दिल्ली हाईकोर्ट ने पीएफआई के पूर्व अध्यक्ष ई अबूबकर की मेडिकल आधार पर जमानत मांगने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार किया

Shahadat

13 Oct 2022 6:26 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने पीएफआई के पूर्व अध्यक्ष ई अबूबकर की मेडिकल आधार पर जमानत मांगने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के पूर्व अध्यक्ष ई अबूबकर की मेडिकल आधार पर जमानत के लिए दायर याचिका गुरुवार को खारिज कर दी। अबूबकर को हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गिरफ्तार किया था। वह 22 सितंबर से हिरासत में है।

    70 वर्षीय याचिकार्ता ने दावा किया कि वह दुर्लभ प्रकार के अन्नप्रणाली कैंसर, पार्किंसंस रोग के साथ-साथ हाई ब्लड प्रेशर, मधुमेह और कमजोर दृष्टि सहित कई बीमारियों से पीड़ित हैं।

    जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने याचिका वापस लेने के रूप में खारिज कर दी, क्योंकि एनआईए द्वारा इसकी स्थिरता पर प्रारंभिक आपत्ति उठाई गई।

    एनआईए की ओर से पेश हुए विशेष लोक अभियोजक अक्षय मलिक ने तर्क दिया कि उपाय यह है कि पहले निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया जाए और उसके बाद उक्त आदेश के खिलाफ एनआईए अधिनियम की धारा 21 के तहत अपील दायर की जाए। अदालत को बताया गया कि तब हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा अपील पर सुनवाई की जा सकती है।

    एसपीपी ने कहा,

    "उसे पहले विशेष न्यायाधीश से संपर्क करना होगा। उसने जमानत के लिए विशेष न्यायाधीश से संपर्क भी नहीं किया।"

    अबूबकर के वकील ने अदालत से मेडिकल कंडिशन के कारण तत्काल आदेश पारित करने के लिए प्रार्थना की।

    जस्टिस मेंदीरत्ता ने मौखिक रूप से टिप्पणी की:

    "अगर मेरे पास अधिकार क्षेत्र नहीं है तो मैं आदेश कैसे पारित कर सकता हूं? एनआईए अधिनियम विशेष अधिनियम है। हमारे पास शक्तियां नहीं हैं। आपको खंडपीठ से संपर्क करने की आवश्यकता है।"

    इसके बाद आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने याचिका वापस लेने का फैसला किया।

    अबूबकर वर्तमान में न्यायिक हिरासत में है, उसको एनआईए ने 22 सितंबर को उसके आवास से एफआईआर में नाम होने के कारण गिरफ्तार किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि विभिन्न पीएफआई सदस्य कई राज्यों में आतंकवादी कृत्यों को करने के लिए भारत और विदेशों से धन इकट्ठा कर रहे हैं। एफआईआर में यह भी आरोप लगाया गया कि उक्त सदस्य आईएसआईएस जैसे प्रतिबंधित संगठनों में शामिल होने के लिए मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और भर्ती करने में शामिल हैं।

    एफआईआर भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 120बी और 153ए और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 17, 18, 18बी, 20, 22बी 38 और 39 के तहत दर्ज की गई।

    अबूबकर ने अपनी याचिका में कहा कि उसकी मेडिकल कंडिशन बहुत जटिल है, जिसके कारण वह सोचने, लिखने और पढ़ने जैसे बुनियादी कार्यों को करने या करने में असमर्थ हैं।

    यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के डॉ. पी.वी. वरवर राव बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी और अन्य के संदर्भ में दायर की गई, जिसमें राव को यूएपीए मामले में मेडिकल शर्तों के कारण अपराधों के लिए जमानत पर रिहा कर दिया गया।

    इस पृष्ठभूमि में याचिका में कहा गया,

    "वर्तमान मामला पूरी तरह से उस निर्णय के अंतर्गत आता है जैसा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इसे मेडिकल आधार पर स्थायी जमानत के लिए उपयुक्त मामला बना दिया, क्योंकि याचिकाकर्ता की स्वास्थ्य स्थिति गंभीर है। इस प्रकार इस माननीय न्यायालय के तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।"

    याचिका में आगे कहा गया कि अबूबकर ने पुलिस हिरासत के दौरान निचली अदालत से अनुरोध किया गया कि उसके परिवार के सदस्य उससे मिल सकें। हालांकि, यह तर्क दिया गया कि विशेष न्यायाधीश ने इसे खारिज कर दिया, जो कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार के प्रति प्रतिकूल है।

    इसके अलावा, दलील में तर्क दिया गया कि अबूबकर की कथित अपराधों में कोई भूमिका या संलिप्तता नहीं है, क्योंकि वह 2019 से मेडिकल इलाज पर है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि किसी भी तरह की अनुपस्थिति में कल्पना के किसी भी खिंचाव के तहत उसके खिलाफ गंभीर आरोप नहीं लगाए जा सकते हैं।

    याचिका में जोड़ा गया,

    "चूंकि वर्तमान अपराध में भारत भर में कई एफआईआर और शिकायतें शामिल हैं, जिसमें अब तक 200 से अधिक गिरफ्तारियां की गई हैं। इसलिए जांच पूरी होने की कोई निश्चित अवधि नहीं है। इस प्रकार, गंभीर चिकित्सा स्थितियों के तहत याचिकाकर्ता को हिरासत में रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जो अंततः उसके जीवन और भलाई के लिए घातक साबित होगा।"

    गृह मंत्रालय ने यूएपीए की धारा 3 (1) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए 28 सितंबर को पीएफआई और उसके सहयोगियों या सहयोगियों या मोर्चों को तत्काल प्रभाव से पांच साल की अवधि के लिए "गैरकानूनी संगठन" घोषित कर दिया था।

    आतंकवादी संगठनों के साथ उनके कथित संबंधों और आतंकी कृत्यों में कथित संलिप्तता का हवाला देते हुए, केंद्र ने पीएफआई और उसके सहयोगियों रिहैब इंडिया फाउंडेशन (आरआईएफ), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई), अखिल भारतीय इमाम परिषद (एआईआईसी), राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन (एनसीएचआरओ), नेशनल विमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल पर प्रतिबंध लगा दिया।

    केस टाइटल: अबूबकर ई. अपने बेटे अमल तहसीन के माध्यम से बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी

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