महिला बाउंसर का शील भंग करने के आरोप में दिल्ली की अदालत ने तीन लोगों को दोषी ठहराया, कहा- केवल लापरवाहीपूर्ण जांच अभियोजन मामले को प्रभावित नहीं कर सकती

LiveLaw News Network

27 Oct 2021 7:12 AM GMT

  • महिला बाउंसर का शील भंग करने के आरोप में दिल्ली की अदालत ने तीन लोगों को दोषी ठहराया, कहा- केवल लापरवाहीपूर्ण जांच अभियोजन मामले को प्रभावित नहीं कर सकती

    दिल्ली की एक अदालत ने 2016 के एक मामले में एक महिला बाउंसर का शील भंग करने के लिए तीन पुरुषों को दोषी ठहराया है कोर्ट ने कहा है कि केवल दोषपूर्ण या लापरवाही से की गई जांच अभियोजन के मामले को खारिज करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता।

    प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, तीस हजारी अदालतें, धर्मेश शर्मा ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह साबित किया कि तीनों बेसबॉल बैट, तलवार, लोहे के पाइप से लैस थे और अन्य पीड़ितों को घायल कर दिया, जिससे धारा 452 सहपठित धारा 34 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध हुआ।

    कोर्ट ने जोड़ा, "चूंकि पीड़ितों/घायलों को लगी चोटों की प्रकृति 'सरल' थी, आईपीसी की धारा 323 के तहत आरोप‌ियों ने अपराध अपने सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने के लिए किया था और उसी प्रक्रिया में या उसी वारदात में पीडल्यू-1 के साथ भी छेड़छाड़ की गई क्योंकि न केवल आरोपी गौतम गंभीर और नितिन नैय्यर @ सनी ने उसके स्तनों से छेड़खानी की और उसे चूमने का प्रयास किया, बल्कि उसके गुप्तांग पर भी प्रहार किया। यह धारा 354 आईपीसी के तहत महिला की शील भंग करने का एक स्पष्ट दंडनीय मामला था।,

    अभियोजन का मामला

    अभियोजन पक्ष के अनुसार, कुछ पुलिस कर्मी वेस्ट गेट मॉल के एक क्लब में पहुंचे थे, जहां पता चला कि कुछ घायलों को गुरु गोविंद सिंह अस्पताल ले जाया गया है और हमलावर मौके से भाग गए हैं। यह भी आरोप लगाया कि शिकायतकर्ता ने कहा कि वह डर के कारण छिप गई थी और क्लब में कथित झगड़े के संबंध में उसका बयान दर्ज किया गया।

    'स्टर्लिंग क्वालिटी' की महिला की गवाही

    महिला सहित गवाहों के बयानों का विश्लेषण करते हुए कोर्ट ने कहा, "यह अत्यधिक संभावना है कि जिस निर्मम तरीके से आरोप‌ियों ने मह‌िला के साथ छेड़छाड़ और मारपीट की, उसका सदमा उसके दिमाग पर गहरा पड़ा, हालांकि अंततः सच्चाई की जीत हुई। उसकी गवाही "स्टर्लिंग क्वालिटी" की है।

    अदालत ने आगे कहा कि केवल इसलिए कि मह‌िला ने आरोपियों की पहचान के संबंध में शुरुआत में अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया इसलिए असली अपराधी भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 145 के संदर्भ में पूरी गवाही को नहीं मिटा सकते।

    कोर्ट ने कहा "... आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली का मुख्य उद्देश्य सभी हितधारकों-आरोपी, शिकायतकर्ता/पीड़ित, समाज के साथ-साथ अभियोजन पक्ष को न्याय प्रदान करना है। एक निष्पक्ष सुनवाई का संचालन और अभियोजन पक्ष को मामले को साबित करने का उचित मौका देना इस उद्देश्य में शामिल है।"

    उक्त टिप्पणियों के साथ, अदालत ने तीनों को धारा 452, 323 और 354 सहपठित धारा 34 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया।

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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