संविदा पर काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों को बच्चे की देखभाल के लिए छुट्टी नहीं मिलना बच्चे को उसके अधिकार से वंचित करना है : उत्तराखंड हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

28 July 2020 3:30 AM GMT

  • संविदा पर काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों को बच्चे की देखभाल के लिए छुट्टी नहीं मिलना बच्चे को उसके अधिकार से वंचित करना है : उत्तराखंड हाईकोर्ट

    उत्तराखंड हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने कहा है कि संविदा पर काम करने वाली महिला को भी बच्चे की देखभाल (Child Care Leave) के लिए छुट्टी (सीसीएल) लेने का अधिकारी है।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन, न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा,

    "सीसीएल प्रथमत: बच्चों की भलाई के लिए है। अगर किसी बच्चे की मां सरकार में संविदा के आधार पर काम कर रही है, तो उसके बच्चों की भी आवश्यकताएँ वही हैं जो दूसरे बच्चों की। अगर सरकार में संविदा की व्यवस्था के तहत काम करने वाले कर्मचारियों को सीसीएल नहीं दिया जाता है तो इसका अर्थ यह हुआ उसके बच्चे को इस अधिकार से वंचित करना। इस बच्चे को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत यह अधिकार प्राप्त है।"

    पीठ ने इसके साथ ही यह भी कहा कि इस तरह के कर्मचारी को 31 दिनों का वेतन सहित सीसीएल दिया जा सकता है और इसकी सभी शर्तें वही होंगी जो अर्जित छुट्टी की होती हैं और जो 30 मई 2011 के आदेश के मुताबिक़ अन्य सरकारी कर्मचारियों को मिलती हैं।

    पूर्ण पीठ ने कहा,

    " संविदा पर काम करने वाले कर्मचारी का रोज़गार सिर्फ़ एक साल के लिए होता है और और उन्हें 730 दिनों की छुट्टी नहीं दी जा सकती है। इस तरह के कर्मचारियों को उन्हीं सभी शर्तों और सिद्धांतों पर 31 दिनों की छुट्टी दी जा सकती है जो "अर्जित छुट्टी" के रूप में होगी जैसा कि 30 मई 2011 के सरकारी आदेश के अनुरूप होगा।"

    पृष्ठभूमि

    अदालत ने यह फ़ैसला एक मां की याचिका पर दिया जो आयुर्वेदिक डॉक्टर के रूप में राज्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं, उत्तराखंड में काम करती है। अपने मातृत्व अवकाश की अवधि पूरी करने के बाद याचिकाकर्ता तनुजा टोलिया ने सीसीएल के लिए आवेदन दिया जिसे आयुर्वेदिक एवं यूनानी सेवाओं के निदेशक ने यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि सीसीएल की सुविधा संविदा पर काम कर रहे कर्मचारियों को उपलब्ध नहीं है।

    याचिकाकर्ता के मामले की इसके बाद हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने सुनवाई की जहां उन्होंने कहा कि क़ानून में सीसीएल की इस सुविधा का प्रावधान विशेषकर महिला कर्मचारियों के लिए किया गया है और किसी की नौकरी की प्रकृति क्या है इस पर ग़ौर किए बिना यह सभी महिला कर्मचारियों को मिलना चाहिए। इस बारे में डॉक्टर शांति महेरा बनाम उत्तराखंड राज्य मामले में इस अदालत के फ़ैसले का हवाला दिया गया।

    उसमें यह भी कहा गया कि संविदा पर काम करने वाले कर्मचारियों को 730 दिनों का सीसीएल दिया जा सकता है। खंडपीठ ने इस मामले की बड़ी पीठ से सुनवाई की अनुशंसा की।

    एक व्यक्ति जिसे 365 दिन का रोज़गार मिला हुआ है, उसको 730 दिनों या दो साल का सीसीएल देने का मतलब यह है कि उसके कॉन्ट्रेक्ट को एक साल के लिए अपने आप आवश्यक रूप से बढ़ाया जाए।

