दिल्ली में पेड़ों की कटाई पर हाईकोर्ट का सख्त रुख: प्रतिरोपण के बाद 5 वर्षों तक पेड़ों की देखभाल करना होगा अनिवार्य
Amir Ahmad
26 Jun 2025 3:56 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में पेड़ों की कटाई और प्रतिरोपण से संबंधित मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कई सख्त निर्देश जारी किए।
जस्टिस जसमीत सिंह की एकल पीठ ने यह निर्देश अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान पारित किए, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि राजधानी के अधिकारियों द्वारा अदालत के पूर्व आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है।
कोर्ट ने कहा कि जब किसी परियोजना में पेड़ों की कटाई या प्रतिरोपण शामिल हो तो वन संरक्षक (DCF) या ट्री ऑफिसर को उसकी योजना के प्रारंभिक चरण से ही शामिल किया जाना अनिवार्य होगा। अदालत ने इस बात पर विशेष बल दिया कि यह केवल नीतिगत निर्णय नहीं है बल्कि दिल्लीवासियों के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षित जीवन और स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार का मसला है।
न्यायालय ने निर्देश दिया कि प्रतिपूरक वृक्षारोपण के तहत जो भी नए पेड़ लगाए जाएं, वे कम-से-कम छह फीट ऊँचे होने चाहिए, जिनकी नर्सरी में आयु पाँच वर्ष हो और जिनका कॉलर गिर्थ दस सेंटीमीटर से कम न हो। साथ ही आवेदन करने वाले व्यक्ति को अदालत में शपथ-पत्र दायर कर यह सुनिश्चित करना होगा कि वह लगाए गए पेड़ों की पाँच वर्षों तक सिंचाई, देखरेख और संपूर्ण रखरखाव करेगा।
कोर्ट ने पेड़ों के प्रतिरोपण के संदर्भ में यह भी कहा कि ऐसे पेड़ों की अत्यधिक छंटाई नहीं की जानी चाहिए। साथ ही संबंधित ट्री ऑफिसर को परियोजना के समग्र पर्यावरणीय प्रभाव, वैकल्पिक स्थानों की उपलब्धता, आस-पास के हरित क्षेत्र पर प्रभाव, पेड़ों की उम्र और प्रतिरोपण के बाद उनके जीवित रहने की संभावना जैसे अनेक पहलुओं पर विचार करना होगा।
अदालत ने स्पष्ट किया कि SOP की निगरानी दिल्ली प्रिज़र्वेशन ऑफ ट्रीज़ एक्ट, 1994 के अंतर्गत की जाएगी। अनुमोदन के बाद भी डीसीएफ यह देखेगा कि आदेशों का पालन हो रहा है या नहीं।
यह आदेश उस पृष्ठभूमि में आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर, 2024 में निर्देश दिया कि यदि दिल्ली में पचास या अधिक पेड़ों की कटाई की अनुमति दी जाती है तो वह अनुमति केवल तब ही प्रभावी होगी जब सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (CEC) की पूर्व स्वीकृति प्राप्त हो।
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि वह किसी नीतिगत निर्णय की समीक्षा नहीं कर रहा है, बल्कि उन प्रक्रियात्मक गाइडलाइनों को लागू करने की दिशा में निर्देश दे रहा है, जो कि पर्यावरण संरक्षण और नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए अनिवार्य हैं।
केस टाइटल: भावरीन कंधारी बनाम श्री सी. डी. सिंह एवं अन्य

