दिल्ली कोर्ट ने देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा की तत्काल रिहाई के आदेश दिए
LiveLaw News Network
17 Jun 2021 2:04 PM IST
दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में छात्र कार्यकर्ता नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 15 जून को दी गई जमानत के अनुसार तत्काल रिहा करने के आदेश जारी किए हैं।
अतिरिक्त सत्र न्यायालय, कड़कड़डूमा ने दिल्ली पुलिस द्वारा दायर आवेदनों को खारिज कर दिया, जिसमें कार्यकर्ताओं के पते और उनके जमानतदारों की जांच के लिए और समय की मांग की गई थी।
दिल्ली पुलिस का तर्क है कि स्थायी पते की जांच के लिए अधिक समय की आवश्यकता है।
अदालत ने आदेश में कहा कि यह आरोपी को कैद में रखने के लिए तर्कसंगत कारण नहीं हो सकता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि सभी जमानतदारों की जांच रिपोर्ट कल दोपहर 1 बजे से पहले दाखिल की जानी चाहिए क्योंकि वे सभी दिल्ली के निवासी हैं।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रविंदर बेदी ने आदेश दिया कि,
"आरोपी को दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया जाता है। चूंकि आरोपी के स्थायी पते की जांच के लिए कुछ समय की आवश्यकता होगी। इस संबंध में रिपोर्ट जांच अधिकारी द्वारा संबंधित अदालत के समक्ष 23.06.2021 को दोपहर 2:30 बजे या उससे पहले दायर की जाए।"
पीठ ने कहा कि रिहाई वारंट तत्काल तैयार कर जेल अधीक्षक को ईमेल के जरिए भेजा जाए।
कड़कड़डूमा अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रविंदर बेदी ने इससे पहले दिल्ली पुलिस द्वारा आरोपियों और जमानतदारों के पते की जांच करने के लिए समय मांगने के बाद उनकी रिहाई पर आदेश टाल दिया था।
दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में 15 जून को दिल्ली दिल्ली हाईकोर्ट से जमानत पाने वाली छात्र कार्यकर्ता देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा ने इस बीच निचली अदालत में उनकी रिहाई को टालने के फैसले को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी (जिसने जमानत दी) की खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालत को इस मामले पर तेजी से विचार करना चाहिए और पक्षों को आज दोपहर 12 बजे निचली अदालत में पेश होने को कहा है। हाईकोर्ट आज दोपहर साढ़े तीन बजे इस मामले पर विचार करेगा।
निचली अदालत ने कल नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा की रिहाई पर आदेश सुरक्षित रख लिया था। दिल्ली पुलिस द्वारा उनके पतों की जांच और उनके जमानतदारों के आधार कार्ड की जांच के लिए कुछ और समय मांगने के लिए आवेदन करने के बाद हेवी बोर्ड का हवाला देते हुए आज सुबह 11 बजे की रिहाई का आदेश टाल दिया था।
दिल्ली पुलिस ने कहा कि छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार उनकी रिहाई के उद्देश्य से उनके बाहरी स्थायी पते को जांच करने की आवश्यकता है।
दिल्ली पुलिस ने अदालत के समक्ष दायर आवेदन में कहा कि,
"सभी आरोपी व्यक्तियों का बाहर का स्थायी पता की जांच लंबित है और समय की कमी के कारण पूरा नहीं किया जा सका है।"
दिल्ली पुलिस ने मामले में जांच रिपोर्ट दाखिल करने के लिए समय मांगते हुए कहा है कि चूंकि आसिफ इकबाल तन्हा, नताशा नरवाल और देवनागा कलिता झारखंड, असम और रोहतक के स्थायी निवासी हैं, इसलिए जांच एजेंसी को उक्त जांच रिपोर्ट दाखिल करने में समय लगेगा।
दिल्ली पुलिस ने इसके अलावा जमानतदारों के आधार कार्ड के विवरण की जांच करने के लिए यूआईडीएआई को निर्देश देने की भी मांग की है।
