'सीज़र की पत्नी को संदेह से ऊपर होना चाहिए': दिल्ली हाईकोर्ट ने आरबीआई कर्मचारी की बर्खास्तगी बरकरार रखी

Shahadat

23 Nov 2022 6:51 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रसिद्ध वाक्यांश- 'सीज़र की पत्नी को संदेह से ऊपर होना चाहिए' का उल्लेख करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के कर्मचारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखा। उक्त कर्मचारी पर 2005 में रद्द किए गए नोट चोरी करने का आरोप लगाया गया है।

    जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने कहा कि बैंक कर्मचारी या अधिकारी को पूरी निष्ठा, परिश्रम, सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के साथ कर्तव्य का पालन करना चाहिए, जिससे बैंक में जनता या जमाकर्ताओं का विश्वास न टूटे।

    अदालत ने कहा,

    "जैसा कि लोकप्रिय कहावत है- "सीज़र की पत्नी को संदेह से ऊपर होना चाहिए"। यह स्थापित कानून है कि सार्वजनिक धन से निपटने वाले बैंकों में काम करने वाले कर्मचारियों/अधिकारियों की ईमानदारी सर्वोपरि होनी चाहिए।"

    यह देखते हुए कि बैंकिंग प्रणाली भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, अदालत ने कहा कि जो अधिकारी बैंक अधिकारी के रूप में अपना कर्तव्य निभाते हुए वित्तीय अनियमितताओं में शामिल पाया जाता है, उसे बैंक में मामूली उल्लंघन होने पर भी नहीं छोड़ा जा सकता।

    अदालत ने कहा,

    "विभागीय जांच में सबूत का मानक आपराधिक मामले का नहीं है, यानी उचित संदेह से परे, बल्कि ट्रायल केवल संभावनाओं की प्रबलता का है।"

    अदालत ने विजय कुमार गुप्ता द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जो आरबीआई में सहायक प्रबंधक के रूप में काम कर रहा था और मुद्रा सत्यापन और प्रसंस्करण प्रणाली में तैनात था। गुप्ता को 4,50,000 रुपये मूल्य की मुद्राओं के प्रसंस्करण और श्रेडिंग का काम सौंपा गया था।

    मई, 2005 में श्रेडिंग रूम में कतरन के लिए लाए गए रद्द किए गए नोटों की औचक जांच के दौरान, यह देखा गया कि तीन पैकेटों में 100 रुपये मूल्यवर्ग के 50 नोटों की कमी है।

    इसके बाद गुप्ता को 11 जून, 2005 को जानबूझकर बैंक के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करने, आर्थिक लाभ प्राप्त करने और घोर लापरवाही प्रदर्शित करने के लिए करेंसी नोटों को चुराने या चोरी करने के लिए चार्जशीट किया गया।

    गुप्ता के खिलाफ आरोप साबित पाए गए और उन्हें 30 अक्टूबर, 2006 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया और उनसे 5000 रुपये वसूलने का आदेश दिया गया। जुलाई, 2007 में अपीलीय प्राधिकारी द्वारा गुप्ता की अपील खारिज कर दी गई।

    हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती देते हुए गुप्ता ने तर्क दिया कि बर्खास्तगी अनुचित और अवैध है और उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।

    जस्टिस सिंह ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि गुप्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप विधिवत साबित हुए हैं और उन्हें सक्षम प्राधिकारी द्वारा सही तरीके से दोषी ठहराया गया है।

    अदालत ने कहा,

    "अपीलीय प्राधिकरण ने याचिकाकर्ता की अपील खारिज करते हुए रिकॉर्ड में मौजूद सभी सामग्री और सबूतों पर विचार करने के बाद विस्तृत और तर्कपूर्ण आदेश पारित किया। इसलिए अपीलीय आदेश में कोई अवैधता या त्रुटि नहीं है।"

    यह देखते हुए कि गुप्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रकृति में गंभीर हैं और घोर कदाचार के बराबर हैं, अदालत ने उनके इस तर्क को खारिज कर दिया कि बर्खास्तगी की सजा आनुपातिक नहीं है।

    अदालत ने कहा,

    "तथ्यों के साथ-साथ कानून पर उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय यह नहीं पाता कि याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच करने में कोई प्रक्रियात्मक उल्लंघन या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। यह भी पूर्वगामी पैराग्राफ में तय किया गया कि याचिकाकर्ता के दोष को स्थापित करने के लिए रिकॉर्ड में पर्याप्त सामग्री है।"

    केस टाइटल: विजय कुमार गुप्ता बनाम भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य

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