COVID 19- हम बहुत व्यथित हैं, इस अदालत के आदेशों की पूरी तरह अनदेखी की जा रही हैः गुजरात हाईकोर्ट ने अस्पतालों में बिस्तरों का रीयल टाइम डेटा मांगा
LiveLaw News Network
4 May 2021 5:12 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) को आदेश दिया है कि वह COVID-19 अस्पतालों में विभिन्न श्रेणियों के बेड की उपलब्धता का रीयल टाइम अपडेट प्रदान करने के लिए एक ऑनलाइन डैशबोर्ड पेश करे।
चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस भार्गव डी कारिया की खंडपीठ ने कहा, "हम राज्य सरकार और निगम के रवैये से बहुत व्यथित हैं। इस न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है। पिछले तीन आदेशों से, हम रीयल टाइम अपडेट के मुद्दे का उल्लेख कर रहे हैं] लेकिन आज तक, राज्य या निगम द्वारा कुछ भी नहीं किया गया है।"
खंडपीठ को एएमसी की ओर से पेश एडवोकेट मिहिर जोशी ने बताया कि एएसएनए (अहमदाबाद हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स एसोसिएशन) की वेबसाइट दिन में दो बार उपलब्धता का डेटा अपडेट करती है, उसे एएमसी की आधिकारिक वेबसाइट के साथ जोड़ा गया है।
प्रस्तुतियों से असंतुष्ट चीफ जस्टिस ने कहा, "केवल दिन में दो बार किया जा रहा है, रीयल टाइम आधार पर नहीं किया जा रहा है। अन्य निगम, जो एएमसी से बहुत छोटे हैं, उनकी वेबसाइटों पर रीयल टाइम डेटा उपलब्ध है। अहमदाबाद नगर निगम क्यों पीछे है?"
हम रीयल टाइम अपडेट्स के साथ सभी अस्पतालों की पूरी जानकारी एक डैशबोर्ड पर चाहते हैं। जब भी किसी मरीज को भर्ती किया जाए, खाली बेड भरा हुआ दिखे। जैसे ही मरीज को छुट्टी दी जाए, एक रिक्ति जोड़ दी जाए।"
चीफ जस्टिस ने जोर देकर कहा कि मरीजों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक दौड़ना नहीं चाहिए और उन्हें एक स्थान पर अद्यतन जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए।
108 एम्बुलेंस नीति
सुनवाई के दरमियान, यह मुद्दा भी उठा कि अस्पतालों में केवल उन मरीजों को भर्ती किया जा रहा है जो सरकार द्वारा संचालित 108 एम्बुलेंस से आते हैं।
पिछले आदेश में हाईकोर्ट ने इस प्रकार की नीति को हतोत्साहित किया था और सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि किसी भी व्यक्ति को उपरोक्त आधार पर इलाज से वंचित नहीं किया जाएगा। इसके बाद, नीति को को खत्म कर दिया गया।
एडवोकेट मिहिर जोशी ने आज कहा कि उपरोक्त नीति तर्कहीन नहीं थी और जनहित में 108 केंद्रीकरण किया गया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि वह नीति केवल नि: शुल्क बेड पर लागू होती थी, जो उन रोगियों के लिए थी, जो उपचार के लिए सरकार द्वारा संचालित एम्बुलेंस पर निर्भर हैं।
उन्होंने कहा कि बेड की कमी को देखते हुए, केंद्रीय नियंत्रक को बेड के कुशल आवंटन का जिम्मा दिया गया है।
"एक केंद्रीय नियंत्रक के पास विभिन्न COVID-19 अस्पतालों में बेड की उपलब्धता के बारे में निरंतर जानकारी है। इसलिए, यदि रोगी 108 पर कॉल करते हैं, तो केंद्रीय नियंत्रक निकटतम उपलब्ध अस्पतालों के बारे में जानकारी प्रदान करने में सक्षम होंगे।
नियंत्रक को रोगी की स्थिति, ऑक्सीजन की आवश्यकता, आदि के बारे में सूचित किया जाएगा और वह तदनुसार आवंटन करेगा। अन्यथा, निजी कारों से आ रहे गंभीर रोगी ऐसे अस्पतालों में जा सकते हैं, जिनमें आक्सीजन बेड ना हो। इस प्रकार, आम आदमी के हित में यह आवश्यक माना गया कि 108 नीति को अधिसूचित किया जाए।''
इससे असहमत चीफ जस्टिस ने कहा, "श्री जोशी, केंद्रीकृत प्रणाली बहुत बड़ी विफलता थी। लोग 48 घंटे तक 108 एम्बुलेंस का इंतजार करते रहे..."
