"गरीब नवाज मस्जिद का विध्वंस प्रथम दृष्टया कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एसएचओ को अवमानना के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

3 July 2021 6:48 AM GMT

  • गरीब नवाज मस्जिद का विध्वंस प्रथम दृष्टया कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एसएचओ को अवमानना के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राम सनेही घाट के एसएचओ को कारण बताओ नोटिस जारी किया और यह स्पष्ट करने के लिए कहा कि उनके खिलाफ उच्च न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए गरीब नवाज मस्जिद को ध्वस्त करने का आदेश पारित करने के खिलाफ अवमानना कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जानी चाहिए। दरअसल, कोर्ट ने निर्देश दिया था कि COVID-19 महामारी के मद्देनजर विध्वंस से संबंधित कोई भी आदेश 31 मई तक स्थगित रखा जाएगा।

    न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने इस प्रकार कहा कि,

    "अवमानना याचिका में दिए गए बयानों के साथ-साथ प्रस्तुत प्रस्तुतियां को देखकर प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि 17.05.2021 को प्रतिवादी नंबर 2-स्टेशन हाउस ऑफिसर, राम स्नेही घाट, तहसील और जिला बाराबंकी द्वारा विवादित मस्जिद को ध्वस्त करने का आदेश जनहित याचिका संख्या 564 में पारित आदेश दिनांक 22.04.2021 के निर्देश संख्या 4 और 5 का उल्लंघन है।"

    विवाद उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में 17 मई को हुई गरीब नवाज मस्जिद के विध्वंस से संबंधित है, जिसे जिला प्रशासन ने अवैध संरचना होने का दावा किया था।

    याचिकाकर्ता आवेदकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि पुन: बनाम यूपी राज्य मामले में उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों की जानबूझकर अवज्ञा की गई है, जिसमें कोर्ट ने तेजी से बढ़ते COVID- 19 मामलों के मद्देनजर अंतरिम आदेशों, जमानत आदेशों और अदालत द्वारा पारित अन्य बेदखली या विध्वंस आदेशों के विस्तार के संबंध में कई निर्देश पारित किए थे।

    कोर्ट के आदेश के निर्देश 4 में कहा गया था कि,

    "उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय या दीवानी न्यायालय द्वारा पहले ही पारित बेदखली या विध्वंस के कोई भी आदेश, यदि इस आदेश के पारित होने की तारीख तक निष्पादित नहीं किए जाते हैं तो 31.05.2021 तक की अवधि के लिए स्थगित रहेंगे।"

    याचिकाकर्ता के द्वारा प्रस्तुत किया गया कि इस निर्देश के अनुसार, राम सनेही घाट के एसडीएम के 3 अप्रैल के आदेश के निष्पादन में एसएचओ द्वारा निष्पादित करने के लिए जिला प्रशासन ने 17 मई को मस्जिद को ध्वस्त कर दिया जो कि दिशानिर्देश का उल्लंघन है।

    कोर्ट ने मामले में एसडीएम और एसएचओ द्वारा दायर हलफनामों पर विचार करते हुए कहा कि,

    "अवमानना याचिका के समर्थन में दायर हलफनामे का पैराग्राफ-4, प्रथम दृष्टया प्रतिवादी नंबर 1 के संबंध में बाराबंकी तहसील, राम स्नेही घाट के सब डिविजल मजिस्ट्रेट द्वारा पारित 03.04.2021 का आदेश सही नहीं प्रतीत होता है, जबकि जनहित याचिका संख्या 564 में निर्देश जारी करने का आदेश दिनांक 24.04.2021 है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "अवमानना याचिका के रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि सब डिविजल मजिस्ट्रेट, राम स्नेही घाट, तहसील बाराबंकी ने न्यायालय द्वारा दिनांक 24.04.2021 को पारित आदेश की पेंडेंसी के दौरान विध्वंस या बेदखली के लिए कोई आदेश पारित किया था। जनहित याचिका जैसे अवमानना याचिका के आधार पर प्रथम दृष्टया प्रतिवादी संख्या 1 के खिलाफ नोटिस जारी करने का कोई मामला नहीं बनता है।"

    कोर्ट ने इसे देखते हुए निर्देश दिया कि,

    "प्रतिवादी संख्या 2 को जवाब दाखिल करने और कारण बताने के लिए नोटिस जारी करें कि उसके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जाए। पेशी वकील के माध्यम से हो।"

    अब इस मामले पर 22 जुलाई को विचार किया जाएगा।

    हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा दायर एक रिट याचिका पर नोटिस जारी किया है। इस याचिका में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले (राम सनेही घाट क्षेत्र) में गरीब नवाज मस्जिद के विध्वंस को चुनौती दी गई थी।

    जस्टिस सौरभ लावानिया और जस्टिस राजन रॉय की बेंच ने कहा कि याचिकाएं प्रथम दृष्टया सार्वजनिक उपयोगिता भूमि पर एक मस्जिद के अस्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाती हैं।

    कोर्ट ने कहा था कि याचिका सीआरपीसी की धारा 133 के तहत राज्य के अधिकारियों द्वारा शक्ति के प्रयोग के संबंध में भी सवाल उठाती है। साथ ही अन्य संबंधित प्रावधान, इसका मस्जिद को जिस तरह से गिराया गया है, उस पर याचिका के दायरा को विशेष रूप से सत्ता के दुर्भावनापूर्ण प्रयोग के आरोप तक बढ़ाया गया है।

    याचिकाकर्ताओं द्वारा यह प्रस्तुत किया गया था कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 133 (1) के तहत स्थानीय अधिकारियों द्वारा मस्जिद विध्वंस की कार्यवाही पूरी तरह से शत्रुता और दुर्भावना से और बेहद जल्दबाजी से की गई थी।

    याचिकाओं में कहा गया कि उत्तर प्रदेश सरकार कुछ नई संरचना बनाकर ध्वस्त मस्जिद की जगह की प्रकृति को बदलने की कोशिश कर रही है और यदि याचिकाकर्ताओं को तत्काल नहीं सुना जाता है, तो उन्हें एक अपूरणीय क्षति होगी।

    केस का शीर्षक: वसीफ हसन एंड अन्य बनाम दिव्यांशु पटेल एस.डी.एम. बाराबंकी एंड अन्य।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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