Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

पुलिस द्वारा लगाए गए जंज़ीरों वाले बैरिकेड के कारण बाइक सवार गिरकर हुआ था बुरी तरह घायल, दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया 75 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश

LiveLaw News Network
22 May 2020 2:27 AM GMT
पुलिस द्वारा लगाए गए जंज़ीरों वाले बैरिकेड के कारण बाइक सवार गिरकर हुआ था बुरी तरह घायल,  दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया 75 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश
x

दिल्ली हाइकोर्ट ने दिल्ली पुलिस द्वारा लगाए गए जंजीरों वालेेे बैरिकेड्स की वजह से हुए हादसे के कारण दिमाग पर चोट आने के बाद भारी डिसेबिलिटी झेल रहे एक व्यक्ति को 75 लाख रुपये का मुआवजा अवार्ड किया है।

न्यायमूर्ति नवीन चावला की एकल पीठ ने 26 वर्षीय पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा देते समय कहा कि,

" हालांकि सुरक्षा के वैध कारणों के लिए बैरिकेड्स लगाए गए थे, लेकिन अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना था कि इसके रखरखाव न करने से ये दुर्घटनाओं का कारण न बनें।"

यह था मामला

दिसंबर 2015 में, याचिकाकर्ता अपनी बाइक पर कहीं जा रहा था, जब वह पुलिस बैरिकेड्स से टकराकर सड़क पर गिर गया। यह बैरिकेड्स जंजीरों से बंधे थे।

अस्पताल के डिस्चार्ज रिकॉर्ड के अनुसार,इस दुर्घटना के बाद वह ऐसे स्थिति में पहुँच गया था कि आंखें खोलने पर उसे दर्द हो रहा था। मेडिकल टर्म में इसे altered sensorium कहते हैं।

उसी समय से याचिकाकर्ता की स्थिति नहीं बदली है इसलिए, याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका में इलाज के खर्चों के भुगतान, आय / निर्भरता की हानि, संभावनाओं की हानि, भविष्य की जरूरतों को जारी रखने और दुर्घटना के कारण पीड़ित के लिए मुआवजे की मांग की।

पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज की एफआईआर

रैश ड्राइविंग के लिए आईपीसी की धारा 279 और 337 के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करते हुए, पुलिस ने यह दावा करते हुए वर्तमान याचिका का जवाब दिया कि दुर्घटना याचिकाकर्ता की ओर से लापरवाही के कारण हुई थी।

पुलिस ने आगे कहा कि इन बैरिकेड्स को अच्छी तरह से रोशनी वाले क्षेत्र में रखा गया था और काफी दूर से दिखाई दे रहा थे।

इसके अलावा, पुलिस ने तर्क दिया, कि दुर्घटना स्थल पर किसी भी प्रकार का कोई हेलमेट या कोई सुरक्षात्मक गियर नहीं मिला था, इस प्रकार याचिकाकर्ता मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 129 के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा था।

पुलिस द्वारा किए गए प्रस्तुतिकरण के जवाब में याचिकाकर्ता ने कुछ तस्वीरें प्रस्तुत कीं, जो बताती हैं कि उन क्षेत्रों में बैरिकेड्स लगाए गए थे, जो खराब रोशनी में थे। याचिकाकर्ता ने अदालत को यह भी बताया कि दुर्घटना के समय उसने हेलमेट पहन रखा था।

कठोर दायित्व और देखभाल के कर्तव्य जैसे सिद्धांतों का विश्लेषण करते हुए अदालत ने कहा कि:

"'जबकि उत्तरदाताओं का दावा है और यह स्वीकार किया जाता है कि शहर के विभिन्न स्थानों पर बैरिकेड्स लगाना जनता के लिए अच्छा है, साथ ही, यह प्रतिवादी नंबर 2 पर एक कर्तव्य निर्धारित करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे किसी दुर्घटना का कारण न बने।"

अदालत ने यह भी देखा कि बैरिकेड्स पर न तो किसी को ड्यूटी के लिए रखा गया था और न ही अच्छी तरह से रोशन क्षेत्र में रखे गए थे।

इसके अतिरिक्त, अदालत ने 'दिल्ली पुलिस मोबाइल बैरिकेड्स की खरीद, रखरखाव, मरम्मत और परिचालन उपयोग' के लिए दिल्ली पुलिस के स्थायी आदेश का विश्लेषण किया और यह कहा कि उक्त आदेश बैरिकेडिंग की अनुमति नहीं देता है।

इसके अलावा, अदालत ने कहा कि स्थायी आदेश के अनुसार इन बैरिकेड्स में फ्लोरोसेंट धारियों को रखा जाना चाहिए था।

इसलिए, अदालत ने इस दावे को स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता को चोट पुलिस के स्वयं के स्थायी आदेश का पालन नहीं करने के कारण लगी थी।

न्यायालय के निर्देश के अनुसार, दिल्ली पुलिस द्वारा चार सप्ताह की अवधि के भीतर उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के पास यह राशि जमा की जानी चाहिए, यह विफल होने पर कि वह विलंब की अवधि के लिए प्रति वर्ष 9% की दर से ब्याज का भुगतान करेगी।

आदेश की कॉपी डाउनलोड करें




Next Story