दिल्ली पुलिस ने इसे देखते हुए कहा है कि जांच के लिए केवल फोन नंबर पर्याप्त नहीं है और इस प्रकार फिजिकल जांच की आवश्यकता है।
हाईकोर्ट ने नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को 15 जून को जमानत दी थी। यह देखते हुए कि दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपराध उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया नहीं बनते हैं।
दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि दिसंबर 2019 से नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ उनके द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन फरवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में हुए उत्तर पूर्वी दिल्ली सांप्रदायिक दंगों के पीछे एक "बड़ी साजिश" का हिस्सा थे।
कोर्ट ने नताशा नरवाल को जमानत देते हुए कहा था,
"हम यह व्यक्त करने के लिए विवश हैं, कि ऐसा लगता है कि राज्य के मन में असंतोष को दबाने की अपनी चिंता में विरोध करने के लिए संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा कुछ धुंधली होती दिख रही है। यदि यह मानसिकता कर्षण प्राप्त करती है। यह लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा।"
हाईकोर्ट ने तन्हा, नरवाल और कलिता के जमानत आवेदनों की अनुमति देने वाले तीन अलग-अलग आदेशों में यह पता लगाने के लिए आरोपों की एक तथ्यात्मक जांच की है कि क्या उनके खिलाफ यूएपीए की धारा 43 डी (5) के प्रयोजनों के लिए प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की एक उच्च न्यायालय की पीठ ने चार्जशीट के प्रारंभिक विश्लेषण के बाद पाया कि इस मामले में यूएपीए के तहत आतंकवादी गतिविधियों (धारा 15,17 और 18) के अपराधों में प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है।
खंडपीठ ने कहा था कि जमानत के खिलाफ यूएपीए की धारा 43 डी (5) की कठोरता आरोपी के खिलाफ आकर्षित नहीं है और इसलिए वे दंड प्रक्रिया संहिता के तहत सामान्य सिद्धांतों के तहत जमानत पाने के हकदार हैं।
पीठ ने कहा था कि,
"चूंकि हमारा विचार है कि यूएपीए की धारा 15, 17 या 18 के तहत कोई अपराध अपीलकर्ता के खिलाफ चार्जशीट और अभियोजन द्वारा एकत्र और उद्धृत सामग्री की प्रथम दृष्टया प्रशंसा पर नहीं बनता है, अतिरिक्त सीमाएं और धारा 43डी(5) यूएपीए के तहत जमानत देने के लिए प्रतिबंध लागू नहीं होते हैं और इसलिए अदालत सीआरपीसी के तहत जमानत के लिए सामान्य और सामान्य विचारों पर वापस आ सकती है।"
कोर्ट ने तन्हा, नरवाल और कलिता के जमानत आवेदनों की अनुमति देने वाले तीन अलग-अलग आदेशों में यह पता लगाने के लिए आरोपों की तथ्यात्मक जांच की है कि क्या उनके खिलाफ यूएपीए की धारा 43 डी (5) के प्रयोजनों के लिए प्रथम दृष्टया मामला बनता है। इसके अलावा उच्च न्यायालय द्वारा विरोध के मौलिक अधिकार और नागरिकों की असहमति को दबाने के लिए यूएपीए के तुच्छ उपयोग के संबंध में महत्वपूर्ण टिप्पणियां की गई हैं।
इन तीन छात्र नेताओं ने तिहाड़ जेल में एक साल से अधिक समय बिताया है, यहां तक कि COVID-19 महामारी की दो घातक लहरों के समय भी जेल में ही रहे। महामारी के कारण अंतरिम जमानत का लाभ नहीं मिल सका क्योंकि वे यूएपीए के तहत आरोपी हैं। पिछले महीने नताशा नरवाल के पिता महावीर नरवाल की COVID19 की वजह से मौत हो गई थी। उच्च न्यायालय ने अंतिम संस्कार करने के लिए उन्हें तीन सप्ताह के लिए अंतरिम जमानत दी थी।
दिल्ली पुलिस ने इसको बाद बुधवार को उपरोक्त जमानत आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।