[कस्टडी] बच्चे को यह महसूस नहीं कराया जाना चाहिए कि उसे सिर्फ अदालत के आदेश को लागू करने के लिए जबरदस्ती एक से दूसरे के पास ले जाया जा रहा है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Shahadat

7 Sep 2023 7:32 AM GMT

  • [कस्टडी] बच्चे को यह महसूस नहीं कराया जाना चाहिए कि उसे सिर्फ अदालत के आदेश को लागू करने के लिए जबरदस्ती एक से दूसरे के पास ले जाया जा रहा है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि गोद लिए बच्चे को यह महसूस नहीं कराया जाना चाहिए कि उसे सिर्फ़ अदालत के आदेश को लागू करने के लिए जबरदस्ती एक माता-पिता से दूसरे माता-पिता के पास ले जाया जा रहा है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कथित तौर पर दत्तक मां की कस्टडी में रह रहे बच्चे के जैविक माता-पिता को उससे मुलाक़ात करने का अधिकार दिया।

    जस्टिस अरुण मोंगा की बेंच ने कहा,

    "फिलहाल, ऊपर बताए अनुसार अंतरिम व्यवस्था (मुलाकात के अधिकार) को बच्चे के कल्याण में सर्वोपरि रखते हुए और भविष्य में ऐसी स्थिति से बचने के लिए निर्देशित किया जा रहा है, जहां बच्चे को यह महसूस नहीं कराया जाना चाहिए कि उसे जबरदस्ती एक से दूसरे के पास ले जाया जा रहा है। इससे वह सिर्फ अदालत के फैसले को लागू करने के लिए रोता-बिलखता रहता है। इस प्रकार यह जरूरी है कि बच्चा वास्तविक सौहार्द बनाकर दोनों परिवारों के साथ भावनात्मक बंधन और मित्रता विकसित करे, जिसके लिए सभी पक्ष आपसी सहयोग करेंगे।”

    बच्चे की जैविक मां ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है। यह प्रस्तुत किया गया कि जैविक मां, जो बच्चे को गोद लेने वाली मां की भाभी भी है, उसने अपनी शादी में मुश्किल दौर के दौरान अपने बेटे की देखभाल अपने भाई और भाभी को सौंपी थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने खुद को इस विश्वास के साथ सांत्वना दी कि उसके अपने माता-पिता (बच्चे के नाना-नानी) उसके भाई के साथ रह रहे है। वे उसकी छोटी संतान की अतिरिक्त देखभाल करेंगे।

    हालांकि, उसने आरोप लगाया कि उसके पति ने अपनी भाभी के साथ मिलकर गोद लेने का दस्तावेज बनाकर उसे बच्चे की कस्टडी से वंचित करने की साजिश रची। इस दस्तावेज पर उससे जबरदस्ती हस्ताक्षर करवाए गए। दत्तक पिता, यानी उसका भाई हालांकि बेहतर समझ रखता था और उसने दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किया था। इस प्रकार बच्चा कानूनी रूप से गोद नहीं लिया गया था।

    न्यायालय द्वारा उठाए गए एक प्रश्न पर याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर वकील अमित झांजी ने माना कि यद्यपि दत्तक ग्रहण विलेख अनिवार्य नहीं है। मगर इसके साथ ही तर्क दिया कि दत्तक ग्रहण का समारोह अनिवार्य शर्त हैं।

    दूसरी ओर, गोद लेने वाली मां डॉ. अनमोल रतन सिद्धू का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर वकील ने कहा कि तथ्य और गोद लेने की वैधता के पक्ष और विपक्ष में दोनों पक्षकारों के प्रतिद्वंद्वी तर्क पर फैसला करना अभिभावक/सिविल अदालत का काम है। हाईकोर्ट इसमें देरी नहीं कर सकता है। विवादास्पद दावे की गहराई से जांच करें, जिसके लिए व्यापक ट्रायल की आवश्यकता होगी।

