हिरासत में मौत के आरोप: ‘अनुच्छेद 21 का उल्लंघन, ललिता कुमारी मामले के दिशानिर्देश’ : कलकत्ता हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट को पुलिस के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया

LiveLaw News Network

1 Feb 2023 6:08 AM GMT

  • हिरासत में मौत के आरोप: ‘अनुच्छेद 21 का उल्लंघन, ललिता कुमारी मामले के दिशानिर्देश’ : कलकत्ता हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट को पुलिस के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया

    Calcutta High Court

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक कथित हिरासत में मौत के मामले का निर्धारण करते हुए हाल ही में फैसला सुनाया कि संबंधित पुलिस अधिकारियों ने ‘ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (2014)’ मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों तथा दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों का पालन न करके संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किया है।

    तदनुसार, कोर्ट ने संबंधित मजिस्ट्रेट को हिरासत में मौत के मामले में सीआरपीसी की धारा 202 के तहत जांच करने का आदेश दिया। मौजूदा मामले में, मृतक को बिना कोई नोटिस दिए पुलिस स्टेशन बुलाया गया था, जिसे कोर्ट ने ‘ललिता कुमार (सुप्रा)’ के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करार दिया था।

    अपने 20 पन्नों के आदेश में जस्टिस हिरण्मय भट्टाचार्य की पीठ ने इस प्रकार कहा:

    "..इस कोर्ट का सुविचारित मत है कि प्रतिवादी पुलिस अधिकारी ने याचिकाकर्ता के पति को पुलिस स्टेशन में पेशी के लिए बुलाते वक्त संहिता के प्रावधानों और ललिता कुमारी (सुप्रा) के दिशानिर्देशों का घोर उल्लंघन किया है। तदनुसार, यह कोर्ट मानता है कि इस मामले में अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किया गया है।"

    कोर्ट मृतक की पत्नी द्वारा हिरासत में मौत का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही था। यह दलील दी गयी थी कि संबंधित पुलिस अधिकारियों द्वारा सीआरपीसी के प्रावधानों का उल्लंघन किया गया था जब मृतक के खिलाफ दर्ज एक आपराधिक शिकायत की जांच करने के सिलसिले में उसे पुलिस स्टेशन बुलाया गया था।

    कोर्ट को यह भी बताया गया कि मृतक को दो घंटे के भीतर थाने नहीं आने पर गिरफ्तार करने की धमकी दी गई थी।

    जस्टिस भट्टाचार्य ने रिकॉर्ड के अवलोकन के बाद कहा कि पुलिस अधिकारियों द्वारा मृतक के खिलाफ जांच करने का निर्णय जनरल डायरी में दर्ज नहीं किया गया था। कोर्ट ने इस बात पर भी विचार किया कि मृतक को बिना किसी नोटिस या आदेश के पुलिस स्टेशन बुलाया गया था।

    सीआरपीसी की धारा 41ए पर भरोसा करते हुए, जो उस व्यक्ति को नोटिस तामील करना अनिवार्य बनाती है जिसके खिलाफ शिकायत की गई है और साथ ही सीआरपीसी की धारा 160 पर भरोसा करते हुए, जो किसी व्यक्ति को पेश होने के लिए पुलिस अधिकारी द्वारा लिखित आदेश जारी करने पर विचार करती है, कोर्ट ने टिप्पणी की:-

    "उपर्युक्त प्रावधानों में से किसी का भी मौजूदा मामले में अनुपालन नहीं किया गया है। इसके अलावा, ‘‘ललिता कुमारी (सुप्रा)’ मामले में भारत के माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का भी पालन नहीं किया गया कि जांच करने के निर्णय को दर्ज किया जाना चाहिए।’’

    इस मामले में मृतक की पत्नी ने यह भी आरोप लगाया था कि उसके पति की हिरासत में मौत के आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उसकी शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने से संबंधित अधिकारियों ने इनकार कर दिया था।

    यह देखते हुए कि पुलिस अधिकारियों की ओर से इस तरह की निष्क्रियता यह दर्शाती है कि वे कोर्ट से 'वास्तविक तथ्यों को छिपाने' की कोशिश कर रहे हैं, जस्टिस भट्टाचार्य ने उल्लेख किया:-

    "प्रतिवादी पुलिस अधिकारियों ने जिस तरह से मामले में कार्रवाई की है, उससे इस कोर्ट के दिमाग में यह धारणा बनती है कि पुलिस अधिकारी रिट याचिकाकर्ता की शिकायत के आधार पर कदम उठाने के लिए इसलिए तैयार नहीं हैं क्योंकि आरोप पुलिस अधिकारियों के खिलाफ थे। इस कोर्ट को यह प्रतीत होता है कि पुलिस अधिकारियों ने इस तरह से कार्रवाई की है कि वास्तविक तथ्यों का पता लगाने के बजाय वास्तविक तथ्यों को कोर्ट से छुपाया जा सके।"

    तदनुसार, कोर्ट ने संबंधित मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 200 के तहत शिकायत दर्ज करने और हिरासत में मौत के मामले की जांच करने का निर्देश दिया।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "इसलिए, इस कोर्ट को लगता है कि न्याय के हित को तभी संरक्षित किया जा सकेगा, यदि सक्षम क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट कोर्ट को संहिता की धारा 200 के तहत शिकायत दर्ज करने और उसके बाद कानून के अनुसार आगे बढ़ने का निर्देश दिया जाता है।"

    पुलिस अधिकारियों को जांच के उद्देश्य से घटना के सीसीटीवी फुटेज को संरक्षित करने का भी निर्देश दिया गया।

    केस टाइटल: शिप्रा डे बनाम पश्चिम बंगाल सरकार व अन्य

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