कस्टडी को सिर्फ इसलिए नहीं बढ़ाया जा सकता क्योंकि एफएसएल ने रिपोर्ट नहीं दी; एफएसएल जांच में देरी कर रही है स्पीडी ट्रायल के अधिकार को प्रभावितः कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

5 Feb 2021 4:30 AM GMT

  • कस्टडी को सिर्फ इसलिए नहीं बढ़ाया जा सकता क्योंकि एफएसएल ने रिपोर्ट नहीं दी; एफएसएल जांच में देरी कर रही है स्पीडी ट्रायल के अधिकार को प्रभावितः कर्नाटक हाईकोर्ट

    राज्य में पर्याप्त फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं की कमी को ध्यान में रखते हुए, कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को कई निर्देश जारी किए हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एफएसएल रिपोर्ट समय पर दे दी जाए और मामलों के त्वरित निपटारे में सहायता मिल सके।

    अदालत ने कहा कि,''कर्नाटक जैसे राज्य के लिए, जिसे सूचना प्रौद्योगिकी में सबसे आगे चलने वाला माना जाता है और उसका बंगलौर शहर पूर्व की सिलिकन वैली है, उसके बावजूद भी यह एक अस्वीकार्य सी बात है कि इस राज्य में एक एफएसएल है,जिसके 13 अनुभाग मेें कामकाज होता है।''

    न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि ''उपरोक्त प्रक्रिया के दौरान प्रत्येक हितधारक द्वारा पालन की जाने वाली समयसीमा के संबंध में कोई विशेष दिशानिर्देश नहीं दिए गए हैं और न ही नमूने एकत्रित करने के समय से लेकर अदालत में रिपोर्ट प्रस्तुत करने की तारीख तक की समय अवधि की निगरानी के लिए कोई निगरानी प्रणाली स्थापित की गई है।''

    अदालत ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि एफएसएल से रिपोर्ट प्राप्त नहीं होने के कारण 6994 मामले लंबित हैं। वहीं 35738 से अधिक नमूने जांच के लिए लंबित हैं।

    अदालत को यह भी सूचित किया गया कि राज्य में एफएसएल की संगठनात्मक स्थापना इस तरह की है कि बेंगलुरु में स्थित एक शीर्ष राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (एसएफएसएल) है जहां 13 अलग-अलग अनुभाग कार्यरत हैं। राज्य में पांच पुलिस रेंज मुख्यालयों जैसे मैसूरु, मंगलुरु, दावणगेरे, बेलगावी और कलबुर्गी में पांच क्षेत्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (आरएफएसएल) की भी स्थापना की गई है, हालांकि इन लैब के 13 अनुभागों में से अधिकतम दो अनुभाग ही काम कर रहे हैं, इसलिए बाकी के 11 अनुभागों से संबंधित नमूनों को जांच के लिए एसएफएसएल को भेजना पड़ता है।

    जिस पर पीठ ने कहा कि,'' चैंकाने वाला और अस्वीकार्य पहलू रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए लिया जाने वाला समय है - एक नार्कोटिक मामले में 1 साल लगता है, कंप्यूटर/ मोबाइल/ ऑडियो-वीडियो फोरेंसिक में लगभग डेढ़ साल लग जाता हैं, एक डीएनए टेस्ट में डेढ़ साल लगता है,ये इन सभी टेस्ट का औसत समय है।''

    कोर्ट ने यह भी कहा कि,''यदि अभियुक्त हिरासत में है, तो उपरोक्त रिपोर्ट में इस तरह की देरी के कारण जेल में बड़ी संख्या में अंडरट्रायल रखे जाएंगे। उपरोक्त वैज्ञानिक रिपोर्टों की प्राप्ति में होने वाली देरी के कारण उच्च सामाजिक लागत आएगी। यदि रिपोर्ट देर से प्राप्त होती है और यह अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं करती है, तो कई बार इसके परिणामस्वरूप निर्दोष व्यक्तियों को कैद में रहना पड़ सकता है।''

    कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि,''सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि पीड़ित या पीड़ित का परिवार भी इस तरह की देरी के कारण परेशान होता है, क्योंकि उनको भी पता नहीं होता है कि कब और क्या होगा। प्रत्येक अभियुक्त को स्पीडी ट्रायल का अधिकार है। वहीं पीड़ित या पीड़ित परिवार को भी स्पीडी ट्रायल का अधिकार है। खासतौर पर जब एक अभियुक्त कस्टडी में हो तो उसे स्पीडी ट्रायल का अधिकार है। उक्त कस्टडी को केवल इस आधार पर नहीं बढ़ाया जा सकता है कि एफएसएल रिपोर्ट को समय पर प्रस्तुत करने में असमर्थ है और /या एफएसएल की संख्या आवश्यकता से कम है। इस तरह की देरी भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक अभियुक्त के जीवन के अधिकार का उल्लंघन करती है। एफएसएल द्वारा एक रिपोर्ट प्रदान करने में देरी का कोई भी कारण हो सकता है परंतु उसके परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति हो सकती है जिसे कानून के तहत कोई समर्थन प्राप्त नहीं हो सकता है।''

    अदालत ने कहा कि, ''रिपोर्ट को प्रस्तुत करने में देरी का प्रभाव न केवल एक मामले की ट्रायल को विलंबित करता है, बल्कि उक्त विलंब के कारण नमूने के खराब होने या दूषित होने की संभावना भी रहती है, जो फोरेंसिक जाँच के उद्देश्य को निष्फल कर सकता है।''

