कब्जा खाली कराने की जरूरत की प्रामाणिकता की तारीख का निर्धारण मकान मालिक की अर्जी की तारीख से होगा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

25 Sep 2019 8:33 AM GMT

  • कब्जा खाली कराने की जरूरत की प्रामाणिकता की तारीख का निर्धारण मकान मालिक की अर्जी की तारीख से होगा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    “यदि याचिका की तारीख को बतायी गयी जरूरत आज भी कायम है और यदि यह साबित भी हो चुका है तो वह पर्याप्त होगा और ऐसे में न्यायिक प्रक्रिया में हुई देरी का कोई मायने नहीं होगा”

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मकान मालिक की जरूरत की प्रामाणिकता (नेक नीयती) के निर्धारण की महत्वपूर्ण तारीख कब्जा खाली करने के लिए दी गयी अर्जी की तारीख होगी।

    हाईकोर्ट ने शशि कुमार बनाम सुन्दरराजन मामले में किराया नियंत्रण प्राधिकरण के कब्जा खाली करने के आदेश को निरस्त करते हुए कहा था कि कब्जा खत्म करनी प्रामाणिकता याचिका की तारीख से ही केवल नहीं मानी जायेगी, बल्कि याचिका के अंतिम फैसले की तारीख तक उसकी प्रामाणिकता जारी रहनी चाहिए।

    मकान मालिक ने तमिलनाडु बिल्डिंग (लीज एंड रेंट कंट्रोल) एक्ट, 1960 की धारा-10(3)(ए)(iii) और 14(1)(बी) के तहत किरायेदार से किराये की जगह खाली करवाने की अर्जी यह कहते हुए दी थी कि उसे गार्मेंट शॉप शुरू करने के लिए खुद उस परिसर की आवश्यकता है।

    न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील का निस्तारण करते हुए कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस बात का संकेत दे कि खुद की जिस जरूरत का हवाला देकर मकान मालिक ने कब्जा खाली कराने की याचिका दायर की थी, वह जरूरत अब नहीं रही। कोर्ट ने इस तथ्य का संज्ञान भी लिया कि मकान मालिक ने याचिका 2004 में दायर की थी, जिसका निपटारा रेंट कंट्रोलर ने 2011 में किया था और अपीलीय प्राधिकरण ने इस आदेश को 2013 में बरकरार रखा था। हाईकोर्ट ने भी छह मार्च 2017 को पुनरीक्षण याचिका का निपटारा किया था।

    न्यायालय ने कहा :-

    "इस तरह के भिन्न निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता, यदि इस बात को भूल जाया जाये कि न्यायिक प्रक्रिया में लंबा समय लगता है और इसमें होने वाली देरी के कारण मकान मालिक को लाभ से वंचित किया जाता है तो इससे किरायेदार मुकदमों को लंबा खींचने का प्रयास करेंगे....

    ....न्यायिक प्रक्रिया में सम्पूर्ण देरी के लिए मकान मालिक को जिम्मेदार ठहराकर उसे राहत देने से इन्कार नहीं किया जा सकता। यदि याचिका की तारीख को बतायी गयी जरूरत आज भी कायम है और यदि यह साबित भी हो चुका है तो वह पर्याप्त होगा और एसे में न्यायिक प्रक्रिया में हुई देरी का कोई मायने नहीं होगा। इस कोर्ट ने 'गया प्रसाद बनाम प्रदीप श्रीवास्तव (2001) के मामले में व्यवस्था दी है कि कानूनी प्रक्रिया में शिथिलता के लिए मकानमालिक को दंडित नहीं किया जा सकता और मकान मालिक की जरूरत की प्रामाणिकता के निर्धारण की तारीख कब्जा खाली करवाने के लिए दी गयी अर्जी की तारीख ही होगी। हम भी इस फैसले की तस्दीक करते हैं।"

    बेंच ने इसके बाद हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए किरायेदार को 31 जनवरी 2021 तक खुद कब्जा छोड़ देने का आदेश दिया।



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