'प्रवासियों और दिहाड़ी मजदूरों की मदद करने में दिल्ली सरकार विफल रही; 2020 के लॉकडाउन में हुई दुर्दशा को दोहराने से बचना होगा': दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

20 April 2021 8:09 AM GMT

  • प्रवासियों और दिहाड़ी मजदूरों की मदद करने में दिल्ली सरकार विफल रही; 2020 के लॉकडाउन में हुई दुर्दशा को दोहराने से बचना होगा: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि दिल्ली में रहने वाले प्रवासी श्रमिकों और दिहाड़ी मजदूरों का साल 2020 में लगे लॉकडाउन में जिस तरह की दुर्दशा हुई थी, उस तरह की पीड़ा का सामना इस लॉकडाउन में न करना पड़े।

    दिल्ली सरकार ने COVID-19 महामारी की दूसरी लहर के मद्देनजर राज्य में 19 अप्रैल से 26 अप्रैल तक लॉकडाउन लगाने के घोषणा की।

    कोर्ट ने दिल्ली सरकार को 2020 के लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों और दिहाड़ी मजदूरों की दुर्दशा की याद दिलाते हुए आग्रह किया कि इस साल पिछले साल की तहत प्रवासियों और दिहाड़ी मजदूरों की दुर्दशा न हो इसके लिए राज्य सरकार को पर्याप्त कदम उठाना चाहिए।

    जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रेखा पल्ली की खंडपीठ ने कहा कि,

    "साल 2020 में लगाए गए लॉकडाउन से एक बात किसी को भी नहीं भूलना चाहिए कि सबसे ज्यादा दुर्दशा जीएनसीटीडी में निवास करने वाले और काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों और प्रवासी श्रमिकों का हुआ था। हम समाचार देख रहे हैं समाचार रिपोर्टों के मुताबिक दिल्ली क्षेत्र में बढ़ते COVID-19 के मामलों के कारण प्रवासी श्रमिक पहले ही अपने घर जाना शुरू कर चुके हैं। राज्य सरकार ने 26.04.2021 तक कर्फ्यू लगाने का आदेश दिया है। इससे दिहाड़ी मजदूर जो रोज की कमाई से अपना और अपने परिवार का भरते हैं उनकी जिंदगी फिर से तबाह होती नजर आ रही है। एक बार फिर भोजन, कपड़े और दवाई जैसी बुनियादी जरूरतों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।"

    पीठ ने कहा कि पिछले साल 2020 में लॉकडाउन के दौरान लोगों की मदद के लिए सिविल सोसाइटी आगे आए थे और उनके द्वारा जरूरतमंद लोगों को भोजन और अन्य आवश्यकता की चीजें उपलब्ध कराया गया था।

    दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए एडवोकेट राहुल मेहरा ने कहा कि राज्य ने इस संबंध में पर्याप्त कदम उठाए हैं। इस पर पीठ ने कहा कि हम अपने अनुभव से यह कह सकते हैं कि राज्य पर्याप्त कदम उठाने में विफल रहा है।

    कोर्ट ने कहा कि गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्‍ली (जीएनसीटीडी) हजारों करोड़ रुपये का उपयोग करने में विफल रहा है जो वे भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1996 के तहत गठित बोर्ड के पास उपलब्ध है। इसे निर्माण श्रमिकों के लिए भवन सेस के रूप में इकट्ठा किया गया है।

    कोर्ट ने आदेश दिया कि,

    "हम गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्‍ली (जीएनसीटीडी) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि उक्त बोर्ड अपने संबंधित कार्य स्थलों पर जरूरतमंद निर्माण श्रमिकों को भोजन, दवाइयां और अन्य आवश्यकता की चीजें उपलब्ध कराएं। कॉन्ट्रैक्टर के माध्यम से सरकारी और एमसीडी स्कूलों में स्कूली बच्चों को मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराना चाहिए क्योंकि स्कूल वर्तमान में चालू बंद और इस सुविधा का उपयोग अभी भी उपरोक्त उद्देश्य के लिए किया जा सकता है। दिल्ली के मुख्य सचिव को बिना किसी देरी के इस आदेश को लागू करना होगा। इसके साथ ही जीएनसीटीडी को एक हलफनामा दायर करना होगा जिसमें यह बताना होगा कि दिए गए आदेश को किस तरह से क्रियान्वित किया जा रहा है।"

    कोर्ट ने यह आदेश राकेश मल्होत्रा बनाम गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्‍ली (जीएनसीटीडी) और अन्य मामले में पारित किया है। कोर्ट के समक्ष जनवरी में एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में COVID-19 महामारी को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने की मांग की गई थी। हालांकि COVID-19 की दूसरी लहर पर ध्यान देते हुए पीठ ने मामले पर वापस ध्यान दिया।

    पीठ ने केंद्र सरकार और जीएनसीटीडी को अस्पतालों में बेड की उपलब्धता और ऑक्सीजन आपूर्ति के संबंध में हलफनामा दायर करने के लिए कहा है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "केंद्र सरकार को COVID-19 महामारी में देश के विभिन्न राज्यों में ऑक्सीजन की उपलब्धता की जांच करनी चाहिए ताकि तेजी से बढ़ते कोविड के मामलों को ध्यान में रखते हुए उन क्षेत्रों में ऑक्सीजन उपलब्ध कराया जा सके जहां इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।"

    आदेस की कॉपी यहां पढ़ें:



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