तेज़ ड्राइविंग से मौत : जीवन भर के लिए ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने से रोकना अत्यधिक सज़ा : दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

15 March 2020 4:00 AM GMT

  • तेज़ ड्राइविंग से मौत : जीवन भर के लिए ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने से रोकना अत्यधिक सज़ा : दिल्ली हाईकोर्ट

    तेजी और लापरवाही से ड्राइविंग के कारण हुई मौत के एक मामले में, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दोषी पर ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने का आजीवन प्रतिबंध एक कठोर सजा है, खासतौर पर तब, जब उसकी पूरी आजीविका ड्राइविंग पर निर्भर हो।

    एक पुनःविचार याचिका में सजा के आदेश को संशोधित करते हुए, न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की एकल पीठ ने कहा कि-

    'ड्राइविंग लाइसेंस को स्थायी रूप से रद्द करने की सजा और उसे जीवन भर किसी भी तरह का ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने से रोकना, सचमुच उसकी नागरिक मृत्यु के समान है, क्योंकि वह जीवनभर अपना व्यवसाय करने की स्थिति में नहीं होगा '

    याचिकाकर्ता ने अपीलीय अदालत के 27 फरवरी 2017 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें आईपीसी की धारा 279 और 304 ए के तहत उसकी सजा को बरकरार रखा गया था।

    सजा को बरकरार रखते हुए, अपीलीय अदालत ने धारा 304 ए के तहत दिए गए कारावास की अवधि को 18 महीने से घटाकर 12 महीने कर दिया था। अदालत ने याचिकाकर्ता को उसके जीवनकाल में कभी भी नया ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने से वंचित कर दिया था।

    इसलिए, याचिकाकर्ता ने ड्राइविंग पर इस आजीवन प्रतिबंध को चुनौती दी थी और कहा था कि वह एक ड्राइवर है और अपने परिवार का एकमात्र रोजी-रोटी कमाने वाला है, जिस पर उसकी पत्नी व बच्चे आश्रित हैं। इसके अलावा, वह केवल ड्राइविंग करके अपनी आजीविका चला सकता है और जीवित रह सकता है।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अपीलीय अदालत ने एक गंभीर त्रुटि की है क्योंकि लाइसेंस रद्द करने के लिए ट्रायल कोर्ट ने कोई निर्देश नहीं दिया था और अपील में अपीलीय कोर्ट द्वारा इस तरह का कोई निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह सजा की अवधि बढ़ाने के लिए समान है, जो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 386 के तहत अपीलीय अदालत की शक्तियों के विपरीत है।

    इसके अलावा, यह तर्क भी दिया गया कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 19 के तहत, केवल लाइसेंसिंग प्राधिकरण को लाइसेंस रद्द करने या किसी व्यक्ति को लाइसेंस प्राप्त करने से अयोग्य घोषित करने का अधिकार है। अदालतें किसी व्यक्ति को धारा 20 के तहत सीमित अवधि के लिए लाइसेंस प्राप्त करने से रोक सकती हैं।

    वर्तमान अदालत ने सजा को बढ़ाने के संबंध याचिकाकर्ता की दलील को यह कहते हुए स्वीकार नहीं किया कि अपीलीय अदालत ने कठोर कारावास की अवधि को कम करके सजा की प्रकृति को बदल दिया था और ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने के लिए कह दिया था।

    जबकि अदालत ने इस तथ्य पर सहमति व्यक्त की है कि अदालत को किसी व्यक्ति को उतनी लंबी अवधि तक लाइसेंस प्राप्त करने से वंचित करने का अधिकार है, जिसे अदालत उचित समझती है। परंतु जीवनभर के लिए रोक लगाना किसी ऐसे व्यक्ति के लिए बहुत कठोर सजा है, जिसकी आजीविका बतौर चालक के व्यवसाय पर निर्भर करती है।

    अदालत ने कहा कि-

    'याचिकाकर्ता पेशे से एक ड्राइवर है और याचिकाकर्ता के ड्राइविंग लाइसेंस को स्थायी रूप से रद्द कर देना और उसे सजा के तौर पर जीवन भर के लिए ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने से रोकने से ,वह जीवन भर ड्राइविंग का व्यवसाय नहीं कर पाएगा।'

    इसी को देखते हुए, अदालत ने सजा के आदेश को संशोधित कर दिया है। ताकि याचिकाकर्ता को केवल मध्यम से भारी वाहनों के लिए ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने से प्रतिबंधित किया जा सके।

    अन्य तरह के वाहनों का ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने के लिए उसको गाड़ी चलाने के लिए सक्षमता की एक नई परीक्षा देनी होगी या उससे गुजरना होगा।

    इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट प्रमोद कुमार दुबे, कुशांक सिंधु और अनुराग एंडली ने किया था।

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