राजधानी में पेड़ों की कटाई के कारण 1.5 लाख वर्षों का वृक्ष जीवन खत्म हो गया, सरकारी परियोजनाओं को पर्यावरणीय मुद्दों को ध्यान में रखना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
19 July 2022 11:14 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पर्यावरणीय मुद्दों को ध्यान में रखने के लिए सरकारी परियोजनाओं की आवश्यकता है। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में पेड़ काटने की अनुमति के कारण 1,54,000 वर्षों का वृक्ष जीवन खत्म गया है।
जस्टिस नजमी वज़ीरी ने कहा,
"किसी भी मात्रा में कंक्रीट-स्कैपिंग हरित आवरण के नुकसान या क्षति की जगह नहीं ले सकती है।"
कोर्ट ने पेड़ों की कटाई के संबंध में अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि हमने अपने पिछले आदेश में यह नोट किया गया था कि 77,420 पेड़ों को वर्ष 2019, 2020 और 2021 में दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 की धारा 9 और धारा 29 के तहत आवेदनों के माध्यम से काटने की अनुमति दी गई।
अदालत ने देखा,
"यदि प्रत्येक पेड़ की औसत आयु 20 वर्ष है तो दिल्ली ने कटाई के कारण पेड़ के जीवन के 1,54,000 वर्ष खो दिए हैं।। अन्य डेटा, जैसा कि पिछले आदेश के पैरा तीन में उल्लेख किया गया कि वर्तमान में रिकॉर्ड में नहीं है। इसे जब समझा जाता है तो यह नुकसान कई गुना बढ़ जाएगा। प्रत्येक कटा हुआ पेड़ केवल वायु और ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाता है। सरकारी परियोजनाओं को पर्यावरणीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए अपनी योजनाएं बनानी चाहिए।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रतिवादियों द्वारा दायर अतिरिक्त हलफनामे में पेड़ की कटाईको संबोधित नहीं किया गया है।
अदालत ने देखा,
"निश्चित रूप से पीडब्ल्यूडी सड़कों/भूमि पर पेड़ गायब नहीं कर सकते या सड़क/भूमि के उस खंड के प्रभारी अधिकारी के ज्ञान के बिना नहीं गिर सकते। इस संबंध में हलफनामा चुप है। साइट निरीक्षण के बाद वृक्ष अधिकारी ने 80+3 पेड़ों का नुकसान दर्ज किया। इसलिए, उक्त हलफनामे के पैरा 24 से 27 अक्षम्य हैं।"
इसमें कहा गया है,
"भरे हुए नालों की निकासी के लिए नागरिक निर्माण कार्य, भूमि मापदंडों, अदालत के निर्देशों या आवश्यक अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता।"
प्रतिवादी प्राधिकारियों की ओर से पेश वकील द्वारा न्यायालय को अवगत कराया गया कि अपने गलत कामों को कम करने के लिए वे स्वेच्छा से सुप्रीम कोर्ट में और उसके आस-पास 830 पेड़ (क्षतिग्रस्त पेड़ों का दस गुना) लगाने की इच्छा रखते हैं। मध्य और पूर्वी दिल्ली में मथुरा रोड और अन्य क्षेत्रों का विस्तार जैसा कि वन विभाग द्वारा पहचाना जा सकता है।
कोर्ट ने आदेश दिया,
"शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के सामने उस जमीन में कम से कम 100 पेड़ लगाए जाएंगे, जिसे अब मुक्त कर दिया गया है। प्रगति मैदान और सुप्रीम कोर्ट के बीच एक भूमिगत लूप को खत्म कर दिया गया है।"
इसमें कहा गया,
"बाकी 530 पेड़ों को स्वेच्छा से रोपने के लिए वन संरक्षक के शपथ पत्र के अनुलग्नक-9 की जांच की जाएगी; यह डीम्ड टी.एन.गोडावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ और अन्य (डब्ल्यू.पी.(सिविल) संख्या 202/1995) में निर्णय दिनांक 12.12.1996 की शर्तों के अनुसार, वन क्षेत्र को सूचीबद्ध करता है, जहां आगे वनीकरण किया जा सकता है।"
तद्नुसार, अवमानना करने वालों से हुए नुकसान को कुछ हद तक कम करने के आश्वासन के मद्देनज़र कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 21 जुलाई तक सजा के आदेश पर रोक लगा दी।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट आदित्य एन प्रसाद पेश हुए।
अदालत ने मामले की पिछली सुनवाई में शहर से पूरी तरह से लहराते पेड़ों को काटने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि ऐसे पेड़ों को हटाने के बजाय उन्हें प्रत्यारोपित करना उचित और बुद्धिमानी भरा होगी।
अदालत ने पड़ोस में हर पेड़ के मूल्य पर भी जोर देते हुए कहा कि प्रतिपूरक वनीकरण, जो "भौगोलिक रूप से दूर और नवजात प्रतिपूरक वृक्षारोपण है, शायद ही किसी राहत या वास्तविक मुआवजे का हो सकता है।"
केस टाइटल: नीरज शर्मा बनाम विनय शील सक्सेना और अन्य, नई दिल्ली नेचर सोसाइटी बनाम विनय शील सक्सेना और अन्य।
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