दिल्ली हाईकोर्ट ने इंडियन कानून पोर्टल को बलात्कार के मामले में बरी हुए व्यक्ति का नाम छुपाने का निर्देश दिया, किसी व्यक्ति की निजी जानकारी इंटरनेट से हटाने के अधिकार पर नीति का खुलासा करने के लिए कहा

Avanish Pathak

3 Jun 2023 4:05 PM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने इंडियन कानून पोर्टल को बलात्कार के मामले में बरी हुए व्यक्ति का नाम छुपाने का निर्देश दिया, किसी व्यक्ति की निजी जानकारी इंटरनेट से हटाने के अधिकार पर नीति का खुलासा करने के लिए कहा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में इंडियन कानून नामक एक वेबसाइटी को 29 वर्षीय एक व्यक्ति के नाम, जिसे 2018 में बलात्कार के एक मामले में बरी कर दिया गया था, को छुपाने का निर्देश दिया।

    जस्टिस प्रतिभा एम सिंह भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 और 506 के तहत दायर एफआईआर में बरी एक व्यक्ति की ओर से दायर व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसने वेबसाइट पर अपने मामले से जुड़े निर्णय में अपना नाम छुपाने की मांग की थी।

    जुलाई 2018 में ट्रायल कोर्ट ने उसे सभी आरोपों से बरी किया था।

    कोर्ट ने 5 अक्टूबर को मामले को सूचीबद्ध करते हुए कहा था,

    "...चूंकि निर्णय इंडियन कानून वेबसाइट पर खुले तौर पर उपलब्ध है और गूगल सर्च सहित किसी भी वेब सर्ज में उपलब्ध है, इसलिए सुनवाई की अगली तारीख तक यह निर्देश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता का नाम इंडियन कानून पोर्टल पर छिपा दिया जाए। वास्तव में, यदि उक्त निर्णय किसी सर्च या Google सर्च में दिखाई देता है तो नाम भी दिखाई नहीं देगा।”

    अदालत ने वेब पोर्टल को यह भी निर्देश दिया कि वह किसी व्यक्ति की निजी जानकारी इंटरनेट से हटाने के अधिकार के साथ-साथ हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के निर्णयों और आदेशों सहित इसी तरह के मामलों में नामों को छिपाने के संबंध में अपनी नीति बताते हुए एक हलफनामा दर्ज करे।

    जस्टिस सिंह ने भारत सरकार सहित प्रतिवादियों को याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का भी निर्देश दिया।

    याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि ट्रायल कोर्ट के फैसले के अनुसार, अभियोजिका की गवाही को भरोसेमंद नहीं माना गया था और अभियोजन पक्ष के अन्य गवाहों की गवाही के साथ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर पुष्टि नहीं की गई थी, जिसके कारण उसे बरी कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि इंटरनेट पर फैसले की मौजूदगी के कारण उन्हें "बेहद" नुकसान उठाना पड़ा है।

    फैसले का अध्ययन करते हुए अदालत ने कहा,

    "फैसले के अवलोकन से पता चलता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ उचित संदेह से परे कोई मामला नहीं बनाया गया था। वास्तव में, अदालत ने अभियोजिका की गवाही को भरोसे के लायक नहीं माना है।”


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