COVID-19: दिल्ली हाईकोर्ट ने 2-18 वर्ष पुराने COVAXIN के क्लिनिकल ट्रायल के लिए केंद्र की अनुमति को चुनौती देने वाली याचिका का निपटारा किया
Shahadat
19 Sept 2022 1:12 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 से 18 वर्ष के आयु वर्ग में COVAXIN के दूसरे और तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल करने के लिए केंद्र की अनुमति के खिलाफ COVID-19 की दूसरी लहर के दौरान दायर एक याचिका का निपटारा किया।
चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने जैकब पुलियेल बनाम भारत संघ और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ध्यान दिया, जिसमें माना गया कि COVID-19 वैक्सीनेशन पॉलिसी पर केंद्र की नीति उचित है।
इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि प्रासंगिक डेटा की गहन समीक्षा के बिना COVISHIELD और COVAXIN को जल्दबाजी में आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दी गई। यह भी देखा गया कि पारदर्शिता की कमी के आधार पर वैक्सीन को विनियामक अनुमोदन प्रदान करते समय विशेषज्ञ निकायों द्वारा अपनाई गई प्रक्रियाओं को चुनौती स्वीकार नहीं की जा सकती।
खंडपीठ ने 13 सितंबर को पारित आदेश में कहा,
"पक्षकारों के वकील इस न्यायालय के समक्ष यह कहते हुए काफी निष्पक्ष हैं कि वर्तमान मामले में शामिल विवाद उपरोक्त निर्णय के आलोक में समाप्त हो गया। इसलिए वर्तमान मामले में आगे कोई आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है। इसके साथ ही याचिका का निपटारा कर दिया गया।"
जनहित याचिका केंद्र सरकार द्वारा 13 मई, 2021 को पारित आदेश को रद्द करने के लिए दायर की गई, जिसमें भारत बायोटेक लिमिटेड को 2 से 18 वर्ष के आयु वर्ग के अंतर्गत आने वाले 525 "स्वस्थ स्वयंसेवकों" पर COVAXIN चरण II और III नैदानिक ट्रायल आयोजित करने की अनुमति दी गई।
याचिका में किसी नाबालिग या बच्चे की मौत या मौत की स्थिति में मुकदमे में शामिल व्यक्तियों पर आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए राज्य को निर्देश देने की भी मांग की गई।
याचिकाकर्ता ने केंद्र से उन अनुबंधों को जारी करने के लिए निर्देश देने की भी मांग की, जिसके तहत 525 बच्चों को वैक्सीन के चरण II / III नैदानिक ट्रायल के लिए स्वयंसेवक बनाया जाना है।
याचिकाकर्ता ने कहा,
"व्यक्ति कुछ भी करने की पेशकश तभी कर सकता है जब वह अपने कृत्य के परिणामों को समझने में सक्षम हो। वर्तमान मामले में नैदानिक ट्रायल का विषय नाबालिग होना (यहां तक कि बच्चे जो- केवल उनकी उम्र के कारण) - उचित तरीके से भाषा बोलने और समझने में भी सक्षम नहीं हैं। इसलिए उसको उपरोक्त नैदानिक ट्रायल के लिए स्वयंसेवी नहीं माना जा सकता। इस माननीय न्यायालय से अनुरोध है कि कृपया इस पर निर्णय लें कि क्या उत्तरदाताओं ने 'छोटे बच्चों की स्वैच्छिकता' सुनिश्चित की है।
याचिका में कहा गया कि कथित रूप से पूर्वोक्त एलिनिकल ट्रायल की विषय वस्तु के रूप में स्वेच्छा से काम करने के लिए जिसमें जीवन की हानि और/या बच्चा/नाबालिग बच्चे के शांतिपूर्ण और सुखद जीवन के नुकसान की बहुत स्पष्ट संभावना शामिल है।
इसमें कहा गया,
"इस मामले में चूंकि कथित स्वयंसेवक 2 से 18 वर्ष के आयु वर्ग के हैं, इसलिए यह स्पष्ट है कि कथित स्वयंसेवकों (जो सभी नाबालिग हैं और इसलिए अनुबंध के लिए सक्षम नहीं हैं) द्वारा इस तरह के किसी भी अनुबंध पर हस्ताक्षर नहीं किए जा सकते हैं। वही भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 2(जी), 10, 11 और 12 के प्रावधानों में है।"
टाइटल: संजीव कुमार बनाम भारत संघ और अन्य।
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