फैसला सुनाए जाने के बाद वेबसाइट पर अपलोड करने में हुई एक वर्ष से अधिक की देरी: सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को तलब किया

LiveLaw News Network

20 Oct 2020 7:22 AM GMT

  • फैसला सुनाए जाने के बाद वेबसाइट पर अपलोड करने में हुई एक वर्ष से अधिक की देरी: सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को तलब किया

    सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए कि 24 जनवरी, 2018 को सुनाया गया फैसला पटना हाईकोर्ट की वेबसाइट पर एक मई, 2019 को अपलोड किया गया, गुरुवार को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को तलब किया है और तथ्य की वास्तव‌िकता के संबंध में एक रिपोर्ट जमा करने को कहा।

    "जैसाकि विद्वान वकील ने कहा है, मामले में 733 दिनों की देरी हुई है, (333 दिनों की नहीं, जैसाकि आवेदन और कार्यालय की रिपोर्ट में कहा गया है।" न्यायमूर्ति एसके कौल और दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि इस पहलू को रजिस्ट्री द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिए।

    खंड पीठ ने आदेश दिया, "हम आवेदन के पैराग्राफ 4 में ‌दिए गए बयान से पाते हैं कि उक्त निर्णय 24 जनवरी, 2018 को सुनाया गया था लेकिन 1 मई, 2019 को वेबसाइट पर अपलोड किया गया था। हम पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को यह इस संबंध में एक र‌िपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए तलब करते हैं, वह हमें सूचित करें कि क्या उपरोक्त तथ्य सही हैं और इसके क्या कारण हैं।"

    शीर्ष अदालत बिहार राज्य द्वारा पटना हाईकोर्ट के चीफ ज‌स्ट‌िस की अगुवाई वाली पीठ के फैसले के खिलाफ दायर एक एसएलपी पर विचार कर रही थी।

    हाईकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा एक अपील दायर की गई ‌थी, 25.04.2016 के आदेश के टिकाऊपन पर प्रश्न उठाया गया था, जिसमें छह अन्य व्यक्तियों के साथ रिट याचिकाकर्ता ने चौकीदार से हटाए जाने को चुनौती दी थी, जो कि 22.01.2014 को प्रभाव में आया था।

    भले ही याचिकाकर्ता कार्य-भारित प्रतिष्ठान में 17.01.1991 से कार्यरत था, उन्हें इस आधार पर नियमितीकरण से वंचित कर दिया गया था कि उनकी नियुक्ति कट-ऑफ डेट 18.01.1991 के बाद हुई थी, जबकि अन्य छह मामले में भी इसी प्रकार स्थित व्यक्तियों, जिन्होंने याचिकाकर्ता के साथ 2002 में हाईकोर्ट का दौरा किया था, उन्हें फिर से बहाल कर दिया गया है और केवल इस तथ्य के आधार पर लाभ दिया गया है कि उन्हें कट-ऑफ तिथि से पहले 31.12.1990 को पत्र भेजा गया था।

    हाईकोर्ट की पीठ ने कहा, "रिट कोर्ट ने इस मुद्दे की जांच की और पाया कि याचिकाकर्ता भी बहुत पहले से कार्यरत थे, लेकिन केवल राज्य सरकार के हाइपर तकनीकी दृष्टिकोण के कारण, उन्हें अन्य कर्मचारियों के समान लाभ से वंचित किया गया है, जिन्हें याचिकाकर्ता से कुछ दिन पहले ही नियुक्त किया गया है।" अदालत ने पाया कि मामले में भेदभाव किया गया है और याचिकाकर्ता को राहत दी है।"

    यह देखते हुए कि रिट कोर्ट ने कोई त्रुटि नहीं की है, पीठ ने पाया था कि याचिकाकर्ता शुरू में 8 व्यक्तियों के साथ दैनिक वेतन के आधार पर कार्य-प्रभारित प्रतिष्ठान में चौकीदार के रूप में कार्यरत थे और जब अन्य 8 व्यक्तियों को इसका लाभ दिया गया, कुछ दिनों के बाद याचिकाकर्ता को हाइपर तकनीकी आधार पर केवल कट-ऑफ की तारीख के कारण लाभ देने से इनकार नहीं ‌किया जा सकता है ।

    बेंच ने अपील खारिज करते हुए कहा, "विद्वान न्यायालय ने इन सभी कारकों का विश्लेषण किया है और निर्देश जारी किया है, एक मॉडल नियोक्ता के रूप में राज्य सरकार को इसे लागू करना चाहिए था, जैसा कि अन्य छह कर्मचारियों के मामले में किया गया था। तदनुसार, तथ्यों की समग्रता परिस्थितियों को देखते हुए, हमें इस मामले में रिआयत का कोई कारण नहीं दिखता है।"

    एक अन्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक, बिहार और पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया है कि वह बताएं कि दहेज हत्या के मामले में आरोपी एक व्यक्ति को गिरफ्तार करने में 21 साल क्यों लगे।

    मृत महिला के भाई द्वारा 02.02.1999 को एफआईआर दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसके पति और परिवार ने उसे दहेज के लिए परेशान किया था। उन्होंने कहा कि महिला का अंतिम संस्कार प‌ति और उसके परिवार द्वारा महिला के परिवार को बताए बिना किया गया। 10 साल बाद एफआईआर में नामजद सभी आरोपियों के खिलाफ मामले में चार्जशीट दाखिल की गई। अंतिम रिपोर्ट में कहा गया है कि "एफआईआर में नामजद सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट के लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध कराए गए हैं।"

    इस साल की शुरुआत में, हाईकोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। अदालत ने नोट किया था कि केस डायरी के अनुसार "मृतक के विसरा की जांच में बहुत ही जहरीला पदार्थ पाया गया था।" 07.06.2020 को आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया था। उनकी जमानत याचिका सत्र न्यायालय और हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी।

    जस्टिस एनवी रमना, सूर्यकांत और अन‌िरुद्ध बोस की पीठ ने कहा, आरोपी पति द्वारा दायर अपील पर विचार करते हुए कहा कि "एक युवा विवाहित महिला की मृत्यु के गंभीर अपराध के संबंध में अभियुक्तों की जांच और अभियोजन के संचालन में देरी बेहद परेशान करने वाली है, और इसके कारण स्पष्ट नहीं हैं।"

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