दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप पीड़िता का नाम प्रकाशित करने के लिए अख़बार से माफ़ी मांगने को कहा

LiveLaw News Network

18 Dec 2019 2:30 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप पीड़िता का नाम प्रकाशित करने के लिए अख़बार से माफ़ी मांगने को कहा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हैदराबाद बलात्कार मामले में पीड़िता का नाम छापने वाले अख़बार 'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' से माफ़ी माँगने को कहा है।

    मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति हरि शंकर की खंडपीठ ने मीडिया पोर्टल से पूछा कि इस तरह का प्रकाशन अज्ञानतावश हुआ या जानबूझकर।

    एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह आदेश दिया। इस याचिका में अदालत से पीड़िता और हैदराबाद बलात्कार मामले के चार आरोपी व्यक्तियों की पहचान का खुलासा करने वाले मीडिया के खिलाफ कार्रवाई का आदेश देने का आग्रह किया गया है।

    अदालत ने OpIndia.com को एक नोटिस जारी कर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है क्योंकि सुनवाई के समय उक्त मीडिया पोर्टल का कोई प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था।

    न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया की पैरवी करने वाले वरिष्ठ वकील सुधांशु बत्रा ने अदालत को सूचित किया कि याचिकाकर्ता द्वारा मांगे गए निर्देशों में से कोई भी वास्तव में प्राधिकरण पर लागू नहीं होता है। उन्होंने कहा,

    'हम केवल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए मानक तय करते हैं। हमारे पास उनके द्वारा किए गए किसी भी उल्लंघन के लिए मीडिया पोर्टल्स पर मुकदमा चलाने की शक्ति नहीं है।'

    इसके अलावा, इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन ने अदालत से कहा कि उक्त एजेंसी को इस मामले में पक्षकार नहीं होना चाहिए क्योंकि याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई कोई भी राहत उन पर लागू नहीं होगी।

    इसके बारे में आगे तर्क दिया गया कि एनबीएसए के विपरीत, आईबीएफ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पोर्टल्स के अनुपालन के लिए मानक भी निर्धारित नहीं करता है।

    पहले की सुनवाई में अदालत ने निम्नलिखित उत्तरदाताओं को नोटिस जारी किया था:

    भारत संघ

    दिल्ली सरकार

    तेलंगाना सरकार

    प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया

    इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन

    फेसबुक इंडिया

    ट्विटर

    न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया

    OpIndia.com

    द न्यू इंडियन एक्सप्रेस

    इंडिया टुडे

    दलील में तर्क दिया गया है पीड़ित और आरोपी व्यक्तियों के नाम, पते, चित्र, कार्य विवरण, आदि को उजागर करना आईपीसी की धारा 228 ए का उल्लंघन करता है और निपुण सक्सेना मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्धारित कानून का भी।

    अपील में अदालत से निम्नलिखित निर्देश मांगे गए हैं:

    उत्तरदाताओं को निर्देशित करें कि वे कानून के अनुसार मीडिया हाउस और व्यक्तियों के खिलाफ उचित कार्यवाही शुरू करें।

    जांच अधिकारियों को उचित तरीके से निर्देशित करें ताकि जांच पूरी होने से पहले मीडिया या जनता को मामले के बारे में जानकारी देने से रोका जा सके।

    उन अधिकारियों के खिलाफ तत्काल जांच का आदेश दें जो अपनी उपस्थिति में इन उल्लंघनों के खिलाफ संज्ञान लेने में विफल रहे हैं और उन लोगों के खिलाफ जिन्होंने मीडिया को यह सूचना उपलब्ध कराई है।

    शीर्ष अदालत ने निपुण सक्सेना मामले में पीड़िता की पहचान के संरक्षण के बारे में निम्नलिखित दिशानिर्देश दिए थे।

    कोई भी व्यक्ति प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, सोशल मीडिया, आदि में पीड़िता का नाम या रिमोट तरीके से प्रिंट या प्रकाशित नहीं कर सकता है और ऐसे किसी भी तथ्य का खुलासा नहीं कर सकता, जिससे पीड़िता की पहचान की जा सके और जो बड़े पैमाने पर सार्वजनिक रूप से उसकी पहचान बताए।

    ऐसे मामलों में जहां पीड़िता की मृत्यु हो चुकी है या दिमागी रूप से व्यथित है, उसके नाम या उसकी पहचान का खुलासा परिजनों के अधिकार के तहत भी नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी, जो वर्तमान में सत्र न्यायाधीश हैं, के द्वारा उसकी पहचान के खुलासे को सही ठहराने वाली परिस्थितियां मौजूद नहीं होंगी।

    आईपीसी की धारा 376, 376A, 376AB, 376B, 376C, 376D, 376DA, 376DB या 376E और POCSO अधिनियम के तहत अपराधों से संबंधित एफआईआर सार्वजनिक पहुंच में नहीं डाली जाएंगी।

    यदि कोई पीड़ित सीआरपीसी की धारा 372 के तहत अपील दायर करता है, तो पीड़ित के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह अपनी पहचान बताए और अपील को कानून द्वारा निर्धारित तरीके से निपटा जाएगा।

    पुलिस अधिकारियों को उन सभी दस्तावेजों को जहां तक संभव हो, एक सीलबंद कवर में रखना चाहिए, जिसमें पीड़ित के नाम का खुलासा किया गया है और इन दस्तावेजों को समान दस्तावेजों द्वारा प्रतिस्थापित करें, जिसमें पीड़ित का नाम सभी रिकॉर्डों में हटा दिया जाता है, जिसकी जांच सार्वजनिक डोमेन में की जा सकती है। सभी अधिकारी, जिन्हें जांच एजेंसी या अदालत द्वारा पीड़ित के नाम का खुलासा किया जाता है, वे भी पीड़ित के नाम और पहचान को गुप्त रखने के लिए बाध्य होते हैं और किसी भी तरीके से इसका खुलासा नहीं करेंगे।

    केवल रिपोर्ट को छोड़कर, जिसे जांच एजेंसी या अदालत को एक सीलबंद कवर में भेजा जाना है। मृतक की पहचान या दिमागी रूप से व्यथित पीड़ित व्यक्ति की पहचान के प्रकटीकरण को अधिकृत करने के लिए परिजनों के द्वारा आईपीसी की धारा 228A (2) (सी) के तहत एक आवेदन केवल सत्र न्यायाधीश को किया जाना चाहिए, जब तक कि सरकार धारा 228 ए (1) (सी) के तहत काम न करे और ऐसे सामाजिक कल्याण संस्थानों या संगठनों की पहचान के लिए हमारे निर्देशों के अनुसार मानदंड देता है।

    POCSO के तहत नाबालिग पीड़ितों के मामले में, उनकी पहचान का खुलासा केवल विशेष अदालत द्वारा ही किया जा सकता है, अगर ऐसा खुलासा बच्चे के हित में हो तो।

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