COVID-19: 'आम आदमी को भूल जाओ, अगर मैं अपने लिए कहूं तो मेरे लिए भी बेड उपलब्ध नहीं होगा': दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस विपिन सांघी ने कहा
LiveLaw News Network
22 April 2021 7:40 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी दिल्ली में COVID-19 रोगियों के इलाज के लिए अस्पतालों में बेड की कमी को लेकर चिंता व्यक्त की।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी ने दिल्ली के COVID-19 अस्पतालों में बेड की कमी को लेकर कहा कि, "आम आदमी को भूल जाओ, अगर मैं अपने लिए बेड के लिए कहूं तो मेरे लिए भी बेड उपलब्ध नहीं होगा।"
न्यायमूर्ति विपिन सांघी ने जोर देकर कहा कि लोगों की जरूरतों को तत्काल पूरा किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र COVID बेड की आवश्यकताओं पर ध्यान देगा और बेड की संख्या बढ़ाने पर काम करेगा।
बेंच रोहिणी के सरोज सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की ऑक्सीजन की आपूर्ति करने की मांग वाली तत्काल याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बेंच ने विभिन्न अस्पतालों में ऑक्सीजन की खरीद, परिवहन और वितरण पर कई सिफारिशें करने के अलावा केंद्र से अस्पतालों में बेड की उपलब्धता बढ़ाने के लिए भी कहा है।
कोविड अस्पतालों में बेड की कमी
दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने कोर्ट को बताया कि भले ही केंद्र सरकार दावा करती है कि केंद्र द्वारा नियंत्रित कोविड अस्पतालों में बेड की संख्या बढ़ा दी गई है, लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा कुछ नहीं किया गया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा कहा कि बेड की बढ़ी हुई संख्या ऐप पर दिखाई नहीं दे रहा है। आगे कहा कि, "लोगों को कैसे पता चलेगा कि कितने बेड और कहां बेड उपलब्ध है? आईसीयू बेड और सामान्य बेड की कोई भी जानकारी नहीं है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं। किसी को भी बेड नहीं मिल रहा है।"
दूसरी तरफ अतिरिक्त सचिव (स्वास्थ्य) आरती आहूजा ने स्पष्ट किया कि सभी मौजूद बेड की संख्या दिल्ली ऐप पर दिखाई दे रहा है और सौंपने की कोई प्रक्रिया नहीं है।
अतिरिक्त सचिव आरती आहूजा ने कहा कि,
"हमारे योगदान में ईएसआईसी अस्पताल और रेलवे कोच शामिल है। दिल्ली सरकार को बेस अस्पताल में 300 बेड को छोड़कर 4159 बेड दिए गए हैं। हम कार्पोरेट्स, पीएसयू के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और साथ ही साथ इनसे अस्पतालों के लिए सीएसआर फंड इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं।"
एडवोकेट मेहरा ने इस पर कहा कि ये केवल आइसोलेशन बेड हैं। चिकित्सकीय रूप से सुसज्जित अस्पताल के बेड नहीं हैं।
एडवोकेट मेहरा ने कहा कि,
"ये आइसोलेशन सेंटर हैं, अस्पताल के बेड नहीं हैं। इस तरह से हर घर में एक बेड है। जो बेड हैं वो भी वेंटीलेटर और ऑक्सीजन के बिना हैं। आइसोलेशन बेड अस्पताल के बेड नहीं हैं।"
इस्पात उद्योग को ऑक्सीजन की आपूर्ति
डिवीजन बेंच ने पहले की सुनवाई में सरकार से स्टील उत्पादन को प्रतिबंधित करने और जरूरत पड़ने पर सभी औद्योगिक रूप से उत्पादित ऑक्सीजन को चिकित्सा उपयोग के लिए डायवर्ट करने का निर्देश दिया था।
इस पृष्ठभूमि में अतिरिक्त सचिव (इस्पात) रसिका चौबे आज खंडपीठ के समक्ष पेश हुईं और बताया कि तकनीकी कारणों से उत्पादन पूरी तरह से बंद नहीं किया जा सकता है।
रसिका चौबे ने अदालत से कहा कि लिक्विड ऑक्सीजन एक सहयोगी उत्पाद है और अगर उत्पादन रोका जाता है तो वे लिक्विड ऑक्सीजन के रूप में फैलाने में सक्षम नहीं होंगे।
रसिका चौबे ने प्रस्तुत किया कि,
"जब हम गैसीय ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं तभी हम लिक्विड ऑक्सीजन देते हैं। इसलिए उत्पादन पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता है। जब हम गैसीय ऑक्सीजन का उत्पादन कम करते हैं, जिससे स्टील का उत्पादन कम हो जाता है, तो आप चिकित्सा उपयोग के लिए लिक्विड ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं। इसके लिए तकनीकी क्षमता निर्धारित है।"