    यह देखते हुए कि फोरेंसिक साक्ष्य जैसे डीएनए रिपोर्ट, रासायनिक विश्लेषण रिपोर्ट, बायोएनालिसिस रिपोर्ट गंभीर अपराधों (जैसे कि हत्या, यौन उत्पीड़न के मामले, जालसाजी आदि)की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं,कोर्ट ने कहा कि,

    ''एफएसएल द्वारा फोरेंसिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने में देरी एक मामले की कार्यवाही को आवश्यक तौर पर बाधित करती है। एक त्वरित परीक्षण में सबसे बड़ी बाधा एफएसएल रिपोर्ट दाखिल करने में होने वाली देरी है। इन रिपोर्ट के न मिलने के कारण मामलों को वर्षों के लिए स्थगित कर दिया जाता है। कुछ मामले सुनवाई के लिए सत्र न्यायालय या विशेष न्यायालय को भेजे ही नहीं जाते हैं क्योंकि उनकी रिपोर्ट लंबित होती है।''

    इसप्रकार यह निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किए गए हैंः

    -राज्य को इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख के बारह महीने की अवधि के भीतर आरएफएसएल के सभी अनुभागों को संचालित करने का निर्देश दिया गया है।

    -न केवल राज्य स्तर पर या क्षेत्रीय स्तर पर ही फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला की आवश्यकता है बल्कि जिला स्तर पर भी फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला की आवश्यकता होगी, इसलिए राज्य को इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से 24 महीने के भीतर आवश्यकता के अनुसार राज्य के सभी जिलों में जिला स्तरीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला बनाने पर विचार करने और स्थापित करने के लिए निर्देश दिया गया है।

    -राज्य इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से छह महीने के भीतर जल्दी से जल्दी एसएफएसएल और आरएफएसएल में मौजूदा रिक्तियों को भरने की दिशा में कार्य करें। कोई भी संयुक्त निदेशक नियुक्त नहीं है सभी 3 पद (100 प्रतिशत) रिक्त हैं, उप निदेशकों के 10 में से 7 पद (70 प्रतिशत) रिक्त हैं, सहायक निदेशकों के 46 में से 18 (40 प्रतिशत) पद खाली हैं, वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारियों के 88 पदों में से 35(40 प्रतिशत) पद खाली हैं, वैज्ञानिक अधिकारियों के 186 पदों में से 138 (75 प्रतिशत) पद खाली हैं।

    -कितने नमूनों की जांच की जानी है, जांच की प्रकृति, इस तरह की जांच के लिए आवश्यक व्यक्ति की योग्यता आदि के संबंध में एक उचित वैज्ञानिक अध्ययन किया जाना चाहिए।

    -लंबित नमूनों और कितने समय में इन नमूनों की रिपोर्ट संबंधित अदालत के समक्ष दायर की जाएगी, को लेकर एक कार्य योजना तैयार की जाए। भविष्य में प्राप्त होने वाले नमूनों की समय-सीमा के संबंध में दिशानिर्देश जारी करने की आवश्यकता है, ताकि उस समय- सीमा के अंदर एक विशेष प्रकार के नमूने की जांच करने के बाद संबंधित अदालत को रिपोर्ट सौंप दी जाए।

    -नूमना एकत्रित करने के समय से लेकर अदालत में रिपोर्ट प्रस्तुत करने की तारीख तक की समय अवधि की निगरानी के लिए एक निगरानी प्रणाली स्थापित की जाए।

    -उपलब्ध नवीनतम उपकरण, प्रयोगशालाओं के आधुनिकीकरण, समय-समय पर अपडेट किए जाने वाले उपकरणों की प्रक्रिया के संबंध में भी एक अध्ययन किया जाए।

    -यहां तक कि अगर एफएसएल के किसी अधिकारी को एक विशेष तरीके से बयान दर्ज करवाना आवश्यक है, तो यह उचित होगा कि उक्त साक्ष्य को वीडियो कॉन्फ्रेंस सुविधा के माध्यम से करवाने की अनुमति दी जाए। इसलिए यह आवश्यक है कि एफएसएल को तुरंत न्यायालयों के साथ उसी तरह से जोड़ दिया जाए,जिस तरीके से जेल को न्यायालयों से जोड़ा गया है। इससे काफी समय की बचत होगी क्योंकि एफएसएल अधिकारियों को इस तरह की अनावश्यक यात्रा के कारण काफी समय गंवाना पड़ता है। निचली अदालतों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से एफएसएल अधिकारियों के बयान दर्ज करवाने व उनसे जिरह करने अनुमति देनी चाहिए।

    -ट्रायल कोर्ट को एफएसएल रिपोर्ट पेश न करने के चलते दिए जा रहे स्थगन पर सख्त निगरानी रखनी होगी, ट्रायल कोर्ट को जल्द से जल्द रिपोर्ट पेश करने पर जोर देना चाहिए।

    मामले का विवरणः

    केस का शीर्षकः नवीन कुमार बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबरः आपराधिक याचिका नंबर 7019/2020

    आदेश की तिथिः 22 दिसम्बर 2020

    कोरमः जस्टिस सुरज गोविंदराज

    प्रतिनिधित्वः याचिकाकर्ता के लिए अधिवक्ता प्राथीप के.सी

    प्रतिवादियों के लिए एडवोकेट नमिथा महेश बी.जी.

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