दिल्ली की अदालत ने शारजील इमाम की ज़मानत याचिका खारिज की
LiveLaw News Network
22 Oct 2021 7:08 PM IST
दिल्ली की एक अदालत ने 2019 के एक मामले में शारजील इमाम द्वारा दायर नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी।
शारजील इमाम पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप है, जिसके कारण दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर दंगे हुए। आरोपों में कहा गया कि इन भड़काऊ भाषण से समाज की शांति और सद्भाव प्रभावित हुआ।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनुज अग्रवाल ने कहा,
"संविधान का अनुच्छेद 51 ए (ई) के तहत इस देश के नागरिकों पर धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय विविधताओं से परे, भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने और समान भाईचारे का प्रसार करने का एक मौलिक कर्तव्य है, इसलिए समाज की सांप्रदायिक शांति और सद्भाव की कीमत पर 'भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के मौलिक अधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता।"
आगे यह देखते हुए कि यह मुद्दा आईपीसी की धारा 124ए के दायरे में आएगा या नहीं, उचित स्तर पर गहन विश्लेषण की आवश्यकता है,
न्यायालय का विचार इस प्रकार था:
"हालांकि, यह देखने के लिए पर्याप्त होगा कि 13.12.2019 के भाषण को सरसरी और सादा पढ़ने से पता चलता है कि यह स्पष्ट रूप से सांप्रदायिक / विभाजनकारी तर्ज पर है। मेरे विचार में भाषण की भाषा और स्वर (टोन) समाज की सांप्रदायिक शांति और सद्भाव को कमज़ोर करने वाले हैं।
इसलिए, वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में और भाषण की सामग्री दिनांक 13.12.2019 को देखते हुए, जो सांप्रदायिक शांति और सद्भाव को कमजोर करने वाला है, मैं आवेदक / आरोपी शारजील इमाम को जमानत देने के लिए इच्छुक नहीं हूं।"
मामला इस प्रकार है कि 15 दिसंबर 2019 को जामिया नगर के छात्रों और निवासियों द्वारा नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) के खिलाफ प्रदर्शन को लेकर पुलिस को सूचना मिली थी।
यह आरोप लगाया गया कि भीड़ ने सड़क पर यातायात की आवाजाही को अवरुद्ध कर दिया था और सार्वजनिक / निजी वाहनों और संपत्तियों को लाठी, पत्थर और ईंटों से नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। इमाम के खिलाफ विशेष आरोप यह है कि उसने नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) (तब विधेयक था) और एनआरसी को लेकर विशेष धार्मिक समुदाय के मन में भय पैदा करके उन्हें सरकार के खिलाफ भड़काया।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, इमाम द्वारा दिए गए उक्त भाषण देशद्रोही, सांप्रदायिक और विभाजनकारी प्रकृति के थे और विभिन्न धर्मों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से थे।
अदालत ने शुरुआत में देखा,
"अनुच्छेद 19 के तहत निहित 'भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के मौलिक अधिकार को इस देश के संविधान में एक बहुत ही उच्च स्थान पर रखा गया है और इसका सार प्रसिद्ध ब्रिटिश कवि और बुद्धि जॉन मिल्टन के बयान में अच्छी तरह से मिलता है जो कहते हैं "मुझे सभी स्वतंत्रताओं से ऊपर जानने, स्वतंत्र रूप से बहस करने और विवेक के अनुसार बोलने की स्वतंत्रता दें। हालांकि, वही संविधान, सार्वजनिक शांति,सद्भाव और उत्तेजना के आधार पर किये गए अपराध के लिए अन्य बातों के साथ उक्त अधिकार के प्रयोग पर उचित प्रतिबंध लगाता है।"
न्यायाधीश ने आदेश में स्वामी विवेकानंद को भी उद्धृत किया और कहा,
"हम वही हैं जो हमारे विचारों ने हमें बनाया है, इसलिए आप जो सोचते हैं, उस पर ध्यान दें, शब्द गौण हैं, विचार जीवित हैं, वे दूर की यात्रा करते हैं।"
शीर्षक: शरजील इमाम बनाम राज्य