रसिका चौबे ने जोर देकर कहा कि सभी इस्पात क्षेत्र मदद कर रहे हैं और सितंबर 2020 से उद्योग ने चिकित्सा उपयोग के लिए 1,00,000 मीट्रिक टन से अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति की है।
आगे कहा कि, "सभी इस्पात संयंत्रों के भंडारण टैंकों में लगभग 16,000 मीट्रिक ऑक्सीजन टन है जो पहले ही उपलब्ध कराया जा चुका है। हम सुरक्षा रखे स्टॉक को भी उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं जो लगभग 20,000 मीट्रिक टन है।"
लिक्विड ऑक्सीजन का परिवहन
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को लिक्विड ऑक्सीजन खरीदने की सलाह दी गई और रेलवे नेटवर्क के माध्यम से विभिन्न राज्यों में इसकी जरूरत के आधार परिवहन के लिए एक समन्वय का सुझाव दिया गया।
[यह ध्यान दिया जा सकता है कि ऑक्सीजन की आपूर्ति के एयरलिफ्टिंग में तकनीकी कठिनाइयां हैं, जैसा कि सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सांघी ने बताया।]
पीठ के समक्ष अपर सचिव (रेलवे) मनोज सिंह उपस्थित हुए और उन्होंने बताया कि ओडीसी (ओवर-डाइमेंडेड कंसाइनमेंट) शुल्क माफ कर दिए गए हैं और इसके लिए समर्पित ट्रेनें चलाई जा रही हैं।
डिवीजन बेंच ने सुझाव दिया कि, "आप यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि इन ट्रेनों की आवाजाही को प्राथमिकता दी जाएगी और उन्हें रूकने की जरूरत नहीं होगी।"
केंद्र की ओर से पेश हुए एसजी मेहता ने कोर्ट को बताया कि लिक्विड ऑक्सीजन का परिवहन एक चुनौती होगी। हालांकि केंद्र ने इसके लिए एक योजना बनाई है।
एसजी मेहता ने कहा कि,
"परिवहन एक चुनौती है। यह हमने पहले ही कह दिया था। सरकार ने जितना संभव हो सका उतने चैनलों की स्थापना की है।"
इसके साथ ही रेलवे प्रतिनिधि ने स्पष्ट कर दिया कि विभाग के पास क्रायोजेनिक कंटेनर नहीं हैं और राज्य को ही इसकी व्यवस्थित करना होगा।
खंडपीठ ने निर्देश दिया कि, "हम इस पहलू पर गौर करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देशित देते हैं। क्रायोजेनिक कंटेनर उत्पादकों के पास उपलब्ध नहीं हैं, वे कदम उठा सकते हैं।"
[इससे पहले आज (गुरूवार) टाटा समूह ने घोषणा की कि वह देश में मौजूदा ऑक्सीजन संकट को पूरा करने के लिए विशेष चार्टर्ड उड़ानों के माध्यम से 24 क्रायोजेनिक कंटेनर का आयात कर रहा है।]
वैक्सीन का अपव्यय
बेंच ने भारत में टीकों के अपव्यय के खिलाफ अपनी टिप्पणियों को दोहराया और योग्य इच्छुक व्यक्तियों के पंजीकरण का सुझाव दिया। इसके साथ ही कहा कि इससे टीके का अपव्यय नहीं होगा।
न्यायमूर्ति संघी ने सुझाव दिया कि लोगों को उनके पास वैक्सीन की उपलब्धता के बारे में जानकारी प्रदान की जानी चाहिए, ताकि दोनों इस प्रक्रिया को और अधिक सुविधाजनक बना सकें और यह सुनिश्चित कर सकें कि संसाधन बर्बाद न हों।
पीठ ने कहा कि,
"जब आप ऐप पर पंजीकृत होते हैं तो आपको अपडेट मिलता है कि आपको किस केंद्र में जाना है। ऐसे अस्पताल और केंद्र हैं जहां आप टीकाकरण के लिए जा सकते हैं।"
बेंच ने कहा कि,
"अब लोग ऐप पर टीकाकरण के लिए पंजीकरण करने में सक्षम हैं, शुरू में समस्याएं आई थीं। यदि लोग जानते हैं कि उन्हें किस केंद्र में जाना है तो वे तुरंत जा सकते हैं। इससे टीकाकरण का अपव्यय नहीं होगा।"
मजदूरों के लिए चिकित्सा सहायता
अधिवक्ता शील त्रेहान ने मजदूरों के लिए चिकित्सा सहायता / लाभ का मुद्दा उठाया। बिल्डिंग एक्ट के तहत स्थापित एक कॉर्पस में लगभग 3 रुपए का क्राइम कॉर्पस है। डीडीएमए ने हाईकोर्ट के आदेश के बाद फूड किचन चलाने के निर्देश दिए।
कोर्ट ने कहा कि मामला केवल चिकित्सा सहायता तक ही सीमित रहे और अन्य मुद्दों पर न जाएं। इसके बाद एडवोकेट त्रेहान कहा कि बिल्डिंग एक्ट के तहत बनाए गए पूरे कॉर्पस को खत्म किया जा सकता है। बेंच ने कहा कि, "जो पहले से पंजीकृत हैं, उनके लिए आपको निश्चित रूप से चिकित्सा सहायता प्रदान करनी चाहिए और RT-PCR टेस्ट के लिए उनको 4,000-5,000 रुपये देने चाहिए।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि 5,000 रूपये की अतिरिक्त राशि का भुगतान उन लोगों को भी किया जाना चाहिए, जिनके पंजीकरण उस समय मंजूरी के लिए लंबित पड़े थे, जब राहत की घोषणा की गई थी।