COVID- "बिहार में 'टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट' नीति को लागू करने की आवश्यकता है": पटना हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
28 July 2021 1:04 PM IST
पटना हाईकोर्ट ने मंगलवार को इस बात पर जोर देते हुए कहा कि बिहार में "टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट" नीति को और अधिक सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही कोर्ट महामारी के दौर में मीडिया द्वारा निभाई गई भूमिका की तारीफ करते हुए कहा कि मीडिया द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका COVID-19 अप्रत्याशित तीसरी लहर के दौरान लोगों के दर्द, तकलीफ और पीड़ा को कम करने में मदद कर सकती है।
मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने राज्य सरकार की ओर से दायर हलफनामे (कोर्ट के अंतिम आदेश के अनुसार) का अवलोकन किया और कहा कि वैक्सीनेश के मुद्दे पर यह अस्पष्ट है, क्योंकि इसमें विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में वैक्सीनेशन के लिए पात्र व्यक्तियों की संख्या निर्दिष्ट नहीं है।
हाईकोर्ट ने नोट किया,
"सरकार के पास वैक्सीन की पर्याप्त संख्या में खुराक उपलब्ध है या नहीं? यदि ऐसा नहीं है, तो आवंटन के लिए बढ़ाए गए कोटा का अनुरोध भारत सरकार से किया गया है या नहीं? हलफनामे में कहा गया है कि राज्य की शहरी 71 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन दी गई है, मगर हलफनामे में ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली वैक्सीन के योग्य आबादी के संबंध में कुछ नहीं कहता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि राज्य सरकार ने मिशन मोड "छह महीने में छह करोड़" नाम से एक अभियान शुरू किया था और 21 जुलाई, 2021 तक, 2.20 करोड़ वैक्सीन की खुराक दी गई थी, इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की:
"क्या इस प्रक्रिया को तेज नहीं किया जाना चाहिए, जो हम जानना चाहते हैं। क्या यह वैक्सीन की उपलब्धता की कमी के कारण है, या वैक्सीनेशन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की उपलब्धता के कारण या लोगों की ओर से अनिच्छा/झिझक के कारण है?"
इसलिए, न्यायालय ने प्रधान सचिव (स्वास्थ्य), बिहार सरकार, पटना को दो पहलुओं पर व्यापक रूप से ध्यान केंद्रित करते हुए एक पूरक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जैसे कि जिला / उप-मंडल स्तर पर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की उपलब्धता और COVID-19 से निपटने के लिए आवश्यक वैक्सीन की उपलब्धता।
इसके साथ ही मामले को 30 जुलाई को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया।
अंत में, कोर्ट ने यह भी कहा कि लोगों को अपने हाथ, श्वसन और सामाजिक स्वच्छता बनाए रखने की आवश्यकता के प्रति संवेदनशील बनाने में मीडिया की भूमिका अनिवार्य हो जाती है। इसमें भी सबसे महत्वपूर्ण रूप से सार्वजनिक स्थानों पर सामाजिक दूरी बनाए रखने में।
केस का शीर्षक - शिवानी कौशिक बनाम बिहार राज्य
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