अलग रहने वाली पत्नी और बच्चे को भरण-पोषण से वंचित करना मानवीय दृष्टिकोण से सबसे बड़ा अपराधः दिल्ली हाईकोर्ट ने पति पर 20 हजार का जुर्माना लगाया

Manisha Khatri

19 July 2022 8:00 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा, ''अलग रहने वाली पत्नी और बच्चे को भरण-पोषण से वंचित करना मानवीय दृष्टिकोण से भी सबसे बड़ा अपराध है।''

    जस्टिस आशा मेनन ने उपरोक्त टिप्पणी करते हुए पति की तरफ से दायर एक याचिका को 20,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए खारिज कर दिया। पति ने इस याचिका में ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे वैवाहिक मामले का निपटारा होने तक पत्नी और बच्चे को अंतरिम भरण पोषण के तौर पर 20,000 रुपये की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

    अदालत ने कहा कि,' 'एक अलग रहने वाले पति का दुर्भावनापूर्ण इरादा अपनी आय को जितना संभव हो उतना कम बताना होता है, दुखदायी सुख के लिए, किसी की व्यथा को देखने के लिए, जिसके पास उस पर निर्भर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, जो अहंकारी प्रवृत्ति द्वारा निर्देशित होता है,संभवतः अपनी पत्नी को सबक सिखाने के लिए जो उसके हुक्म के अनुसार नहीं चली है। अहंकार के टकराव सहित कई कारणों से वैवाहिक संबंध समाप्त हो सकते हैं। यह समय है कि जब एक पति या पत्नी द्वारा दूसरे के खिलाफ मुकदमा दायर किया जाता है तो दृष्टिकोण में बदलाव होता है।''

    कोर्ट ने यह भी कहा, ''मुकदमे में कड़वाहट लाने से किसी का भी उद्देश्य पूरा नहीं होता है। फैमिली कोर्ट का निर्माण, परामर्श केंद्रों का पूरा सेट, और मध्यस्थता की उपलब्धता चाहे मुकदमेबाजी से पहले हो या मुकदमेबाजी के दौरान, सभी वैवाहिक और पारिवारिक समस्याओं के अधिक मिलनसार और कम कष्टप्रद समाधान के लिए अभिप्रेत हैं। कानूनी बिरादरी को इन तरीकों से त्वरित समाधान को प्रोत्साहित करना चाहिए। जीवन को बर्बादी और विनाश के कगार से बचाने में उनकी भूमिका अतुलनीय होगी।''

    अदालत ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की है कि पति अपनी पत्नियों को भुगतान में देरी के लिए निष्पादन याचिका दायर करने के लिए मजबूर करते हैं, भले ही एक अंतरिम उपाय के रूप में ही एक अदालत ने उसकी पात्रता निर्धारित की हो।

    हाईकोर्ट ने 20 अप्रैल, 2022 के आदेश में पति को निर्देश दिया था कि वह ट्रायल कोर्ट द्वारा तय की गई राशि और उसके द्वारा भुगतान की गई राशि के अंतर की बकाया राशि को जमा कर दे। पति ने दावा किया था कि उसने 4000 रुपये की राशि का भुगतान एफडीआर के रूप में पत्नी को फरवरी, 2022 तक कर दिया है।

    याचिकाकर्ता पति के वकील द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि इस आदेश के अनुपालन में अंतर की बकाया 1,00,000 रुपये की राशि कोर्ट रजिस्ट्री के पास जमा कर दी गई है।

    याचिकाकर्ता का यह भी तर्क था कि उसने अपने आय और व्यय के हलफनामे में फैमिली कोर्ट के समक्ष बताया था कि उसकी मासिक आय 28,000 रुपये है। जिसे ध्यान में रखते हुए वह अपनी पत्नी और बच्चे को प्रति माह 4,000 रुपये का भुगतान करने को तैयार था।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता पत्नी और बच्चे को रखने के लिए भी तैयार था और उनके अलग निवास के लिए एक परिसर किराए पर लेकर देने को भी तैयार था।

    अदालत ने कहा कि हालांकि याचिकाकर्ता पति ने दावा किया है कि उसने भरण-पोषण की राशि का भुगतान फरवरी, 2022 तक किया है, परंतु इस तथ्य पर पत्नी और बच्चे द्वारा विवाद किया गया है। जिन्होंने प्रस्तुत किया है कि भुगतान केवल सितंबर, 2021 तक यानी 7 महीने के लिए किया गया है।

    अदालत ने नोट किया कि,

    ''प्रतिवादियों द्वारा दायर एक निष्पादन याचिका भी लंबित बताई गई है। सहमति आदेश के निर्देशों का पालन न करना याचिकाकर्ता के ''निष्पक्ष आचरण'' के बारे में बता रहा है। लेकिन वह चाहता है कि यह न्यायालय प्रतिवादियों के भरण-पोषण के लिए इसी तरह की पेशकश को स्वीकार कर ले।''

    कोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा शपथ पर दर्ज किए गए बयान पर भी ध्यान दिया, जिसमें कहा गया था कि पति के पास हुंडई ईओएन कार और सैमसंग का एक स्मार्टफोन था।

    अदालत ने कहा,

    ''फिर भी, वह प्रतिवादी के भरण-पोषण के लिए 4,000 रुपये (इस न्यायालय के समक्ष 5,000 रुपये) यानी अपने वृद्ध माता-पिता पर कथित रूप से खर्च की गई राशि के आधे से भी कम रखना चाहता है। एक बड़ा होता बच्चा और एक मां जो अपने इस बड़े होते बच्चे की सभी जरूरतों का ख्याल रख रही है, उसे किसी भी तरह से 4,000 रुपये की राशि के साथ अपना काम चलाना पड़ रहा है, जबकि याचिकाकर्ता और उसके माता-पिता खुद पर 25,000 रुपये से 28,000 रुपये खर्च करके अपने आराम का स्तर बढ़ा सकते हैं।''

    कोर्ट ने कहा, ''यह रवैया कम से कम कहने के लिए शर्मनाक है। यह किसी भी पति या पिता के लिए उचित नहीं है कि वह एक पत्नी को उचित जीवन स्तर से वंचित करने करे जो कि एक गृहिणी है और जिनका एक कम उम्र का बच्चा है। याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि प्रतिवादी नंबर एक ट्यूशन के माध्यम से 30,000 रुपये कमा रही है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक बेबुनियाद आरोप है, लेकिन यह उत्सुकता का विषय है कि इस तरह की अधिक आय अर्जित करने के लिए याचिकाकर्ता खुद क्यों इस तरह के अतिरिक्त प्रयास करने के लिए तैयार नहीं है ताकि वह एक पति और एक पिता के वित्तीय दायित्व को पूरा कर सकें।''

    उक्त टिप्पणियों के साथ, अदालत ने याचिका को बीस हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए खारिज कर दिया। साथ ही निर्देश दिया है कि जुर्माने की राशि फैमिली कोर्ट के समक्ष सुनवाई की अगली तारीख पर पत्नी को दे दी जाए।

    केस टाइटल- प्रदीप कुमार बनाम श्रीमती भावना व अन्य

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 672

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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