न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अदालत की आपराधिक अवमानना के लिए ऑक्टोजेरियन लॉ जर्नल के एडिटर को दोषी ठहराया
Shahadat
13 Oct 2023 10:24 AM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में अस्सी वर्षीय लॉ जर्नल एडिटर को अपने प्रकाशन के माध्यम से न्यायपालिका के खिलाफ कुछ टिप्पणियां करने के लिए आपराधिक अवमानना का दोषी पाया।
चीफ जस्टिस रवि मलिमथ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने डॉ. एन.एस. पर 4,000/- रुपये का जुर्माना लगाना उचित समझा। 'लॉस्ट जस्टिस' के 85 वर्षीय संस्थापक, संपादक और प्रकाशक पूनिया ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य को प्राथमिक कारण बताया।
वर्ष 2010 से कुछ जर्नल एडिशन में अवमाननाकर्ता ने हाईकोर्ट के कुछ मौजूदा न्यायाधीशों द्वारा मामलों का फैसला करने के तरीके के बारे में अपमानजनक टिप्पणियां प्रकाशित की थीं। 09.07.2013 को एडिटर की टिप्पणियों को न्यायपालिका की छवि को बदनाम करने के बराबर मानते हुए हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस की मंजूरी के साथ स्वत: संज्ञान कार्यवाही शुरू की गई थी।
खंडपीठ ने कहा,
“उक्त टिप्पणियां केवल निर्णयों की निष्पक्ष आलोचना की प्रकृति में नहीं हैं, बल्कि अवांछनीय अपशब्दों के उपयोग के साथ असंयमित भाषा में हैं। उपरोक्त आरोप नंबर 6 के अनुसार, यह व्यक्त किया गया कि माननीय न्यायाधीश अपने समग्र प्रदर्शन के लिए महाभियोग के पात्र हैं। यह व्यक्त किया गया कि जनता के अधिकारों को ध्वस्त और अपमानित किया गया है। इस प्रकार, यह अदालत की छवि को बदनाम करने के लिए प्रतिवादी-अवमाननाकर्ता द्वारा किया गया एक जानबूझकर किया गया प्रयास था…।”
डिवीजन बेंच ने इसके साथ ही अवमाननाकर्ता द्वारा की गई टिप्पणियों के बारे में बताया, जो अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2 (सी) के दायरे में आती हैं।
अदालत ने यह भी कहा कि 'यहां तक कि अदालत के अधिकार को बदनाम करने या कम करने का प्रयास' भी पूरी तरह से 'आपराधिक अवमानना' की परिभाषा के अंतर्गत आता है।
अदालत ने आगे बताया,
“इसलिए अदालत को बदनाम करने की प्रवृत्ति या अदालत के अधिकार को कम करने की प्रवृत्ति या हस्तक्षेप करने की प्रवृत्ति या किसी भी तरीके से न्याय प्रशासन में बाधा डालने की प्रवृत्ति या न्याय के अधिकार या महिमा को चुनौती देने की प्रवृत्ति, आपराधिक अवमानना होगी ... अवमाननाकर्ता का कोई भी आचरण जिसमें न्यायाधीश या अदालत को अवमानना में लाने की प्रवृत्ति होती है या जो अदालत के अधिकार को कम करने की प्रवृत्ति पैदा करता है, वह भी अदालत की अवमानना होगी।”
उल्लेखनीय है कि प्रतिवादी-अवमाननाकर्ता के खिलाफ 2013 से पहले अवमानना मामले में उनके द्वारा दायर दस्तावेजों में अवमाननापूर्ण टिप्पणियों की बाढ़ के कारण दूसरी अवमानना कार्यवाही 2018 में शुरू की गई थी।
सुओ मोटू अवमानना याचिका, (2021) 1 एससीसी 745 और बरदाकांत मिश्रा बनाम उड़ीसा हाईकोर्ट (1974) 1 एससीसी 374 के संदर्भ में प्रशांत भूषण और अन्य पर भरोसा करते हुए पीठ ने राय दी कि एडिटर न्यायालय की अवमानना अधिनियम की धारा 12 के तहत दंडित होने के लिए उत्तरदायी है।
दी जाने वाली सजा की मात्रा पर अवमाननाकर्ता ने जोरदार दलील दी और अदालत ने पाया कि उसने मामले की खूबियों से संबंधित अपनी सभी दलीलें वापस लेने के बाद विवादास्पद टिप्पणियों के बारे में बिना शर्त माफी मांगी। सजा की सीमा तय करते समय अदालत ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि वह बेड पर है और पैरालिसिस से पीड़ित है।
अदालत ने प्रतिवादी-अवमाननाकर्ता के खिलाफ दो अवमानना कार्यवाही के लिए संयुक्त रूप से 4000/- रुपये का जुर्माना लगाते हुए उसे भविष्य में सतर्क रहने की सलाह भी दी। आदेश की तारीख से 15 दिनों के भीतर जुर्माना अदा करने में विफल रहने पर अवमाननाकर्ता को दस दिनों की अवधि के लिए साधारण कारावास से गुजरना होगा।
केस टाइटल: संदर्भ में (सुओ मोटो) बनाम डॉ. एन.एस. पूनिया
केस नंबर: अवमानना याचिका (आपराधिक) नंबर 12/2013 और अवमानना याचिका (आपराधिक) नंबर 4/2018
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