बेटी का पिता से पैसे की मांग करने का मतलब उनको आत्महत्या के लिए उकसाना नहींः बॉम्बे हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द की

Manisha Khatri

28 Sept 2022 11:00 AM IST

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने अपने पिता को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में एक महिला के खिलाफ दर्ज एफआईआर को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह संभावना नहीं है कि आरोपी महिला ने अपने पिता को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से उनसे पैसे की मांग की हो।

    अदालत ने कहा, ''हमारी राय है कि इस तरह की बार-बार मांग या मांगों में कथित वृद्धि से यह निष्कर्ष नहीं निकल सकता है कि प्रथम दृष्टया पिता को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने के इरादे से मांग की जा रही थी।''

    जस्टिस मनीष पिटाले और जस्टिस जी ए सनप ने एफआईआर को रद्द की मांग करते हुए दायर एक रिट याचिका को अनुमति दे दी और कहा कि यह निष्कर्ष निकालना 'चीजों को थोड़ा दूर खींचना' होगा कि आरोपी ने अपनी मां के माध्यम से जानबूझकर अपने पिता को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया।

    याचिकाकर्ता, अपनी मां के साथ, अपने पिता को आत्महत्या के लिए उकसाने की आरोपी है। उसके खिलाफ एफआईआर लगभग पूरी तरह से समान मृतक के पास मिले दो सुसाइड नोटों के आधार पर दर्ज की गई थी। मृतक ने कहा था कि वह अपनी जिंदगी से तंग आ चुका है और याचिकाकर्ता और उसकी मां की वजह से उसे यह बड़ा कदम उठाना पड़ रहा है। याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ दायर एफआईआर और आरोप पत्र को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

    याचिकाकर्ता के वकील ए एम सुदामा ने प्रस्तुत किया कि भले ही सुसाइड नोट की सामग्री को स्वीकार कर लिया गया हो, लेकिन आईपीसी की धारा 107 के तहत उकसाने का आवश्यक तत्व अनुपस्थित है। सबसे बड़ी बात यह है कि याचिकाकर्ता की मां ने याचिकाकर्ता के उकसाने पर जो मांगें कीं, वे ऐसी मांगें हैं जिन्हें उन्होंने सही समझा था। यह नहीं कहा जा सकता है कि मृतक को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के इरादे से मांग की गई थी। इसके अलावा, सुसाइड नोट और वास्तविक कृत्य के बीच कोई निकटता नहीं थी।

    राज्य के लिए एपीपी एस एम घोडेस्वर ने प्रस्तुत किया कि सुसाइड नोट स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि याचिकाकर्ता की सह-अभियुक्त मां के आक्रामक व्यवहार के कारण मृतक के पास कोई विकल्प नहीं बचा था।

    हाईकोर्ट ने कहा कि सुसाइड नोट 9 सितंबर 2021 का लिखा गया था जबकि आत्महत्या 14 सितंबर 2021 को की गई थी।

    अदालत ने सुसाइड नोट को देखा और कहा कि यह याचिकाकर्ता और उसकी मां द्वारा किए गए कथित उत्पीड़न से मृतक की पीड़ा को सामने लाता है। हालांकि, इससे यह भी पता चलता है कि सह-आरोपी मृतक की दूसरी पत्नी थी। वह याचिकाकर्ता के कहने पर आर्थिक मांग कर रही थी या मृतक से अपना एक हिस्सा और कृषि भूमि मांग रही थी।

    कोर्ट ने जियो वर्गीज बनाम राजस्थान राज्य के फैसले पर भरोसा किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आस-पास की जो परिस्थितियां आरोपी की कथित कार्रवाई और मृतक के मानस को प्रभावित कर सकती हैं, उन पर आत्महत्या के लिए उकसाने के सवाल को निर्धारित करने समय विचार किया जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा कि कम से कम, बार-बार मांगें करना अनुचित था और कुछ ऐसा था जो मृतक पूरा नहीं कर सका था।

    हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि मृतक की दो पत्नियां हैं और दोनों पत्नियां से उनके बच्चे भी हैं। उनको आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने से याचिकाकर्ता को कोई विशेष लाभ नहीं होने वाला था।

    कोर्ट ने आगे कहा,जैसा कि सुसाइड नोट 9 सितंबर का है, जबकि वास्तविक आत्महत्या पांच दिन बाद की गई थी,इसलिए याचिकाकर्ता के इशारे पर उत्पीड़न का आरोप लगाने वाले सुसाइड नोट और 14 सितंबर को मृतक द्वारा उठाए गए चरम कदम के बीच कोई निकट संबंध नहीं है।

    अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दायर एफआईआर और आरोप पत्र को खारिज कर दिया है।

    केस टाइटल- लता बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य

    केस नंबर- आपराधिक रिट याचिका संख्या 866/2021

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