प्रगति के बाद भी हमारे देश में महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ रहा, उनकी उम्र, जाति या धर्म जो भी होः पीएंड एच हाईकोर्ट

Avanish Pathak

15 March 2023 8:12 PM IST

  • प्रगति के बाद भी हमारे देश में महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ रहा, उनकी उम्र, जाति या धर्म जो भी होः पीएंड एच हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि शैक्षिक योग्यता और मानवीय संबंधों की समझ में वृद्ध‌ि के बावजूद, हमारे देश में अभी भी महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है, उनकी उम्र, जाति या धर्म जो भी हो।

    ज‌स्टिस आलोक जैन की पीठ ने माना कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत एक साझा घर में रह रही महिला की ओर से सास के खिलाफ दायर की गई शिकायत सुनवाई योग्य है।

    खंडपीठ ने यह दावा हरविंदर कौर (सास) की ओरसे जनवरी में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, गुरुग्राम की ओर से पारित एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए किया, जिसमें उनकी अलग हो चुकी बहू को उन्हीं के स्वामित्व वाले घर में रहने की अनुमति दी गई थी (कौर)।

    मामला

    प्रतिवादी संख्या दो/परित्यक्त बहू की शादी प्रतिवादी संख्या चार (याचिकाकर्ता का बेटा) से अक्टूबर 2016 में हुई। व‌िवाह से उन्हें एक बेटा (प्रतिवादी संख्या 3) पैदा हुआ। बेटा एक स्पेशल चाइल्ड है, जिसे अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता है।

    वैवाहिक कलह के कारण प्रतिवादी संख्या दो (परित्यक्त बहू) और तीन (पुत्र) ने 2019 में कानून के विभिन्न प्रावधानों के तहत और डीवी एक्ट की धारा 23 के तहत अंतरिम भरण-पोषण के लिए शिकायत दर्ज कराई। शिकायत में याचिकाकर्ता (कौर/सास) और उसके बेटे (प्रतिवादी संख्या 2 के पति) को पक्ष प्रतिवादी के रूप में जोड़ा गया था।

    3 साल से अधिक की पेंडेंसी के बाद, वर्तमान याचिकाकर्ता (सास) और उसके बेटे (पति) ने स्पष्ट रूप से पत्नी/बहू और उसके बेटे को साझा घर में ले जाने का बीड़ा उठाया। पति ने 10 लाख रुपये देने का भी वादा किया। हालांकि, बाद में, वह उक्त राशि का भुगतान करने में विफल रहा।

    वे दोनों बहू को साझा घर में भी नहीं ले गए और इस प्रकार, बहू ने न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, गुरुग्राम के समक्ष एक आवेदन दिया, जिसमें उसे साझा घर में रहने की अनुमति दी गई।

    मजिस्ट्रेट ने भरण-पोषण के बकाया का भुगतान करने में विफल रहने पर पति के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया। अब मजिस्ट्रेट के इसी आदेश को हरविंदर कौर (सास) ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

    उनकी दलील थी कि घर उनकी है, जो प्रतिवादी संख्या चार की मां है। और अपने बेटे (परित्यक्त बहू के पति) के दायित्व का निर्वहन करने के लिए उत्तरदायी नहीं है और उक्त घर याचिकाकर्ता द्वारा अपने और अपने संसाधनों से खरीदा गया था।

    अंत में हाईकोर्ट के समक्ष यह भी दलील दी गई कि उसे (सास को) डीवी एक्ट के तहत कार्यवाही में पक्षकार नहीं बनाया जा सकता क्योंकि यह धारा 2 (क्यू) के प्रावधानों का उल्लंघन है।

    निष्कर्ष

    शुरुआत में, अदालत ने कहा कि डीवी एक्‍ट का उद्देश्य पत्नी या महिला लिव-इन पार्टनर को पति या पुरुष लिव-इन पार्टनर या उनके रिश्तेदारों के हाथों होने वाली हिंसा से बचाना है, क्योंकि आदिकाल से महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार रही हैं।

    न्यायालय ने आगे कहा कि 2006 का अधिनियम पीड़ित महिला को वैवाहिक या साझा घर में रहने का अधिकार देता है, भले ही उसका या उसके पति/पुरुष लिव-इन पार्टनर का संपत्ति में कोई अधिकार, स्वामित्व या हित हो या ना हो।

    कोर्ट ने कहा, "उक्त अधिकार केवल निवास की बात करता है न कि स्वामित्व की। इस संरक्षण का उद्देश्य जाहिर तौर पर केवल घरेलू हिंसा से पीड़िता के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करना है।"

    इसके अलावा, अदालत ने डीवी एक्ट की धारा 2(ए), (एफ), (क्यू) और (एस) और धारा 19 के तहत परिभाषाओं को एक सा‌थ पढ़ा और नोट किया कि एक मजिस्ट्रेट इस बात से संतुष्ट होने पर निवास आदेश पारित कर सकता है कि घरेलू हिंसा हुई है, और उक्त आदेश को प्रभावी करने के लिए, रिश्तेदार, जिसमें प्रतिवादी की महिला रिश्तेदार भी शामिल हैं, वे भी इसके लिए बाध्य हैं।

    इस संबंध में, न्यायालय ने हीरल पी हरसोरा और अन्य बनाम कुसुम नरोत्तमदास हरसोरा और अन्य 2016 (4) आर.सी.आर. (सिविल) 750 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया था कि घरेलू हिंसा की शिकायत करने वाली पत्नी या सामान्य कानून पत्नी के मामले में, सास और भाभी सहित पति के रिश्तेदार- ससुराल वालों को उत्तरदाताओं के रूप में शामिल किया जा सकता है और उनके खिलाफ प्रभावी आदेश पारित किए जा सकते हैं।

    हीरल केस (सुप्रा) में पीड़ित महिला को पति और महिला रिश्तेदारों, जिसमें सास भी शामिल है, के खिलाफ आर्थिक राहत की हकदार भी ठहराया गया था।

    नतीजतन, याचिकाकर्ता की ओर से दिया गया तर्क कि डीवी एक्‍ट की धारा 2 (क्यू) याचिकाकर्ता (सास) के खिलाफ शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है, को खारिज कर दिया गया। इस प्रकार याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटलः हरविंदर कौर बनाम हरियाणा राज्य और अन्य [CRM-M-8352-2023]

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