    प्रतिवादियों ने कहा कि कर्मचारी के रोज़गार की कुल अवधि 12 महीने की है यानी 365 दिनों की और इसलिए यह संभव नहीं है कि उसे 370 दिनों की सीसीएल छुट्टी दी जाए।

    कोर्ट ने क्या कहा

    पीठ ने स्पष्ट किया कि सीसीएल महिला का कोई अधिकार नहीं है बल्कि यह बच्चों के अधिकारों की स्वीकारोक्ति है।

    पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम बनाम महिला कार्यकर्ता (मस्टर रोल) एवं अन्य (2000) 3 SCC 224 मामले में अपने फ़ैसले में कहा कि सभी तरह के रोज़गारों में मातृत्व अवकाश देना अनिवार्य है और इसमें किसी निगम में मस्टर रोल पर काम करनेवाली महिलाएं भी शामिल हैं।

    पीठ ने कहा,

    "…हमें इस बारे में कोई संदेह नहीं है कि 12 महीनों के लिए काम पर रखे गए संविदा कर्मचारियों को भी सीसीएल प्राप्त करने का अधिकार है और इस अधिकार को 30 मई 2011 को जारी सरकारी आदेश में भी पढ़ा जा सकता है।"

    अदालत ने मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य (1992) 3 SCC 666 मामले में आए फ़ैसले पर भी भरोसा किया।

    इस फ़ैसले में कोर्ट ने कहा,

    "राज्य का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह ऐसा माहौल बनाए कि संविधान के पार्ट III में नागरिकों को मौलिक अधिकारों की जो गारंटी दी गई है उसका लाभ सब को मिले।"

    जिस महिला की नौकरी की कुल अवधि 365 दिनों की है उसको 730 दिनों का सीसीएल देने में जो विरोधाभास है, पीठ इससे पूरी तरह वाक़िफ़ थी। इस विरोधाभास को दूर करने के लिए अदालत ने डोली गोगोई बनाम असम राज्य मामले में गुवाहाटी हाईकोर्ट के फ़ैसले का हवाला दिया।

    इस मामले में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने ठेके पर काम करनेवाले कर्मचारियों को सीसीएल देने की बात कही पर कहा कि यह सामानुपातिक (प्रो राटा) आधार पर होना चाहिए।

    इस आधार पर पीठ ने कहा,

    "हमें कहा गया है कि राज्य सरकार के कर्मचारियों को एक साल में 31 दिनों का अर्जित अवकाश मिलता है। वही सिद्धांत यहां भी उन कर्मचारियों के संदर्भ में लागू होगा जिनकी रोज़गार की पूरी अवधि एक साल की है बशर्ते कि वे 30 मई 2011 को जारी सरकार के आदेश के तहत अन्या अर्हता पूरी करते हों- मतलब यह कि जिनके दो बच्चे 18 साल से कम उम्र के हैं उन्हें भी सीसीएल का लाभ मिलेगा।"

    अदालत ने कहा कि सीसीएल अधिकार नहीं है और कोई भी सरकारी आदेश के बिना सीसीएल पर नहीं जा सकता।

    इस बारे में अन्य हाइकोर्टों के भी फ़ैसले आए हैं जो इस तरह से हैं -

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट : Dr. Mandeep Kaur v. Union of India & Ors,

    केरल हाईकोर्ट - Rasitha C H v State of Kerala और Rakhi P V v State of Kerala

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट : Anima Goel v. Haryana State Agricultural Development Corporation (2007

    राजस्थान हाईकोर्ट : Neetu Choudhary v. State of Rajasthan & Ors. (2008); Meenakshi Rao v. State of Rajasthan & Ors. (2017)

    उत्तराखंड हाईकोर्ट : Dr. Deepa Sharma v. State of Uttarakhand (2016)

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट : Archana Pandey vs The State Of Madhya Pradesh (2017

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