अलावा, यह कहते हुए कि प्रजनन की पसंद को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा माना गया है, याचिका में कहा गया कि उक्त विकल्प भी निजता के अधिकार में आते हैं और लागू किए गए प्रावधान निजता के अधिकार को इतने गंभीर रूप से विनियमित करते हैं कि इन्होंने याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकारों को हनन किया है।

    इस प्रकार याचिका में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धारा 2(ई), 14 (2), 21, 27 (3) और 31 (1) के साथ -साथ सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धारा 2(h), 2(s), 2(r), 2(zd), 2(zg), 4(ii)(a), 4(ii)(b) और 4(iii), 4(ii)(C), 8 और धारा 38 (1) (ए) को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का हनन करने के रूप में चुनौती दी गई है।

    याचिका में कहा गया,

    "क्योंकि कॉमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध से ऐसा लगता है कि बुरी महिलाओं की रक्षा करने के लिए इन्हें अधिनियमित किया गया है, ऐसी महिलाओं का उनके शरीर पर उनके अधिकार को छीन लिया गया है और उन्हें जन्म देने के अपने दिव्य अधिकार का प्रयोग करने का अवसर देने से इनकार करता है।"

    याचिका में आगे तर्क दिया गया कि सरोगेसी के माध्यम से बच्चे के जन्म के बारे में व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय अर्थात् प्रजनन स्वायत्तता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत निजता के अधिकार का एक पहलू है।

    याचिका में आगे कहा गया,

    "इस प्रकार प्रत्येक नागरिक या व्यक्ति के निजता (सेरोगेसी) का अधिकार सरकार के ऐसे प्रवाधानों से मुक्त होना चाहिए, जो नागरिक के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करें। सरल शब्दों में सरोगेसी से बच्चों को हासिल करके अपना परिवार को बढ़ाने का निर्णय व्यक्तिगत निर्णय है, ऐसे में लोकतांत्रिक समाज में सरकारी घुसपैठ को अनुमति नहीं दी जा सकती।"

    केस टाइटल: करण बलराज मेहता और अन्य बनाम भारत संघ

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