इस बिंदु पर, जोशी ने जोर देकर कहा कि इसका समाधान पॉलिसी खत्म करना नहीं, बल्कि एम्बुलेंस की संख्या में वृद्धि करना था।
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि "आपके अस्पतालों के बाहर एम्बुलेंस की कतारें थीं।"
अन्य प्रस्तुतियां
कोर्ट ने इस मामले में दायर विभिन्न आवेदनों पर भी सुनवाई की, जिनमें राहत मांगी गई थी और महामारी के प्रबंधन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर सुझाव दिए गए थे।
सीनियर एडवोकेट पर्सी कविना ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थितियां निराशाजनक हैं। उन्होंने बताया-
-दूरदराज के क्षेत्रों में कोई अस्पताल / बेड नहीं हैं और यहां तक कि जहां बेड हैं, वहां कोई स्वास्थ्य सुविधा, स्वच्छता नहीं है;
-सुदूर गांव में मरने वालों की गिनती नहीं हो रही है; रिपोर्टिंग के लिए कोई संस्थागत मशीनरी नहीं है;
-RTPCR की जांच के परिणाम 3-4 दिनों में दिए जाते हैं; यहां तक कि शहरों में परीक्षण दर कम हो गई है;
-टीकाकरण एक छलावा बन गया है और 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को दूसरी खुराक नहीं मिल पा रही है।
COVID-19 दवाओं, ऑक्सीजन सिलेंडर आदि की कालाबाजारी के मुद्दे पर, कविना ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार को एक शिकायत संख्या के साथ सामने आना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे उपद्रवियों पर एक हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।
एडवोकेट शालीन मेहता ने दलील दी कि ऑक्सीजन की कमी के कारण, कई अस्पताल रोगियों को पर्याप्त ऑक्सीजन प्रदान नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जहां रोगी को पांच लीटर की आवश्यकता होती है, उसे केवल एक लीटर ही दिया जाता है।
चीफ जस्टिस ने इस पर कहा कि "तब ऑक्सीजन बर्बाद हो रहा है।"
इस प्रकार मेहता ने सभी अस्पतालों को एक सामान्य दिशा निर्देश देने की मांग की कि ऑक्सीजन को रोगी की आवश्यकता के अनुसार दिया जाए और उसी के मुताबिक, खरीद के लिए अग्रिम कदम उठाए जाएं।
एडवोकेट आनंद याग्निक ने छह सुझाव दिए, जो निम्नानुसार हैं:
-चूंकि महामारी के कारण स्कूलों को बंद कर दिया गया है, गरीम छात्रों को मौजूदा शैक्षणिक वर्ष के लिए इंटरनेट सबस्क्रिप्शन और स्मार्टफोन दिए जाने चाहिए;
-चूंकि छात्र आंगनबाड़ी और स्कूल नहीं जा रहे हैं, इसलिए भोजन की खुराक/सप्लीमेंट्स, मिड डे मील और एकीकृत बाल विकास योजना के तहत पात्र लोगों तक पहुंचनी चाहिए;
-किशोर न्याय अधिनियम, अनाथालय आदि के तहत संरक्षण घरों में रखे गए बच्चों के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
-नारी निकेतन में चिकित्सा सुविधाओं को सुनिश्चित किया जाना चाहिए, विशेष रूप से ऐसी महिलाओं के लिए जो न्यायालयों के आदेशों के तहत वहां रखी गई हैं, लेकिन महामारी के कारण अदालत का दरवाजा खटखटाने में असमर्थ हैं;
-मंगोलॉइड सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों की देखभाल के लिए कदम उठाए जाने चाहिए क्योंकि वे अकेले अस्पताल नहीं जा सकते हैं, लेकिन उनके माता-पिता को सीमित संसाधनों के कारण प्रवेश नहीं दिया जा सकता है।