दिल्ली कोर्ट ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राजीव खोसला को महिला वकील से मारपीट करने मामले में 40 हज़ार रुपए का जुर्माना लगाकर छोड़ा

LiveLaw News Network

30 Nov 2021 3:17 PM GMT

  • दिल्ली कोर्ट ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राजीव खोसला को महिला वकील से मारपीट करने मामले में 40 हज़ार रुपए का जुर्माना लगाकर छोड़ा

    Delhi Court Lets Off Former Delhi HC Bar Association President Rajiv Khosla

    दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राजीव खोसला को एक महिला वकील से मारपीट करने के मामले में 40 हज़ार रुपए का जुर्माना लगाकर छोड़ (Lets Off) दिया। राजीव खोसला को हाल ही में 1994 में एक महिला वकील सुजाता कोहली के साथ मारपीट करने के मामले में 40,000 रुपये का जुर्माना लगाकर दोषी ठहराया गया था।

    शिकायतकर्ता सुजाता कोहली पहले पेशे से वकील थीं। बाद में वे दिल्ली की न्यायपालिका में जज बनीं और जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुईं।

    मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट गजेंद्र सिंह नागर ने निम्नलिखित शर्तों में सजा आदेश पारित किया,

    -आईपीसी की धारा 323 के तहत दंडनीय अपराध करने के लिए इस न्यायालय की राय है, अपराध की प्रकृति सहित मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए साधारण चोट और तथ्य यह है कि दोषी एक वृद्ध व्यक्ति है जिसे कभी भी किसी अन्य मामले में दोषी नहीं ठहराया गया है, उन्हें उचित चेतावनी के बाद रिहा कर दिया जाए।

    दोषी को कुल एक 20,000/- रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया गया है, जिसमें से 10,000 रुपए शिकायतकर्ता पीड़ित को भुगतान किया जाना है और 10,000 रुपए राज्य को कार्यवाही की लागत के रूप में भुगतान किया जाना है। इन 20,000/ रुपये का भुगतान नहीं करने पर के दोषी को 30 दिन की साधारण कारावास की सजा भुगतनी होगी।

    - आईपीसी की धारा 506 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी को 20,000/- रुपये का जुर्माना अदा करने की सजा दी जाती है, जिसमें से 10,000 रुपए शिकायतकर्ता पीड़ित को भुगतान किया जाना है और 10,000 रुपए राज्य को कार्यवाही की लागत के रूप में भुगतान किया जाना है। 20,000/ रुपये का भुगतान न करने पर दोषी को 30 दिन की साधारण कारावास की सजा भुगतनी होगी।

    अदालत ने कहा कि उक्त जुर्माने का भुगतान एक महीने की अवधि के भीतर किया जाना है, जिसे शिकायतकर्ता के पेश होने पर जारी किया जाना चाहिए।

    सजा का आदेश पारित करते समय हालांकि अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि खोसला ने बार के सदस्य और अदालत के एक अधिकारी होने के बावजूद कई वकीलों की उपस्थिति में एक महिला बार सदस्य के साथ मारपीट की, जो निश्चित रूप से एक उग्र कारक था। इस तथ्य पर विचार किया कि वह एक 65 वर्ष का व्यक्ति है, जिसे पुलिस के रिकॉर्ड के अनुसार आज तक किसी अन्य मामले में दोषी नहीं ठहराया गया।

    न्यायाधीश ने कहा,

    "इस प्रकार, लगभग 65 वर्ष की आयु के अपराधी को पहली बार उस अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है जो उसके द्वारा 27 साल पहले किया गया था, इस प्रकार यह सजा तय करते समय विचार किया जाने वाला कारक है। इन में परिस्थितियों में न्यायालय दोषी को कारावास में भेजने के लिए उपयुक्त नहीं समझता, क्योंकि वह अपने पूरे 65 साल के जीवन में किसी अन्य मामले में दोषी नहीं है और वह एक वरिष्ठ नागरिक है।"

    इस मामले में 15 नवंबर को सजा पर बहस शुरू हुई थी।

    क्या था विवाद

    दिल्ली की एक अदालत ने 27 साल से अधिक की अवधि के बाद दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राजीव खोसला को वर्ष 1994 में एक महिला वकील से मारपीट करने का दोषी ठहराया। मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट गजेंद्र सिंह नागर की राय थी कि खोसला पर महिला वकील को बाल और बांहों से खींचे जाने के आरोप, महिला की गवाही और तीस हजारी कोर्ट से उसे प्रैक्टिस नहीं करने की अनुमति न देने की धमकी बिल्कुल सत्य और विश्वसनीय थे।

    अदालत ने कहा था,

    "उनकी एकमात्र गवाही अदालत के मन में विश्वास प्रेरित करती है, इस प्रकार उन्होंने वर्तमान मामले में आईपीसी की धारा 323/506 (i) के तहत दंडनीय अपराधों के सभी अवयवों को सफलतापूर्वक साबित कर दिया है। इस प्रकार, आरोपी राजीव खोसला को आईपीसी की धारा 323/506 (i) आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के गठन के लिए दोषी ठहराया जाता है। "

    शिकायतकर्ता सुजाता कोहली पहले पेशे से वकील थीं, वे दिल्ली की न्यायपालिका में जज बनीं और पिछले साल जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुईं।

    खोसला के खिलाफ आरोप यह था कि जुलाई 1994 में जब वह दिल्ली बार एसोसिएशन के सचिव थे, उन्होंने कोहली को एक सेमिनार में शामिल होने के लिए कहा था और उनके मना करने पर उन्हें धमकी दी थी कि बार एसोसिएशन से सभी सुविधाएं वापस ले ली जाएंगी और उन्हें उनकी सीट से भी बेदखल कर दिया जाएगा। उनके द्वारा उचित निषेधाज्ञा की मांग करते हुए एक दीवानी मुकदमा दायर किया गया था, हालांकि, उनकी मेज और कुर्सी को उनके स्थान से हटा दिया गया था।

    इसके बाद शिकायत में आरोप लगाया गया था कि वह सिविल जज की प्रतीक्षा करते हुए अपनी सीट के पास एक बेंच पर बैठी थी, तभी राजीव खोसला सह-आरोपियों के साथ 40-50 वकीलों की भीड़ के साथ आया। शिकायतकर्ता के अनुसार सभी ने उसे घेर लिया और खोसला ने आगे बढ़कर उसके बाल खींच लिये और उसकी बाहों को मोड़ दिया, उसे बालों से घसीटा, गंदी गालियां दीं और उसे धमकाया। पुलिस ने अगस्त 1994 में एफआईआर दर्ज की, वहीं शिकायतकर्ता ने मार्च 1995 में जांच से पूरी तरह असंतुष्ट होने पर शिकायत दर्ज कराई थी।

    Next Story