    यह प्रस्तुत किया गया कि बच्चे को वैध रूप से गोद लिया गया था। गोद लेने के बाद जैविक माता-पिता ने बच्चे से संबंध तोड़ दिए हैं। उन्होंने आगे कहा कि एक बार वैध गोद लेने के बाद इसे रद्द नहीं किया जा सकता।

    दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि इस प्रस्ताव के बारे में कोई संदेह नहीं है कि गोद लेने के समारोह के लिए कोई विशेष फॉर्म निर्धारित नहीं है। प्रथम दृष्टया बस इतना ही आवश्यक है कि प्राकृतिक माता-पिता दत्तक बच्चे को सौंप दें और दत्तक माता-पिता उसे प्राप्त कर लें।

    वर्तमान मामले में दत्तक बच्चे को जैविक माता-पिता द्वारा फिजिकल रूप से दत्तक मां को सौंप दिया गया था। हालांकि जैविक मां का मामला यह है कि उसे धोखा दिया गया था।

    इसमें कहा गया,

    "हालांकि, एक और बड़ा विवाद यह भी है कि क्या दत्तक पिता की सहमति थी और यदि नहीं, तो क्या दत्तक मां अपने पति की सहमति के बिना नाबालिग बच्चे को गोद लेने की क्षमता रखती है।"

    बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के सीमित दायरे पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि गोद लेने के संबंध में अपने दावों और प्रतिदावों का समर्थन करने के लिए दोनों पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की विश्वसनीयता जांच का विषय है।

    कोर्ट ने जोड़ा,

    "इस न्यायालय के पास इन मुद्दों पर कोई भी निष्कर्ष देने के लिए अपने स्वयं के क्षेत्राधिकार हैं। रिट क्षेत्राधिकार प्रकृति में संक्षिप्त है और विवादित तथ्यात्मक पहलुओं पर बहुत सीमित है। बच्चे की कस्टडी और गोद लेने के मुद्दे आम तौर पर विशिष्ट फैमिली लॉ के दायरे में आते हैं।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि मामले का फैसला आने तक संबंधित बच्चे के कल्याण को प्राथमिकता देना जरूरी है।

    न्यायाधीश ने कहा,

    "अदालतें सभी चीज़ों से ऊपर बच्चे के सर्वोत्तम हितों को प्राथमिकता देती हैं। इसमें न केवल उसकी तात्कालिक परिस्थितियां शामिल होती हैं, बल्कि बच्चे की दीर्घकालिक भलाई, भावनात्मक विकास और स्थिरता भी शामिल होती है।"

    पक्षकारों को सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का निर्देश देते हुए पीठ ने दत्तक मां को निर्देश दिया कि वह जैविक माता-पिता को हर सप्ताहांत पर नाबालिग बच्चे से मिलने का अधिकार दे।

    कोर्ट ने कहा,

    "पक्षकारों को निर्देश दिया जाता है कि वे अपने मतभेदों को किनारे रखकर बच्चे के कल्याण के व्यापक हित में लेने-देने की आपसी भावना से इस अदालत के निर्देशों का पालन करें। उन सभी को यह सुनिश्चित करने के लिए गंभीर सामूहिक प्रयास करना चाहिए कि नाबालिग पर अत्याचार न हो। वह उनके कारण किसी भी संकट या पीड़ा का शिकार न हो। उसकी उम्र कम है और वह इस सबसे गमगीन हो सकता है।''

    केस टाइटल: डॉ. हनी चहल और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य

    उपस्थिति: आर.एस. राय, सीनियर एडवोकेट और अमित झांजी, सीनियर एडवोकेट के साथ याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट राहुल भार्गव और आरती कौर, एलिज़ा गुप्ता शामिल थे।

    प्रतिवादी नंबर 3 के वकील प्रथम सेठी के साथ वरिष्ठ वकील डॉ. अनमोल रतन सिद्धू और प्रतिवादी नंबर 4 की ओर से वकील विशाल शर्मा और एस.एस. अविराज, कुणाल डावर, प्रतिवादी नंबर 5 के वकील और गुरअमृत कौर, सब-एडवोकेट जनरल, पंजाब मोहित ठाकुर, एएजी पंजाब के साथ।

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