दिल्ली हाईकोर्ट ने कार्यस्थल पर नस्लवाद, यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के कारण बर्खास्त की गई महिला संपादक को बहाल किया
LiveLaw News Network
27 Oct 2021 5:38 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अकादमी में संपादक के रूप में काम कर रही एक महिला को बहाल कर दिया है। उन्हें संगठन के सचिव पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बाद नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। महिला नार्थ-ईस्ट हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि सचिव उनकी ओर अनुचित यौन संबंध के लिए आगे बढ़ता था। नस्लवादी और लैंगिक टिप्पणियां करता था।
जस्टिस संजीव सचदेवा ने महिला को बहाल करते हुए माना कि इस मामले में सचिव कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम की धारा 2 (जी) के संदर्भ में एक नियोक्ता था। कार्यालय के दिन-प्रतिदिन के मामले, जहां महिला कार्यरत थी, उसका प्रबंध और नियंत्रण वही करता था।
उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में नियोक्ता, सचिव के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत केवल स्थानीय समिति के पास होती और संगठन की आंतरिक शिकायत समिति के पास सचिव के खिलाफ किसी भी शिकायत पर विचार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं होता।
क्या है मामला
उत्तर पूर्वी क्षेत्र से संबंधित महिला को 2017 में दो साल की अवधि के लिए प्रोबेशन पर संपादक (अंग्रेजी) के पद पर नियुक्त किया गया था। उनका मामला था कि उन्हें सचिव के हाथों गंभीर यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जिसमें कथित तौर पर अनुचित यौन प्रस्ताव, अवांछित शारीरिक और यौन संपर्क और यौन-केंद्रित टिप्पणियां शामिल थीं।
महिला की आपत्तियों के प्रतिवाद के रूप में सचिव ने अन्य अधिकारियों की उपस्थिति में उन्हें मौखिक रूप से गाली दी और उन पर चिल्लाया। उसने महिला पर खराब प्रदर्शन और ठीक से काम नहीं करने का आरोप लगाया।
2019 में महिला ने पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। साथ ही उसने अकादमी के कार्यकारी बोर्ड को एक ईमेल भेजकर यौन उत्पीड़न की उसकी शिकायत की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करने का अनुरोध किया। उसकी शिकायत को आंतरिक शिकायत समिति को भेजा गया और दो बाहरी सदस्यों को उक्त समिति में नियुक्त किया गया। (स्वयं सचिव द्वारा)।
महिला का मामला था कि सचिव के खिलाफ कार्रवाई करने में बोर्ड विफल रहा और कार्यालय परिसर में सचिव की उपस्थिति ने उनके लिए शत्रुतापूर्ण कार्य वातावरण का गठन किया।
इसके बाद उन्होंने स्थानीय कमेटी से शिकायत की। महिला ने आंतरिक शिकायत समिति को सूचित किया कि उसके पास सचिव के खिलाफ उनकी शिकायत की सुनवाई का अधिकार क्षेत्र नहीं है और केवल स्थानीय समिति को उसकी शिकायत के आधार पर कार्यवाही शुरू करने का अधिकार दिया गया हे, क्योंकि सचिव धारा 2(जी) अधिनियम के अनुसार नियोक्ता है।
स्थानीय समिति ने उन्हें अधिनियम की धारा 12(1) के तहत तीन महीने की सवैतनिक छुट्टी की राहत प्रदान की।
हालांकि, आंतरिक समिति के समक्ष पेश होने के नोटिस पर आपत्ति जताते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि समिति के सदस्यों ने पुलिस और स्थानीय समिति के समक्ष अपनी शिकायत वापस लेने के लिए उन पर दबाव बनाने की कोशिश की और उनसे सचिव के साथ सुलह करने का आग्रह किया।
उन्होंने आरोप लगाया कि आंतरिक समिति ने गलत तरीके से रिकॉर्ड किया कि वह अपनी शिकायत वापस ले रही थी। महिला ने तब अदालत का रुख किया और अकादमी को स्थानीय शिकायत समिति के निर्देशों का पालन करने और उन्हें तत्काल प्रभाव से तीन महीने की सवैतनिक छुट्टी देने के लिए निर्देश देने की मांग की।
अकादमी को स्थानीय शिकायत समिति के निर्देशों का पालन करने और उसे तत्काल प्रभाव से तीन महीने की सवैतनिक छुट्टी देने का निर्देश देने की मांग की थी। अकादेमी द्वारा एक अन्य रिट याचिका दायर कर स्थानीय समिति के समक्ष कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायालय ने कहा कि भले ही अकादमी की ओर से यह तर्क दिया गया था कि अध्यक्ष उसके सभी कार्यालयों का प्रभारी होता है, यह एक स्वीकृत स्थिति थी कि अध्यक्ष दिल्ली में स्थित नहीं था और कार्यालय के दिन-प्रतिदिन के कार्य जहां महिला कार्यरत थी उसका प्रबंधन और नियंत्रण सचिव द्वारा किया जाता था।
अदालत ने कहा , "चूंकि अधिनियम के प्रयोजनों के लिए अकादमी का सचिव नियोक्ता है, सचिव के खिलाफ शिकायत आंतरिक समिति के पास नहीं होगी, बल्कि केवल स्थानीय समिति के पास होगी।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि आंतरिक शिकायत समिति के पास सचिव के विरुद्ध शिकायत की सुनवाई करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है और आंतरिक समिति द्वारा पारित आदेश या जांच अधिकार क्षेत्र न होने के कारण अस्थिर होगा।
तद्नुसार न्यायालय ने अकादेमी को चालू माह के वेतन का भुगतान करने और चार सप्ताह के भीतर उनके वेतन का बकाया भुगतान करने का निर्देश दिया। यह भी निर्देश दिया गया कि महिला को तब तक सवैतनिक अवकाश पर माना जाएगा जब तक कि स्थानीय समिति उसे सुरक्षित कार्य वातावरण के प्रावधान के संबंध में उचित अंतरिम आदेश पारित नहीं कर देती।